उत्तर प्रदेश

चिक्तिसा सेवायें बन गई हैं रेत का महल, बीमारियां खिल खिला रहीं नहीं हैं अंकुश


संवाद/ विनोद मिश्रा


बांदा। आश्चर्य नहीं आपको भी घोर आश्चर्य होगा स्वास्थ चिकित्सा की इस खबर पर। क्योंकि भुक्त भोगी भी हैं आप लोग।
इस क्षेत्र का “कथा पुराण” यह हैं कि जिले के सरकारी अस्पतालों की स्वास्थ्य सुविधाएं “रेत के महल की तरह ढ़ेर” हैं। यह स्वंय में “बीमार हो बदहाल” हो गई हैं। “बीमारियां” सुनहरा मौका पाकर “खिलखिला” रहीं हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त होने वाली कंपलीट ब्लड काउंट (सीबीसी)जांच की सुविधा तक मरीजों से दूर है।कहीं रीजेंट न होने से तो कहीं टेक्नीशियन की कमी व मशीन खराब होने से यह जांच ठप है। परिणाम स्वरूप मरीजों को इस साधारण जांच के लिए भी निजी पैथोलॉजी या शहर की दौड़ लगानी पड़ रही है।


जिले की करीब 20 लाख आबादी के बीच आठ सीएचसी और 51 पीएचसी हैं। बहेरी, स्योढ़ा, बिसंडा, कमासिन, नरैनी, बबेरू, जसपुरा व अतर्रा सीएचसी सहित लगभग 20 में सीबीसी जांच की व्यवस्था है, लेकिन इनमें से किसी में भी यह जांच नहीं हो रही। मशीनें शोपीस बनी हैं। बबेरू व अतर्रा समेत कई सीएचसी में रीजेंट न होने से जांचें ठप है। सीएमओ डॉ. एके श्रीवास्तव ने बताया कि सीबीसी जांच न होने की जानकारी नहीं दी गई। दो-तीन दिन में व्यवस्था दुरुस्त करेंगे। जहां रीजेंट की कमी से मशीन बंद है, उसे शुरू किया जाएगा।