आगरा (इजहार अहमद)। इस्लाम के पाक महीने रमज़ान को तीन भागों में बांटा गया है, जिसका विशेष महत्व होता है. इन्हें तीन अशरा कहा जात है. आइये जानते हैं क्या है रमज़ान के तीन अशरे और इसका महत्व,
माह-ए-रमज़ान में होते हैं तीन अशरो के वारे में
रमज़ान महीने के 29 या 30 दिनों को तीन भागों में बांटा गया है, जिसे अशरा कहा जाता है. इस तरह से रमज़ान में पहला अशरा, दूसरा अशरा और तीसरा अशरा होता है. बता दें कि अरबी में अशरा का मतलब दस दिन है.
इस तरह से रमज़ान के महीने का पहला अशरा 1 रमज़ान से 10 रमज़ान तक होता है,
दूसरा अशरा 11 रमज़ान से 20 रमज़ान तक,
और आखिरी यानी तीसरा अशरा 21 से 30 रमज़ान तक होता है,
इन्हीं तीन भागों में बंटे 30 दिनों को तीन अशरा कहा जाता है.
रमज़ान के तीन अशरे का महत्व
मौलाना एहतशाम-उल-हक़ ने बताया कि रमज़ान के 30 दिनों को तीन अशरों में बांटा गया है. इसमें पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मग़फ़िरत (गुनाहों की माफ़ी ) और तीसरा अशरा जहन्नम से नजात का होता है. ऐसी मान्यता है कि रमज़ान के पहले अशरे में जो लोग रोजा़ रखते हैं और नमाज़ अदा करते हैं उनपर अल्लाह की रहमत होती है. दूसरे अशरे में मुसलामन अल्लाह की इबादत करते हैं और अल्लाह उनके गुनाहों को माफ़ कर देते हैं. वहीं आखिरी और तीसरे अशरे की इबादत से जहन्नम से खुद को बचाया जा सकता है,
इस तरह से इस्लाम में रमज़ान के तीन अशरे का महत्वपूर्ण बताया गया है।