आगरा | मस्जिद नहर वाली सिकन्दरा के इमाम मुहम्मद इक़बाल ने आज जुमा के ख़ुत्बा में लोगों को वक़्त की क़दर करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अल्लाह ने नमाज़ के लिए वक़्त मुक़र्रर किया। रोज़ा, सेहरी व इफ़्तार का वक़्त मुक़र्रर, हज का वक़्त मुक़र्रर, सूरज, चांद, अपने वक़्त के हिसाब से गर्दिश कर रहे हैं। गर्मी, सर्दी, बारिश वग़ैरा के वक़्त मुक़र्रर। आपने ख़ुद अपने काम करने के वक़्त मुक़र्रर कर रखे हैं। हर काम अपने वक़्त पर हो रहा है पूरी कायनात अपने वक़्त के हिसाब से चल रही है। यहां तक कि क़यामत भी अपने ‘मुक़र्रर वक़्त’ पर ही आएगी। हर एक की मौत का वक़्त भी मुक़र्रर है, लेकिन हमारी शादियों में ना निकाह का वक़्त मुक़र्रर है ना ही खाने का। निकाह के वक़्त चाहे तारीख़ बदल जाए। मगर हम नहीं बदलेंगे। जबकि हमको नमाज़ों के ज़रिये वक़्त की पाबंदी सिखाई गई। लेकिन हम तो अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ चलने वाली क़ौम साबित हुए हैं। आप ख़ुद देख लें अपनी शादियों का क्या हाल है ? किस क़दर वक़्त बर्बाद हो रहा है। कौन है इसका ज़िम्मेदार ? “हम ख़ुद ही हैं” कौन इसको ठीक करेगा ? किस का इंतिज़ार कर रहे हैं ? अब तो महदी अलैहिस्सलाम ही आने बाक़ी हैं। अल्लाह के बंदों ! अपने वक़्त की क़दर करें। वक़्त किसी का इन्तिज़ार नहीं करता, बहुत तेज़ी से गुज़र रहा है। आप ख़ुद रोज़ अपने अज़ीज़ों को क़ब्रिस्तान पहुंचा रहे हैं। हम सबको भी जाना है। वक़्त की क़दर कर लें। ये वापस आने वाली चीज़ नहीं है। हम सब इस बात को जानते हैं। इसके बावजूद हम ‘अंधे’ बने हुए हैं। अल्लाह से माफ़ी मांगें और वक़्त की क़दर करते हुए अपनी शादियों को आसान बनाएँ। लोगों की नाराज़गी के बजाए अल्लाह की नाराज़गी को ध्यान में रखें। मस्जिद में निकाह को तर्जीह दें। खाने का वक़्त मुक़र्रर करके उसका ख़्याल रखें। देर से आने वालों को खाना ना दें वो खाना ‘ज़रूरतमंदों’ में बाँट दें। सख़्त क़दम तो उठाना पड़ेगा। ऑपरेशन तो करना पड़ेगा। आप अपने आपको ठीक करने वाली लिस्ट में शामिल करें। अल्लाह हम सबको सही सूझ-बूझ अता फ़रमाए। आमीन।