नई दिल्ली। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट में स्वीकार किया है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट भी हैं। भारत में भी कोविशील्ड नाम से इस कंपनी की कोविड वैक्सीन लगाई गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफर्ड के साथ मिलकर एस्ट्राजेनेका ने यह वैक्सीन तैयार की थी। बता दें कि ब्लड क्लॉटिंग समेत कई अन्य दिक्कतों को लेकर एस्ट्राजेनेका कोर्ट केसा का सामना कर रही है। कई याचिकाओं में कहा गया है कि इस वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट हुए हैं।
फरवरी महीने में बाईआ कोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में एट्राजेनेका ने साइड इफेक्ट की बात स्वीकार की है। दे टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक एट्राजेनेका के खिलाफ जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने पहली बार अप्रैल में केस दर्ज करवाया था। जानकारी के मुताबिक जेमी ब्रेन इंजरी का शइकार हो गए थे। जेमी को टीटीएस यानी थ्रोम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसायटोपीनिया सिन्ड्रोम नाम की बीमारी हो गई थी। इस बीमारी में दिमाग में खून के थक्के जम जाते हैं।कोविड-19 की उसकी वैक्सीन से टीटीएस जैसे दुर्लभ साइड इफेक्ट हो सकते हैं। टीटीएस यानी थ्रोम्बोसइटोपेनिया सिंड्रोम शरीर में खून के थक्के जमने की वजह बनती है। इससे पीड़ित व्यक्ति को स्ट्रोक, हृदयगति थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन ऐसा बहुत रेयर केस में होता है।
एस्ट्राजेनेका में कोर्ट में बताया था कि इस कोविड वैक्सीन से कुछ मामलों में टीटीएस होने की संभावना रहती है। यूके में कंपनी के खिलाफ दर्जनों केस दर्ज हुए हैं। वहीं पीड़ित परिवार ने मुआवजे की भी मांग की है। वहीं कंपनी का कहना है कि टीटीएस बिना वैक्सीन के भी हो सकता है। वहीं पीड़ित परिवारों का कहना है कि यह वैक्सीन बेकार थी इसके बावजूद इसका बढ़ाचढ़ाकर गुणगान किया गया।
वैक्सीन के ट्रायल के वक्त भी कहा गया था कि इस वैक्सीन के साइडइफेक्ट देखने को मिले हैं। हालांकि कंपनी ने इस बात से इनकार किया था। बता दें कि भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ने वैक्सीन ने भी एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता किया था। इसके बाद देश में आधे से अधिक डोज कोविशील्ड की ही लगाई गई थी।