संवाद। मोहम्मद नज़ीर क़ादरी
अज़मेर । जवाहरलाल नेहरु चिकित्सालय का पेन एवं पैलिएटिव मेडिसिन विभाग लगातार प्रगति कर रहा है। प्रधानाचार्य डॉ वी बी सिंह एवं चिकित्सा अधीक्षक डॉ नीरज गुप्ता के प्रयासों से यह विभाग गत वर्ष खुला था तथा राजस्थान में इस तरह का दूसरा विभाग है ( प्रथम एस एम एस हॉस्पिटल जयपुर)। विभाग में समस्त लाइलाज बीमारियों जैसे कैंसर, सांस, तंत्रिका तंत्र, किडनी, हृदय इत्यादि से पीड़ित मरीजों एवं उनके परिजनों की समग्र दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण देखभाल की जाती है, जिससे मरीज एवं परिजनों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाया जाता है। साथ ही समस्त प्रकार के दर्द से पीड़ित मरीजों का दवाइयों एवं मिनिमल इनवेसिव पेन एंड स्पाइन इंटरवेंशन आदि सूंई प्रक्रिया द्वारा इलाज किया जाता है।
विभागाध्यक्ष डॉ दीपक गर्ग ने बताया कि विभाग में हाल ही 30 वर्षीय महिला का गर्दन में स्लिप डिस्क दर्द की समस्या हेतु अत्याधुनिक सी आर्म मशीन द्वारा सर्वाइकल एपिड्यूरल इंजेक्शन पद्धति द्वारा इलाज किया गया जो अजमेर संभाग में प्रथम बार हुआ है तथा राजस्थान में भी केवल कुछ ही महंगे प्राइवेट अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है। जलाने में मरीज का इलाज बिल्कुल निशुल्क किया गया है। गर्दन में नसों की संख्या ज्यादा होने के कारण यह इंजेक्शन विशेष प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा ही लगाया जाता है।
इसी प्रकार सी आर पी एस नामक बीमारी से ग्रसित 28 वर्षीय महिला का सोनोग्राफी मशीन की सहायता से स्टीलेट गैंग्लिओन पद्धति से उपचार किया गया।
अनेकों मरीज जो विभिन्न प्रकार के शरीर में फैल चुके कैंसर से पीड़ित होते हैं अथवा सांस की बीमारी जैसे गंभीर सिलिकोसिस, सीओपीडी, घबराहट, खांसी अथवा तंत्रिका तंत्र की बीमारी जैसे लकवा, पार्किंसन, एल्जीमर, बेड सोर अथवा किडनी की बीमारी इत्यादि से पीड़ित हैं, भी विभाग में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक तरीके से मरीज एवं परिजनों की देखभाल का लाभ ले चुके हैं। जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हुआ तथा उनका बीमारी का खर्चा व भर्ती दर भी कम हुई तथा गरिमा पूर्ण जीवन जिया।
डॉ वीणा माथुर, वरिष्ठ आचार्य के अनुसार गरिमापूर्ण जीवन एवं गरिमापूर्ण मृत्यु को संविधान के अनुसार भी मौलिक मानवाधिकार माना गया है तथा विभाग में एंड ऑफ लाइफ केयर की सुविधा भी उपलब्ध है। विभाग में एमडी के विद्यार्थी भी अध्ययनरत हैं तथा एविडेंस बेस्ड मेडिसिन एवं अत्याधुनिक मशीनों की सुविधा उपलब्ध है।
बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 8 करोड मरीजों को पैलिएटिव केयर की आवश्यकता होती है परंतु जानकारी के अभाव में अथवा सुविधाओं की कमी के कारण 1 से 2% मरीजों को ही यह सुविधा उपलब्ध हो पाती है, जबकि दर्द निवारण एवं पैलिएटिव केयर को मानव अधिकार एवं यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का अभिन्न अंग माना गया है। पैलिएटिव केयर केवल जीवन की अंतिम अवस्था के समय की देखभाल ही नहीं है बल्कि यह बीमारी के डायग्नोसिस के साथ ही शुरू हो जाती है।