संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। यूपी “साथी एनजीओ बुंदेलखंड की बदहाली दूर करने में तो साथ नहीं निभा” सकी हां “सरकार को जरूर चूना लगाने में कथित तौर पर कामयाब” है? संविधान बचाओ के प्रचार के आड़ में इस “साथी” नें कथित तौर पर “इंडिया गठबंधन का साथी” बनकर “भाजपा को लोकसभा चुनाव में धूल चटा” दिया। इससे इतर भी “साथी संस्था की टीम एवं फंडिंग का सिंहावलोकन” करें तो यहां बांदा नें “65 कर्मचारियों की भारी भरकम भीड़” है। प्रत्येक को “18 हजार रुपये”प्रतिमाह मानदेय भी दिया जाता है। यानी संस्था हर साल एक करोड़ 40 लाख रुपए सैलरी के नाम पर खर्च कर “भाजपा सरकार के लिये मिंया की जूती मिंया का सर” साबित हो रही है? गांवों में इन कर्मियों को “साहस साथी” के नाम जानते हैं। यह गरीबों को सरकारी योजनाओं से लाभ दिलाने के नाम पर “अवैध वसूली भी कर रहे” हैं!
बुंदेलखंड अति पिछड़े क्षेत्र में आता है। विकास के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार से मिलने वाला पैकेज सरकारी बंदरबांट का शिकार हो जाता है! ऐसे में “यूपी साथी सहित कुछ अन्य स्वयं सेवी संस्थाएं यहां चांदी काट”रहीं हैं। कथित तौर पर “कुचर्चित साथी-यूपी और जन साहस संस्था” के गांवों में अपने कार्यकर्ता हैं। इनके मानदेय पर सालाना करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है। “घोर आश्चर्य तो यह है की फंडिंग एजेंसी इन संस्थाओं के कामों की जांच किए बगैर ही “खटखट-फटाफट फंड” दे रही है। आरोप यह भी हैं की संस्था कर्मियों द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं से जोड़ने व लाभ के नाम पर ग्रामीणों से अवैध वसूली भी की जाती है। यह पैसा संस्था में जिला स्तरीय अधिकारियों से लेकर राज्य समन्वयक तक पहुंचाया जाता है?श्रम विभाग में रजिस्ट्रशन करने व श्रम कार्ड बनाने के नाम प्रत्येक व्यक्ति से धन उगाही होती है!ग्रामीणों का कहना है कि संस्था कर्मी चुनावों में उसी पार्टी को वोट डालने को कहते हैं जो संविधान बचाने के लिए काम कर रही है।