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टीबी मुक्त यूपी के लिए जोर लगा रहे आगरा के डॉक्टर्स

  • शीर्ष टीबी नोटिफिकेशन के लिए कर रहे हैं काम
  • डॉक्टर्स डे पर विशेष
    आगरा, डॉक्टर्स को धरती पर भगवान की संज्ञा दी गई है। आखिरकार ईश्वर ने मनुष्य के जटिल शरीर को बनाया है तो डॉक्टर्स ने ही इस शरीर में कोई भी परेशानी होने पर उसे ठीक किया है। इसलिए धरती पर डॉक्टर्स भगवान का ही स्वरूप हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि हर साल देश में भारत के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बीसी रॉय की याद में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर सभी चिकित्सकों को उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के लिए शुभकामनाएं दी।

आगरा को टीबी नोटिफिकेशन में शीर्ष जिलों में पहुंचाया
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. सुखेश गुप्ता ने टीबी नोटिफिकेशन के मामले में आगरा को यूपी के टॉप-5 जिलों में पहुंचा दिया है। डॉ. सुखेश न केवल आगरा में टीबी मरीजों को खोजने और टीबी उपचार को प्रत्येक मरीज तक पहुंचाने के लिए कार्य करते हैं, बल्कि वह खुद टीबी मरीजों से बात करके उनका ढांढस बंधाते हैं और मरीजों को समय से दवा खाने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने बताया कि आगरा को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं। उन्होंने कहा कि यदि किसी को भी टीबी के लक्षण हैं तो वह अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर डॉक्टर से सलाह लें। जनपद में टीबी के जांच व उपचार की सुविधा पूरी तरह से मुफ्त है। इसके साथ ही टीबी मरीजों को निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी मरीजों वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त निक्षय मित्रों के द्वारा भी टीबी मरीजों को गोद लिया जा रहा है। यह योजना काफी कारगर साबित हो रही हैं और टीबी मरीजों को खोजकर उनका उपचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हाल ही में आगरा ने प्रिजेम्टिव टीबी एग्जामिनेशन रेट (पीटीईआर) के मामले में प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। जिसमें आगरा की सालाना टीबी प्रिजेम्टिव टीबी एग्जामिनेशन रेट 2844 रही है।

पूरे यूपी में टीबी उन्मूलन करने के लिए कर रहे हैं काम


एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष और स्टेट टीबी टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि एसएन मेडिकल कॉलेज में ड्रग रसिस्टेंट टीबी की ओपीडी को अलग कर दिया गया है। अब एसएन में 8 चेम्बर्स मैं क्षय एवं वक्ष रोगों के मरीज देखे जाते हैं। ड्रग सेंसिटिव और नॉन टीबी मरीजों को साथ नहीं देखा जाता है। अस्थमा के मरीजों के लिए अलग से क्लीनिक बनाया गया है। उन्होंने बताया कि इसके पीछे का उददेश्य टीबी के संक्रमण को अन्य मरीजों में रोकना भी है। इससे मरीजों को जल्द से जल्द उपचार भी मिल रहा है। उन्होंने बताया कि इस मॉडल को प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी इस मॉडल को लागू किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह प्रदेश के 68 मेडिकल कॉलेजों में क्षय रोग उन्मूलन के कार्यों की देखरेख कर रहे हैं। जिससे कि उत्तर प्रदेश टीबी मुक्त हो सके। उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऑनलाइन टीबी मरीजों को परामर्श देने की सेवा शुरू की गई है।


डॉ. जीवी सिंह को दिल्ली में टाइम्स नाउ डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव 2024 के 7वें संस्करण के दौरान “इंस्पायरिंग चेस्ट स्पेशलिस्ट ऑफ इंडिया” पुरस्कार प्रदान किया गया है। डॉ गजेंद्र विक्रम सिंह को ड्रग रेजिस्टेंस टीबी, अस्थमा एवं स्वाँस संबंधी रोगों के उपचार में विशेष महारत हासिल है।

एसटीडीसी के परामर्शदाता डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि वह टीबी उन्मूलन के लिए बीते 20 साल से कार्य कर रहे हैं। वह अर्ली आइडेंटिफिकेशन यानी टीबी के मरीज को जल्दी से खोज कर उचित इलाज पर रखना के लिए कार्य कर रहे हैं। एसटीडीसी में वह पूरे प्रदेश के टीबी के अधिकारी और कर्मचारियों के प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमतावर्धन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि टीबी का बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है। उन्होंने बताया कि बच्चों को इससे बचाने की ज्यादा जरूरत है। एक बच्चा जब तक टीबी से संक्रमित नहीं होता है जब तक वह टीबी के मरीज के संपर्क में ना आए। उन्होंने कहा कि बच्चों को टीबी से बचाव के लिए बीसीजी का टीका लगवाना चाहिए। इसे लगवाने से टीबी का गंभीर स्वरूप बच्चों को नहीं होगा। उन्होंने कहा कि बच्चा यदि जल्दी थक रहा है, बुखार, खांसी है, खेलने कूदने में रूचि नहीं ले रहा है तो उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर दिखाएं। उन्होंने कहा कि बच्चों आयरन और कैल्शियम युक्त भोजन खिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई बच्चा टीबी मरीज के आसपास रहता है तो बच्चे की भी टीबी की जांच करानी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह एसटीडीसी में चिकित्सकों, एसटीएस को प्रशिक्षण के दौरान यह बातें जरूर बताते हैं, जिससे कि फील्ड स्तर पर बच्चों को टीबी से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि बीते तीन साल से देखा जा रहा है कि बच्चों में टीबी का गंभीर संक्रमण यानी एमडीआर टीबी पाया जा रहा है। दस से 15 परसेंट बच्चों में टीबी का संक्रमण मिल रहा है। हालांकि बच्चों का नौ माह तक ट्रीटमेंट करने पर यह ठीक हो जाता है।