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जब अल्लाह ने दुनिया बनाई, उसी वक़्त से मुहर्रम समेत चार महीने अफ़ज़ल हैं : महम्मद इक़बाल

आगरा | मस्जिद नहर वाली के इमाम मोहम्मद इक़बाल ने आज के जुमा के ख़ुत्बे में इस्लामी कैलेंडर के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हम चंद ही दिनों में हम इस्लामी कैलेंडर के नए साल 1446 हिजरी में दाखिल हो जाएंगे। इंशाअल्लाह। क्या हम इस्लामी कैलेंडर के बारे में कुछ जानते हैं? याद रखें जो क़ौम अपनी तारीख़ को याद नहीं रखती, तारीख़ भी उसे भुला देती है। इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम को हमारे बहुत से भाई एक ख़ास वाक़या की वजह से जानते हैं और इस महीने को अच्छा नहीं समझते, तो वो ये बात जान लें कि अल्लाह ने जब से दुनिया बनाई है तो उसी वक़्त से चार महीने ‛मुहतरम’ (एहतराम वाले) हैं। इन चार महीनों को याद कर लें– ज़ुलक़ादा, ज़ुलहिज्जा, मुहर्रम और रजब। सूरह तौबा आयत नंबर 36 और बुख़ारी की हदीस नंबर 4662 में बताया गया है कि, “जब से अल्लाह तआला ने दुनिया को बनाया उसी वक़्त से चार महीने ‛मुहतरम’ हैं। किसी ख़ास वाक़या की वजह से एहमियत देना यह हमारी कम इल्मी की वजह है। मुहर्रम की पहली तारीख़ को एक अज़ीम सहाबी की शहादत हुई। कितने लोग जानते हैं? जी हाँ, हमारे दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर फारूक़ रज़िअल्लाहु अन्हु की शहादत मुहर्रम की पहली तारीख़ को ही हुई है। यह हमें मालूम नहीं। सिर्फ़ दस तारीख़ हमें याद है। अल्लाह के बंदो! अपनी तारीख़ याद रखो अपने बच्चों को भी याद कराओ। हम सिर्फ रमज़ान, ईद के चाँद तक महदूद होकर रह गए हैं जबकि हर माह चाँद देखने का इंतज़ाम होता है मगर हमें कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर चाँद की तारीख़ का कोई मसला आ जाए तो दूसरों से मालूम करते फिरते हैं। हमें न इस्लामी महीनों के नाम मालूम हैं और न हम तारीख़ का हिसाब रखते हैं। कौन करेगा यह काम? खुद भी याद करें और अपने घर के लोगों को भी याद कराएँ। यह भी एक ज़रूरी हिस्सा है। अल्लाह हमें इसकी तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।