राष्ट्रीय रामायण मेला में विद्ववानों नें रामचरित मानस की विभिन्न पहलुओं की किया मीमांसा
संवाद/ विनोद मिश्रा
चित्रकूट।प्रांतीय कृत राष्ट्रीय रामायण मेला के 51वें समारोह के दूसरे दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम के बीच मानस मर्मज्ञों के व्याख्यान हुये। इसी क्रम में विद्वत गोष्ठी में डा.चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने श्रीराम और रावण की लंका विजय का रहस्य उजागर करते हुयेसार्थकता पूर्ण प्रामाणिक गूढ़ विश्लेषण किया।
बांदा के मानस किंकर पं राम प्रताप शुक्ला ने निराकार परमात्मा की व्याख्या की। मप्र भिडं के प्रवक्ता देवेन्द्र चैहान रामायणी ने भरत जी की महिमा का वर्णन किया। मानस के अनुसार प्रमाण देते हुए कहा कि भरत के अंदर आठ महासागर है। प्रत्येक महासागर का वर्णन अलग-अलग प्रकार से बताया। पश्चिम बंगाल दार्जलिंग सिलीगुडी के महाकवि मोहन दुकुन ने जीवात्मा की रचना विवेचना की।
मुम्बई से पधारे वीरेन्द्र प्रसाद शास्त्री ने मानस के अंतर्गत जनक जी के प्रसंग में विषयानन्द, ब्रह्मानन्द, परमानन्द के बारे में विवेचन करते हुए बताया कि परमानन्द का जो आनन्द है वह सर्वोपरि है।
छिंदवाड़ा के सीताराम शरण रामायणी ने कहा कि प्रभु राम का भक्तो से अति प्रेम करने का स्वभाव ही है। खंडवा के रमेश तिवारी ने कहा कि भगवान राम अति दयालु हैं। जयंत द्वारा घनघोर अपराध करने के बाद भी उसके शरण में आने पर उसे एक नैन कर तजा भवानी की ही सजा दी थी। इसी क्रम में ही वृंदावन के कृष्णानन्द शास्त्री, वसधुंरा रामायणी छिंदवाडा ने रामकथा पर अपने प्रवचन किए। रामायण मेला के कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया नें विद्ववानों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन करुणाशंकर दिवेदी नें किया।