आगरा। मियाँ नज़ीर पार्क मलको गली ताजगंज आगरा में शोहदाए कर्बला कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसकी सदारत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुर रहमान क़ादरी ने की।
कांफ्रेंस की शुरुआत हज़रत क़ारी दिलशाद रज़ा साहब ने कुराने पाक की तिलावत से की जबकि निज़ामत के फ़राइज़ हज़रत मौलाना मंज़र रज़ा साहब सहसवानी ने अंजाम दिए, मेहमाने खुसूसी की हैसियत से कन्नौज से तशरीफ़ लाये हुवे हज़रत मुफ़्ती मोनिस रज़ा साहब क़ादरी ने अपनी तक़रीर में कहा कि “कर्बला के वाक़ेआ से हमारी क़ौम के मर्दों और औरतों को ये सबक़ लेना चाहिए कि हर हाल में न सिर्फ शरीअत का तहफ्फुज़ और बक़ा ज़रूरी है बल्कि उस पर अमल करना भी ज़रूरी है।”
हज़रत मुफ़्ती गुलाम मुईनुद्दीन साहब फ़ैज़ी ने अपने ख़िताब में खुसूसन औरतों के परदे और हिजाब पर बड़ी तफ्सीली गुफ्तगू कि और फ़रमाया “हमारी माँ बहनो को मैदाने कर्बला की उन ख्वातीने इस्लाम से इबरत हासिल करना चाहिए जिन्होंने उन नाजुक हालात में भी आपमें पर्दे का पूरा एहतेमाम किया।”
शोहदाए कर्बला कि बारगाहों में बारी बारी हज़रत क़ारी निसार अख्तर निज़ामी साहब (दिल्ली), मौलाना रईसुल हसन (कन्नौज) और सलमान रज़ा (आगरा) ने खिराजे अक़ीदत पेश किया।
आखिर में सदरे कॉन्फ्रेंस हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुर रहमान साहब क़ादरी ने सभी आने वालो का शुक्रिया अदा किया और फ़रमाया कि “हज़रते इमामे हुसैन और उनके रोफ़क़ा की उस अज़ीम कुरबानी का मक़सद हमे समझना ज़रूरी है। वाक़्या कर्बला हमें बताता है कि जो क़ौम कुरबानी देती है वो हमेशा ज़िंदा रहती है।”
क़त्ले हुसैन अस्ल में मरगे यज़ीद है,
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद।
सलातो सलाम और दुआ के बाद 2:30 बजे रात कांफ्रेंस का इख़्तिताम हुआ।
इस कांफ्रेंस में हज़रत मौलाना शब्बीर अहमद मिस्बाही, क़ारी अब्दुल शकूर, क़ारी इरफ़ान, हाजी मुहम्मद यामीन, हाजी आसिम बेग, ममनून अहमद कुरैशी, मुहम्मद उसामा, परवेज़ अहमद, राहत सलीमी, रहबर मुईन , रज़ी मुईन ,फसाहत मुगीस , सिफाहत खान, शादाब अहमद, आफताब कुरैशी ख़ास तौर से शरीक रहे।