हमारे पूर्वजों ने प्राणि मात्र के कल्याण के लिए वनों व वृक्षों को देव स्वरुप माना-मनोज सिंह
जैव विविधता क्षरण रोकने व जैव विविधता की पुनर्स्थापना हेतु प्रकृति स्वयं सक्षम है तथा इसका समाधान प्रकृति में ही है- संजय सिंह
आगरा।पारिस्थितिकी तन्त्र को बनाए व बचाए रखने में जैव विविधता के महत्त्व व भूमिका के प्रति समाज के प्रत्येक वर्ग को जागरूक व संवेदनशील बनाने, जैव विविधता के संरक्षण से ही मानव अस्तित्व संभव है का सन्देश व्यापक स्तर पर प्रसारित करने तथा जैव विविधता क्षरण व जैव विविधता पुनर्स्थापना की दिशा में किये गये प्रयासों पर आत्ममंथन करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा आगरा में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।
जैव विविधता क्षरण रोकने तथा जैव विविधता पुनर्स्थापना हेतु कुनमिंग मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुरूप तैयार की गई जैव विविधता योजना का अंग बनने हेतु समाज को प्रेरित व जागरूक करने की आवश्यकता के दृष्टिगत अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस, 2024 की विषयवस्तु “जैव विविधता योजना का हिस्सा बनें“ (बी पार्ट ऑफ द प्लान) निर्धारित है। अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। श्री बी० प्रभाकर, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, आगरा/सचिव, उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने मंचासीन अतिथियों का पुष्प देकर स्वागत किया व स्मृति चिन्ह भेंट किया। मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथियों द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा तैयार किये गये ब्रोशर जैव विविधता विरासत स्थल (बी.एच.एस.) का विमोचन किया गया।
सचिव, उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड श्री बी० प्रभाकर ने संगोष्ठी के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला श्री प्रभाकर ने कहा कि भारत जैविक विविधता सम्मेलन (सीबीडी) का एक पक्षकार है। यह एक संहत विधिक रूप से बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है। यह समझौता जैव विविधता से सम्बन्धित समस्त पक्षों की ओर ध्यान आकर्षित करता (एड्रेस्स) है। भारत में सी बी डी के क्रियान्वयन के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय (एमओईएफसीसी) नोडल मन्त्रालय है। वर्ष 2010 में पहुँच और फायदा बंटाना (एबीएस) पर नागोया प्रोटोकॉल। “कुनमिंग मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा“ (के एम जी बी एफ) दिसंबर, 2022 में अंगीकृत की गई। इस रूपरेखा में जैव विविधता के लिए वर्ष 2050 दृष्टि (विजन) से सम्बन्धित वर्ष 2050 के लिए चार दीर्घकालिक उद्देश्य (गोल) निर्धारित हैं। श्री प्रभाकर ने कहा कि जैव विविधता के संकटों को न्यून करना करने हेतु 8 अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। 2- संवहनीय उपयोग और लाभ-साझाकरण के माध्यम से लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु 5 अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। 3-क्रियान्वयन और मुख्य धारा में लाने हेतु उपकरण और समाधान को प्राप्त करने हेतु वर्ष 2030 तक 10 अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। श्री प्रभाकर ने स्थापना के उपरान्त उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा जैव विविधता संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों व कार्यों से भी अवगत कराया।
तकनीकी सत्रों में संजय सिंह, सेवानिवृत्त, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव ने अपने व्याख्यान में कहा कि जैव विविधता क्षरण रोकने व जैव विविधता की पुनर्स्थापना हेतु प्रकृति स्वयं सक्षम है तथा इसका समाधान प्रकृति में ही है। मनुष्य को प्रकृति चक में अनावश्यक हस्ताक्षेप से बचना होगा। श्री ए.के. रस्तोगी, सेवानिवृत्त, प्रधान मुख्य वन संरक्षक और हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स, बिहार ने कहा कि शून्य कार्बन उत्सर्जन की लक्ष्य, पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है। श्री के०पी० दूबे, सेवानिवृत्त, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव ने जैव विविधता आधारित आर्थिकी संरक्षण पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि सम्पूर्ण समाज विशेषकर निर्धन, निर्बल व वंचित वर्गों के लिए आजीविका, खाद्यान्न सुरक्षा एवं आय अर्जन हेतु जैव विविधता संरक्षित करना अपरिहार्य है। श्री मुदित सिंह, सेवानिवृत्त, प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स, छत्तीसगढ़ ने कहा कि जैव विविधता संरक्षण से जलवायु परिवर्तन की दर कम होती है तथा जलवायु परिवर्तन की दर कम होने से जैव विविधता में वृद्धि होती है। इस प्रकार जैव विविधता व जलवायु परिवर्तन की एक दूसरे से बहुत निकटता से जुड़े हुए हैं। इसके दृष्टिगत समाज को जलवायु परिवर्तन की दर न्यून करने व जैव विविधता संरक्षित व संवर्धित करने की दिशा में समेकित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
सुनील चौधरी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, अनुश्रवण एवं कार्ययोजना ने विगत लगभग 150 वर्षों से प्राकृतिक वनों में अवस्थित प्राकृतिक जैवविविधता के संरक्षण हेतु कार्ययोजना की भूमिका व महत्व पर प्रकाश डाला। श्री संजय श्रीवास्तव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव, उत्तर प्रदेश ने प्रदेश में पाई जाने वाली पादप व प्राणि विविधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रदेश में 2932 पादप व 2434 प्राणि प्रजातियों विद्यमान है।
इस अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश श्री सुधीर कुमार शर्मा ने कहा कि जैव विविधता या जैविक विविधता पृथ्वी पर जीवन की किस्मों और परिवर्तनशीलता सन्दर्भित करता है। जैव विविधता स्वयं को तीन स्तरों पर प्रकट करती है आनुवंशिक विविधता प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक भिन्नता को संदर्भित करती है, प्रजाति विविधता जीवित जीवों की संख्या और प्रकार को संदर्भित करती है और पारिस्थितिकी तन्त्र विविधता में प्राकृतवासों की विविधता, जैविक समुदाय और पारिस्थितिक प्रक्रियाएं शामिल हैं। श्री शर्मा ने कहा कि जैव विविधता संरक्षण व संवर्धन में समाज की व समस्त विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वन जैव विविधता दुर्गम व दूरस्थ क्षेत्रों में अवस्थित होने के कारण दुर्लभ वन जैव विविधता के संरक्षण में वन एवं वन्यजीव विभाग की भूमिका विशिष्ट व महत्वपूर्ण है। वन एवं वन्यजीव विभाग एक ओर वनों का वैज्ञानिक प्रबन्धन कर रहा है वहीं दूसरी ओर इस अमूल्य सम्पदा के संरक्षण हेतु विधिक प्राविधानों को भी कड़ाई से लागू करना विभाग का ही दायित्व है। भौगोलिक व जलवायु विविधता के कारण हमारा प्रदेश विभिन्न प्रकार की प्राणि व पादप प्रजातियों का वासस्थल तथा जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध है। हमारे प्रदेश में 2932 पादप प्रजातियां एवं 2434 प्राणि प्रजातियाँ पाई जाती हैं। हमारी पृथ्वी के जैविक मंडल में विभिन्न प्रकार की जलवायु भौगोलिक धरातल एवं वानस्पतिक अवरण है। क्षेत्र की विशिष्टता के अनुरूप विभिन्न वासस्थलों में वनस्पति एवं वन्य प्राणि प्रजातियों पाई जाती हैं। हमारे पूर्वजों ने समस्त प्राकृतिक संसाधनों का जीवन में महत्व व भूमिका को जानते व समझते हुए प्राणि मात्र को ईश्वर का रूप मानते हुए इनके संरक्षण को जीवन व परम्परा का अनिवार्य अंग बनाया। बढ़ते जैविक दबाव के कारण वातावरण में बढ़ती कार्बन की मात्रा के कारण पर्यावरण प्रदूषण जनित प्रतिकूल प्रभावों के प्रति आज सम्पूर्ण विश्व चिन्तित व विचारमग्न है। विभिन्न कार्यक्रमों, योजनाओं के क्रियान्वयन एवं विधिक प्राविधानों के माध्यम से हम एक सीमा तक जैव विविधता को सुरक्षित रखने में सफल हो सकते हैं किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की भावना के अनुरूप जैव विविधता को बचाने हेतु व्यापक स्तर पर जन सहभागिता प्राप्त कर इस दिशा में सुखद परिणाम प्राप्त करने में सफलता प्राप्त होना सुनिश्चित है। प्रदेश में विद्यमान प्राकृतिक जैव विविधता का विस्तार से उल्लेख करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि साल (शोरिया रोबस्टा) के घने वन, घास के मैदान शीशम (डलबर्जिया सिस्सू) की बहुलता वाले घास युक्त वन, सागौन (टेक्टोना ग्रान्डिस), खैर (अकेसिया कटैचू), यूकेलिप्टस, जामुन (साइजिजियम क्यूमिनाई), दलदली क्षेत्र, दीमक की बाम्बियों से आच्छादित क्षेत्र, 550 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 150 से अधिक तितली प्रजातियाँ, आठ गिद्ध प्रजातियाँ, वन क्षेत्रों में सेराविड्स की पाँच प्रजातियां-चीतल (एक्सिस एक्सिस), सॉभर (रूसा यनीक्लोर), मुंतिजैक (मुन्टिजैक), पाड़ा (एक्सिस पोरसिन्स) तथा बारासिंघा, सर्वाधिक संकटापन्न पक्षी बंगाल फ्लोरिकन (होयूबबारोप्सिस बेंगार्लेसिस), हिस्पिड हेयर, सरीसृप की विभिन्न प्रजातियों, एक सींग वाला गैंडा, राष्ट्रीय पशु बाघ, राष्ट्रीय धरोहर हाथी सहित विभिन्न प्राणि व पादप प्रजातियों प्रदेश की वन जैव विविधता को समृद्धि प्रदान कर रही है। प्रथम तकनीकी सत्र में वरिष्ठ वनाधिकारियों तथा द्वितीय तकनीकी सत्र में विभिन्न लाईन डिपार्टमेण्ट्स के प्रतिनिधियों ने अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 2024 की विषयवस्तु “जैव विविधता योजना का हिस्सा बनें“ (बी पार्ट ऑफ द प्लान) के दृष्टिगत जैव विविधता योजना के क्रियान्वयन में जैव विविधता प्रबन्ध समितियों, जन जैव विविधता पंजिका एवं लाईन डिपार्टमेन्ट्स-वन, कृषि, मत्स्य, उद्यान, पर्यावरण, पशुपालन, पंचायती राज एवं नगर विकास की भूमिका व महत्व पर विचार विमर्श किया।
’अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में दीप प्रज्जवलित करने के उपरान्त मुख्य अतिथि अपर मुख्य सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन/अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड श्री मनोज सिंह ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने प्राणि मात्र के कल्याण के लिए वनों व वृक्षों को देव स्वरुप मानते हुए इन संसाधनों की सुरक्षा, रोपण व सिंचन को धर्म, परम्परा, संस्कृति व दैनिक जीवन का अनिवार्य अंग बनाया। वन, वृक्ष, नदियों व वन्य प्राणियों को देवस्वरुप मानते हुए संरक्षित रखने की परम्परा के परिणामस्वरुप प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक जैविक दबाव होने पर भी प्रदेश जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध है। विश्व के सापेक्ष मात्र 2.4 प्रतिशत भूमि एवं विश्व की जनसंख्या का छठवाँ भाग निवास करने पर भी हमारे देश में 45000 से अधिक पादप व 91000 पशु प्रजाति पाई जाती हैं। यह विश्व में पाई जाने वाली प्रजातियों का लगभग 7.8 प्रतिशत है। हमारे प्रदेश में विद्यमान 2932 पादप प्रजातियों तथा 2434 वन्य प्राणि प्रजातियों देश में पाई जाने वाली कुल प्रजातियों का क्रमशः 6.45 प्रतिशत व 2.76 प्रतिशत है। आज सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या के निवारण हेतु विचारमग्न है। ऐसी स्थिति में भारतीय चिन्तन व संस्कृति को अपनाकर वनों व वृक्षों को अभिन्न अंग मानकर इस समस्या का समाधान सरलता पूर्वक किया जा सकता है। श्री सिंह ने कहा कि जैव विविधता की रक्षा करने में हमारा अपना हित है। इस दिशा में सम्मेलन द्वारा समग्र लक्ष्य, नीतियां और सामान्य दायित्व निर्धारित करते समय इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने का उत्तरदायित्व एक सीमा तक स्वयं उन देशों पर ही है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में यद्यपि सरकारें (पर्यावरण, वन, कृषि, मत्स्य पालन, ऊर्जा, पर्यटन आदि के लिए उत्तरदायी मंत्रालयों के माध्यम से) अग्रणी भूमिका का निर्वहन करती है किन्तु जैव विविधता के संवहनीय (सस्टेनेबल) उपयोग एवं संरक्षण में समाज के अन्य क्षेत्रों के चयन और गतिविधियों की भूमिका निर्धारित करने के दृष्टिगत समाज के अन्य क्षेत्रों को भी सक्रिय रूप से शामिल करने की आवश्यकता है। श्री सिंह ने कहा कि “कुनमिंग मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा“ (केएमजीबीएफ) दिसंबर, 2022 में अंगीकृत की गई। इस रूपरेखा में वर्ष 2030 तक प्राप्त किये जाने वाले चार वृहद् उद्देश्य (गोल) और 23 लक्ष्य (टार्गेट) शामिल हैं। रूपरेखा में जैव विविधता के लिए वर्ष 2050 दृष्टि (विजन) से सम्बन्धित वर्ष 2050 के लिए चार दीर्घकालिक उद्देश्य (गोल) निर्धारित हैं। रूपरेखा में वर्ष 2030 तक निर्धारित 23 लक्ष्य (टार्गेट) प्राप्त करने के लिये तत्काल कार्यवाही के लिए 23 कार्यवाही उन्मुख वैश्विक लक्ष्य निर्धारित हैं। प्रत्येक लक्ष्य में निर्धारित गतिविधियों को तत्काल प्रारम्भ कर वर्ष 2030 तक पूर्ण किया जाना है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति से वर्ष 2050 के लिए निर्धारित परिणाम-उन्मुख लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए क्रियान्वयन में निरन्तरता तथा सी बी डी और इसके प्रोटोकॉल और अन्य प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों, राष्ट्रीय परिस्थितियों, प्राथमिकताओं व सामाजिक, आर्थिक स्थितियों के साथ समन्वय होना अनिवार्य है। मुख्य अतिथि अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने इस अवसर पर प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाकर, कार्बन फुट प्रिण्ट न्यून कर, वृक्षारोपण में सहयोग प्रस्तुत कर वेटलैण्ड्स का प्रदूषण मुक्त व अविरल एवं निर्मल प्रवाह सुनिश्चित कर, जैव संसाधनों के संवहनीय उपयोग (सस्टेनेबल यूज) की संस्कृति विकसित कर एवं मिशन लाइफ के अन्तर्गत निर्धारित गतिविधियों का अनुपालन कर क्यूमिंग मॉण्ट्रियल वैश्विक रूपरेखा के अनुरूप जैव विविधता क्षरण की गति को धीमा व जैव विविधता पुनर्स्थापना में सहयोग देकर भावी पीढ़ी के जीवन को स्वस्थ व सुखद बनाने में योगदान दें।