17 माह बाद आजाद हुई बेटी, खुली हवा में ली सांस
आखिरकार हाईकोर्ट के आदेश पर 17 माह बाद बेटी आजाद हो गई। उसने लंबे समय बाद खुली हवा में सांस ली। बाल गृह के बाहर माता-पिता को देखा तो दौड़ी चली आई। उनसे लिपट गई। मां ने भी उसे आंचल में समेट लिया। इस अनोखे मिलन को देखकर हर कोई भावुक हो गया।
हाईकोर्ट से सीधे बाल गृह पहुंची मां
डीएनए रिपोर्ट मेल नहीं खाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्ची को उसकी पालनहार मां को दिए जाने का आदेश दिया। पालनहार मां सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस के साथ प्रयागराज गई थी। आदेश की प्रति लेकर सीधे बाल गृह पहुंचे। नरेश पारस ने हाईकोर्ट से मिले 11 पेज का आदेश बाल कल्याण समिति को देकर बेटी मां के सुपुर्द करने का अनुरोध किया। बाल कल्याण समिति के आदेश पर बालिका को यशोदा के सुपुर्द कर दिया गया। इस दौरान सीडब्ल्यूसी की मोनिका सिंह, हेमा कुलश्रेष्ठ, रेनू चतुर्वेदी, जिला प्रोबेशन अधिकारी अजयपाल सिंह और नरेश पारस भी मौजूद रहे।
यशोदा जैसी मां नहीं दे सकता कानून
कोर्ट ने मार्मिक टिप्पणी करते हुए कहा कि कानूनी दांवपेच से बच्ची को उसकी पालनहार मां से दूर करना आसान है, लेकिन यशोदा मैया जैसी मां दे पाना कानून के बस में नहीं। बच्ची पर एक दंपति ने दावा किया था, जो सिद्ध नहीं हो सका। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष पालनहार मां ने अपनी मानद बेटी की सुपुर्दगी के लिए दाखिल याचिका को सुनवाई करते हुए यह मार्मिक टिप्पणी की। कोर्ट ने यशोदा मैया को बेटी गोद देने की प्रक्रिया एक हफ्ते में पूरी करने का निर्देश दिया है।
नौ साल पहले मिली मासूम
नौ साल पहले एक सर्द रात में किन्नर ने टेढ़ी बगिया इलाके में रहने वाली महिला को यह नवजात बच्ची सौंपी थी। उसे कोई खुले में छोड़ गया था। महिला ने चार बच्चे होते हुए भी नवजात के लिए यही महिला यशोदा मां बन गई। न सिर्फ उसका तत्काल इलाज करावा, बल्कि सात साल तक पालन-पोषण में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। स्कूल में दाखिला भी कराया।
इसी बीच, किन्नर की नीयत खराब हो गई और वह बच्ची को अगवा करके ले गया। जिसे पुलिस ने फर्रुखाबाद से मुक्त कराया था। बाल कल्याण समिति फर्रुखाबाद के यहां उसने यशोदा को ही अपनी मां बताते हुए उनके साथ जाना चाहा। बच्ची यशोदा को दे भी दो गई, लेकिन आठ माह बाद ही बाल कल्याण समिति आगरा ने कमजोर आर्थिक स्थिति का आधार बनाते हुए बच्ची को फिर बाल गृह भेज दिया था। 17 महीने से बाल गृह में निरुद्ध थी।
गोद देने की प्रक्रिया एक हफ्ते में करनी होगी पूरी
कोर्ट ने विशेष मामला मानते हुए पालनहार मां को बेटी को गोद देने की प्रक्रिया एक हफ्ते में पूरी करने का आदेश भी दिया है। प्रशासन से रिपोर्ट मांगते ही नया मोड़ तब आया, जब आगरा के एक दंपति ने हाईकोर्ट में दावा किया कि बच्ची के वह जैविक पिता हैं। कहा, वर्ष 2015 में नवजात बच्ची घर से अगवा की गई थी, जिसको एत्माद्दौला थाने में एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। कोर्ट ने दंपति को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने की अनुमति देते हुए डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया था। जो सोमवार को पेश हुई। हाईकोर्ट ने इस मार्मिक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मां बेटी की जुदा करने के लिए कानून में बहुत से आसान रास्ते है, लेकिन इनों मिलाने की कोई व्यवस्था नहीं है। बरहाल कोर्ट ने किशोर न्याय बच्चों की सुपुर्दगी के लिए यशोदा मैया को हो सर्वोत्तम संरक्षक माना
सीडब्ल्यूसी का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण
कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि अधिकारियों ने इस मामले में संवेदनशीलता नहीं दिखाई। साढ़े आठ साल की बच्ची को ऐसो कानूनी बेड़ियां लगा दीं, जिसे लगाना बहुत आसान है लेकिन उसे यशोदा जैसी मां दे पाना बस में नहीं। बीते सात साल से बच्ची उन्हों के परिवार में रह रही है। सभी से उसका भावनात्मक लगाव है। लिहाजा, बच्ची के लिए यशोदा ही असली मां है और उसका परिवार सर्वोत्तम संरक्षक।
पारस ने होते तो फिर हार जाती जंग
बेटी को पाने के लिए शासन प्रशासन से लेकर हाईकोर्ट तक दौड़ लगाने वाली पालनहार मां के साथ सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। हर सुनवाई में हाईकोर्ट में मौजूद रहे। याचिका लिखवाने से लेकर दमदार पैरवी की। हर बिन्दु पर अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल से मशविरा किया। हर तथ्य को याचिका में शामिल कराया। जिसके आधार पर जीत मिली। पालनहार मां कहती हैं कि नरेश पारस का साथ नहीं मिलता तो उनको बेटी कभी नहीं मिल पाती। वह तो अनपढ़ है। कुछ नहीं जानती है। कई बार मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की धमकी दी। नरेश पारस ने हर राह को आसान बनाया।