आगरा । मस्जिद नहर वाली सिकंदरा के इमाम मुहम्मद इक़बाल ने आज अपने सम्बोधन में क़ुरआन की बात की। उन्होंने कहा कि क़ुरआन दुनिया की अकेली ऐसी किताब है जो सबसे ज़्यादा पढ़ी जाती है। वो अलग बात है कि इसको बग़ैर समझे पढ़ते हैं और ये एक ही ऐसी किताब है कि दुनिया में हर जगह इसके हाफ़िज़ मिल जाऐंगे। छोटे-छोटे बच्चे बहुत कम उम्र में ही इसको याद कर लेते हैं। जिस तरह दुनिया में 24 घंटे कहीं ना कहीं आज़ान होती रहती है उसी तरह दुनिया में क़ुरआन की तिलावत भी होती रहती है। इतना बड़ा चमत्कार जिस क़ौम के पास है अफ़सोस वो इसको इस्तेमाल करना नहीं जानती। दुनिया में जो भी इसको इस्तेमाल करेगा उसको फ़ायदा होगा। मगर हमें इससे अंधी आस्था है। जी हाँ ! मैं आपको एक देश का किस्सा बता रहा हूँ। वहां लोग अक्सर सड़क पर ही पेशाब कर देते थे। सरकार बहुत परेशान थी। वहां के प्रशासन ने जगह-जगह लिखवा दिया कि “यहां पेशाब करना सख़्त मना है”। लेकिन इस का कुछ असर नहीं हुआ। किसी ने मशवरा दिया कि इस वाक्य को ‘अरबी’ भाषा में लिखवाया जाए। ये एक्सपेरिमेंट किया गया। इसका असर हैरत-अंगेज़ हुआ। लोगों ने वहां पेशाब करना छोड़ दिया। जो भाषा समझ नहीं आ रही थी, उस पर अमल शुरू। ये क़ुरआन से अंधी आस्था का सबूत है। अगर क़ुरआन को समझ कर पढ़ें तो काबा के रब की क़सम ज़िंदगी बदल जाएगी। काश हम इस पर गंभीरता से ग़ौर करें। कम पढ़ें मगर अनुवाद से पढ़ें। तब ज़िंदगी में असर आएगा इन-शा-अल्लाह। सिर्फ़ आस्था रखना काफ़ी नहीं है। अपने बच्चों को इस के ज्ञान से अवगत कराएं। सही बुख़ारी की हदीस नंबर 5027 को याद रखें– “तुम में सबसे बेहतर वो है जो क़ुरआन पढ़े और पढ़ाए।” अल्लाह से दुआ है, अल्लाह हम सबको इसकी तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।
तर्जुमा : अरिश असद, आगरा