उत्तर प्रदेश

आरके पटेल के बिगडते बोल कहीं बजा न दें उल्टा ढ़ोल? लोकप्रियता भी है ढ़ोल में पोल?


संवाद/विनोद मिश्रा


बांदा। बांदा -चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी “आरके पटेल के बिगड़ते बोल उनके लिये मुसीबत” बन रहें हैं?यह स्थिति उनका कहीं “उल्टा ढोल न बजा” दे? इस संसदीय सीट पर लाखों में मतदाता उन्हें भाजपा द्वारा पुनः टिकट दिये जानें से कथित तौर पर दुखी है। सांसद के जनता कें बीच पहुंचने पर सवालों कें बौछार अधिकांश जगह शुरू हो जाते हैं। इस पर आरके पटेल तिलमिला उठते हैं। “खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की तर्ज पर वह नाराजगी कें साथ कहते हैं की मोही नेता गिरी न सिखाव”? मानिकपुर क्षेत्र उनके इस खिसियाहट भरे कथन का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ!मतदाताओं में तीखी प्रतिक्रिया हैं की सांसद नकारा कें साथ घमंडिया भी हैं?

आलम यह है की “सांसद की रीति और नीति के खिलाफ लगातार अंदरूनी तौर पर विरोध की चादर फैलती” सी ही जा रही है? लोक सभा क्षेत्र की चारों विधान सभाओं बांदा ,नरैनी,बबेरू,चित्रकूट एवं मानिकपुर में विशेष तौर पर “भाजपा कें ही लोग नाराजगी का जहर उगल” रहें हैं? इसके अलावा आम जन मानस में तो “सांसद प्रत्याशी की छीछालेदर” है ही?वैसे सांसद आरके पटेल “राजनीति कें मौसम वैज्ञानिक” की भी “शोहरत” हासिल कर चुके हैं। यह पहले कालीन का कारोबार करते थे। कांशीराम और मायावती से प्रेरित होकर बसपा में चले गए।1992 में पहला विधानसभा चुनाव कर्वी से लड़ा था पर हार गए।1996 में बसपा से ही विधायक बने और मायावती सरकार में मंत्री रहे।


2007 में सपा में चले गए, पर विधानसभा चुनाव हार गए।2009 में सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते। 2014 में भाजपा उम्मीदवार से हार गए।आगे माहौल भांपकर 2017 में भाजपाई हो गए। अब दूसरी बार उन्हें भाजपा ने टिकट दिया है।जो इस बार “जीत कें लिये उन्हें लोहे के चने चबाना” सा माना जा रहा है? वह “भाजपा लहर में जनता के कहर का शायद ख्याल नहीं” कर पा रहे? ईश्वर सद्बुद्धि दे तो शायद कुछ निगेटिव माहौल पाजटिव हो पर घमंड और अहंकार बाधक सा है?”मतदाताओं को पैर की जूती समझना कहीं भयंकर भूल” न साबित हो?