आगरा।श्री श्री परमहंस योगानंद समस्त विश्वभर में एक पूजनीय जगतगुरु हैं जिन्हें पश्चिम में भारत के प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान व योग विज्ञान के सबसे महान प्रचारक के रूप में पहचाना जा रहा है। उनकी जीवन और शिक्षाएँ सभी जातियों संस्कृतियों और पंथों के लोगों के लिए प्रकाश और प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई हैं
उनकी शिक्षाएँ ईश्वर की प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभूति प्रदान करती है और ये शिक्षाएँ देशभर में शिष्यों व ईश्वर भक्तों को योगदा पाठों के माध्यम से भेजी जाती हैं
श्री श्री परमहंस योगानंद द्वारा 1917 में स्थापित आध्यात्मिक संस्था योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के सन्यासियों का शनिवार और रविवार दिनांक 30 व 31 मार्च 2024 को दो दिवसीय आगरा में प्रवास का कार्यक्रम रहा। इस बारे में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के दो श्रद्धेय सन्यासियों स्वामी श्री ललितानंद गिरी व स्वामी श्री आलोकानंद गिरी जी ने बताया कि योगदा के सन्यासीगण, गीता में वर्णित प्राचीन क्रिया योग जो कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा भक्त अर्जुन को दिया गया था, उस पर आधारित आध्यात्मिक शिक्षाओं के प्रचार के लिए भारत भर में वर्ष पर्यन्त भ्रमण करते हैं, इसी क्रम में उनका आगरा का दौरा चल रहा है।
स्वामी आलोकानंद गिरी जी ने अपने सत्संग में ईश्वर से दिव्य प्रेम की शक्ति की महिमा के बारे में बताया कि किस प्रकार ईश्वर के प्रति दिव्य प्रेम हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है उन्होंने आगे बताया कि दिव्य प्रेम को विकसित करने के लिए हमे महान संतों का सत्संग , गुरु की दी हुई साधना का अनुसरण और ईश्वर के नाम का संकीर्तन करना चाहिए , दिव्य प्रेम विश्व में शांति व सामंजस्य स्थापित करने में अहम भूमिका निभा सकता है
स्वामी श्री ललितानंद गिरी जी ने श्री श्री परमहंस योगानंद जी की शिक्षाओं पर आधारित योग की प्राचीनतम प्रविधि क्रियायोग विज्ञान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह योग मार्ग में सफलता पाने के लिए सबसे तीव्र और सबसे अधिक प्रभावशाली विधि है जो सीधे ऊर्जा और चेतना का प्रयोग करती है। यह सीधा मार्ग है जो आत्मज्ञान के एक विशेष तरीके पर बल देता है, जिसे परमहंस योगानन्दजी ने सिखाया है। विशेषतया, क्रिया, राजयोग की एक ऐसी विकसित विधि है जो शरीर में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की धारा को सशक्त और पुनर्जीवित करती है, जिससे हृदय और फेफड़ों की सामान्य गतिविधि स्वाभाविक रूप से धीमी हो जाती है। इसके फलस्वरूप चेतना, बोध के उच्चतर स्तर पर उठने लगती है, जो क्रमशः धीरे-धीरे अंतः करण में आंतरिक जागृति लाती है जो मन एवं इंद्रियों से प्राप्त होने वाले सुख के भाव से कहीं अधिक आनंदमय व गहरा आत्मसंतोष प्रदान करने वाली होती है। सभी धर्म ग्रंथ यह उपदेश देते हैं कि मनुष्य एक नाशवान शरीर नहीं है, बल्कि एक जीवंत अमर आत्मा है। प्राचीन काल से मानवता को प्रदान किया गया क्रियायोग उस राजमार्ग का उद्घाटन करता है जो शास्त्रों में वर्णित सत्य को सिद्ध करता है। यह वही योग विज्ञान है जो गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था
दिव्य प्रेम व मित्रता में
श्रीमती किरण यादव,आर एस भदौरिया,यादवेंद्र प्रताप सिंह,ललिता शर्मा,जागेश यादव, कृष्ण गोपाल यादव, अमित मिश्रा,करन सिंघल,आर एस राणा, डॉ मदन मोहन शर्मा आदि