जीवन शैली

जीव के शिव से मिलन का अर्थ ही है रास लीलाः आचार्य श्रीकृष्ण प्रकाश पाठक  

 मुस्कान पार्क, सेक्टर आठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन हुए महारास लीला, कंस वध, गोपी उद्धव संवाद और श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह प्रसंग
आगरा। शरद पूर्णिमा की रात पूर्ण चंद्रमा के प्रकाश में गोपियों संग श्रीकृष्ण की रासलीला, साधारण या भाैतिक घटना नहीं है। रासलीला जीव के शिवत्व से मिलन की लीला है। इस आध्यात्मिक अनुभूति को काम के रूप में देखना महापाप और अज्ञानता है। सेक्टर आठ, आवास विकास स्थित मुस्कान पार्क में चल रही श्रीमद् भावगत कथा में कथा व्यास श्रीकृष्ण प्रकाश पाठक(वृंदावन) ने रासलीला का वर्णन करते हुए कहा।
                            कथा महोत्सव के छठवें दिन महारास लीला, मथुरा गमन, कंस वध, गोपी− उद्धव संवाद और श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह प्रसंग हुए।
                        शनिवार को जजमान गिरीश उप्रेती और गीता उप्रेती ने भागवत जी का पूजन किया।
                       लीला प्रसंग का वर्णन करते हुए कथा व्यास श्रीकृष्ण प्रकाश पाठक ने कहा कि भगवान की अनेक लीला में से श्रेष्ठतम लीला रास है। गोपी गीत पर बोलते हुए व्यास जी ने कहा कि जब तब जीव में अभिमान आता है, तो भगवान उससे दूर हो जाते हैं लेकिन जब कोई भगवान को ना पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह कर दर्शन देते हैं। इसके बाद श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मिणी के साथ संपन्न हुआ किंतु रुक्मिणी का श्रीकृष्ण द्वारा हरण किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मिणी जी स्वयं साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप थीं और वे नारायण से दूर रह ही नहीं सकतीं। यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो वह धन चोरी, बीमारी या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या सेवा करता है तो कृपा स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। कथा प्रसंग समापन पर श्रीकृष्ण− रुक्मिणी विवाह की मनमोहक झांकी से हुआ। उपस्थिति श्रद्धालुओं ने स्वरूपों पर पुष्पवर्षा करते हुए पूजन किया।
                        इस अवसर पर मुख्य संरक्षक डॉ पार्थ सारथी शर्मा, अशोक चौबे, राजेश चतुर्वेदी, हरिदत्त मिश्र, श्री कांत शर्मा, दिनेश मिश्र, विवेकानंद मिश्र, चौधरी धर्मवीर सिंह, सुखवीर सिंह धाकरे, रामप्रकाश पाठक, जवर सिंह यादव, आचार्य श्याम सुंदर शुक्ला, मोहिनी शर्मा, अनुराग शर्मा, शशिकांत गुप्ता, मनोज शर्मा आदि उपस्थित रहे।