एक चिमटे ने उजाड़ दी जिंदगी, दिया कभी न भुलाने वाला दर्द
आगरा। चिमटे की पिटाई ने एक हंसते खेलते परिवार को बर्बाद कर दिया। उसको कभी ना ना भुला देने वाला दर्द दे दिया। उस दिन को याद करके अभागी मां आज भी शिहर उठी। हालांकि उसे खुशी थी कि 13 साल बाद उसके खोए हुए बच्चे मिल गए हैं लेकिन वह रो-रो कर अपनी गलती का पछतावा कर रही थी। कह रही थी कि गुस्से में मैंने अपनी बेटी को चिमटा न मारा होता तो वह भाई के साथ घर छोड़कर न जाती। बच्चे मां के आंसू पोंछकर चुप करा रहे थे लेकिन वह उस मनहूस दिन को याद करके दहाड़ मारकर रो रही थी। बच्चों ने कहा कि उनको कुछ भी याद नहीं है कि वह कैसे लापता हुए।
उनको नहीं पता कि उनकी मां ने उनकी पिटाई की थी। धुंधली सी यादों को समेटे हुए बच्चे अपने अतीत को बताने का प्रयास कर रहे थे लेकिन उनको कुछ याद नहीं आ रहा था। पूरा परिवार 13 साल बाद मिलकर बहुत खुश था। घर में बहुत दिन बाद खुशियां लौटकर आई थीं। मोहल्ले के लोग भी बच्चों को देखने के लिए जुट गए थे। मां ने बच्चों को मिठाई खिलाकर बच्चों का मुंह मीठा किया तो नानी ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी।
दुख में बीतीं पांच हजार रातें
साढ़े 13 साल की लगभग 5000 रातें एक अभागी मां के लिए अभिशाप बन गईं। 2010 में जगदीशपुरा निवासी नीतू के दो बच्चे राखी और बबलू घर से लापता हो गए थे। गुस्से में नीतू ने राखी की चिमटे से पिटाई कर दी थी। जिससे वह नाराज होकर अपने छोटे भाई बबलू को लेकर चली गई। रास्ते में एक रिक्शे वाला मिला तो वह उन्हें अपने घर ले गया। अगले दिन उसने आगरा कैंट स्टेशन पर छोड़ दिया। ट्रेन में बैठकर वह मेरठ पहुंच गए। मेरठ से बच्चों को पुलिस ने उतार लिया। एक साल तक दोनों साथ-साथ अनाथालय में रहे। दस वर्ष पूरे होने के बाद लड़की को नोएडा के अनाथालय तथा लड़के को लखनऊ के राजकीय बाल गृह में भेज दिया गया। यहां उनकी परवरिश हुई।
बड़े होने पर लड़की गुड़गांव में तो लड़का बेंगलुरु में जॉब करने लगा। इनको मां-बाप के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अबोध उम्र में लापता होने के कारण यह अपना जिला भी नहीं पहचान पाए। माता-पिता का नाम भी स्पष्ट याद नहीं था। दोनों भाई-बहन डेढ़ साल पहले एक दूसरे के आमने-सामने आए तो उन्होंने तय किया कि हम अपने परिवार को खोजेंगे लेकिन उनको कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी।
चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट बने मसीहा
लगभग एक सप्ताह पूर्व बच्चे आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस के संपर्क में आए। बच्चों ने उनसे मदद मांगी लेकिन उनके पास कोई ठोस जानकारी न होने के कारण मायूस थे। नरेश पारस को मेरठ पुलिस से मिले पत्र में पता चला कि उनका पता बिलासपुर है। बिलासपुर में खोजबीन की गई तो इस नाम का कोई भी बच्चा लापता नहीं मिला। बच्चों ने बताया कि जिस स्टेशन से वह ट्रेन में बैठकर गए थे उसके बाहर एक इंजन का डिब्बा था। नरेश पारस ने पहचान की आगरा कैंट के पास में बाहर इंजन का डिब्बा रखा है। ऐसे में आगरा होने की संभावना प्रबल हुई फिर उन्होंने गुमशुदा प्रकोष्ठ से संपर्क किया तो पता चला कि थाना जगदीशपुरा में इन बच्चों की गुमशुदा की दर्ज है। राखी ने मां की गर्दन पर जले का निशान बताया। इसके बाद में कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए इसके बच्चों के परिवार को तलाश लिया गया।
ऐसे हुई हैप्पी एंडिंग
नरेश पारस ने जब दोनों बच्चों की बात उनकी मां से वीडियो कॉल के माध्यम से कराई तो सभी ने एक दूसरे को पहचान लिया। राखी तुरंत ही गुड़गांव से मां से मिलने के लिए बुधवार की शाम को आगरा पहुंच गई। उसे शहर का आईडिया न था। नरेश पारस उसे आईएसबीटी से घर लेकर आए और परिवार से मुलाकात कराई। बबलू भी बेंगलुरु से गुरुवार को आ गया। नरेश पारस उसे भी आगरा कैंट लेने पहुंचे और लेकर मां को मां से मिलाया। जब नरेश पारस बच्चों को दोनों बच्चों को लेकर उनकी मां के पास पहुंचे तो मां पूजा की थाली सजा कर उनका इंतजार कर रही थी।
बच्चों को देखकर गले लगा लिया और रोने लगी। मां को देखकर दोनों बच्चे भी रोने लगे किसी तरह अपने आप को संभालते हुए नीतू ने दोनों बच्चों की आरती उतारी। उनको तिलक लगाया मिठाई खिलाई। मां तथा दोनों बच्चों ने कहा कि नरेश पारस का साथ न मिलता तो हम सब का आपस में मिलना असंभव था। सभी नरेश पारस का आभार व्यक्त कर रहे थे। राखी गुड़गांव में एक मॉल में बिलिंग काउंटर पर काम करती है। वह दो दिन की छुट्टी लेकर आगरा आई थी।
वह वापस गुड़गांव लौट गई है। जल्दी वह मां से मिलने के लिए दोबारा आएगी। वहीं बबलू का कहना है कि वह अब मां के साथ ही रहेगा। राखी भी जल्दी गुड़गांव से आकर अपने परिवार के साथ ही रहेगी। अब उसे मां के साथ-साथ नाना नानी और सहित पूरा परिवार मिल चुका है। बबलू ने कहा की मैं बहुत खुश हूं। अपनी मां, नानी और नाना को अपने पैसों से रेस्टोरेंट में खाना खिलाने ले जाऊंगा।