उत्तर प्रदेशजीवन शैली

जुलूस-ए-हुसैनी


शहीदान ए करबला की याद में

आगरा।ख़ानक़ाह क़ादरिया चिश्तिया नियाज़िया,आस्ताना हज़रत मैकश सेब का बाज़ार,आगरा के सज्जादा नशीन हुज़ूर सय्यद अजमल अली शाह क़ादरी नियाज़ी की सरपरस्ती मे जुलूस ए हुसैनी नमाज़ ईशा के बाद ऐतिहासिक फूलों के ताज़िए की हाज़री के लिये मेवा कटरा से रवाना होगा.
जुलूस ए हुसैनी को खिताब करते हुए सैय्यद फैज़ अली शाह ने कहा कि आज इस्लाम के पवित्र माह मुहर्रम की नवीं तारीख है.कल के दिन 10 तारीख़ को रोज-ए-आशुरा भी कहा जाता है. मुहर्रम की दसवीं तारीख को ही पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन क्रूर शासक यजीद से कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे. इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर मातम जुलूस और ताजिया निकालते हैं. 


इस्लाम के पवित्र माह मुहर्रम की दसवीं तारीख यानी रोज-ए-आशुरा के मौके पर शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालकर इमाम हुसैन की कुर्बानी का गम मनाते हैं. इमाम हुसैन इस्लाम के आखिरी नबी पैगंबर मुहम्मद के नवासे थे.
कर्बला में क्रूर शासक से हुई थी इमाम हुसैन की जंग 
इस्लामिक जानकारियों के अनुसार, करीब 1400 साल पहले कर्बला की जंग हुई थी. यह इस्लाम की सबसे बड़ी जंग में से एक है. इस जंग में इमाम हुसैन धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे. कर्बला की यह जंग अत्याचारी शासक यजीद के खिलाफ थी. 

                     दरअसल, यजीद इस्लाम धर्म में न्याय और इंसानी मुल्यों ख़ुदा की किताब और पैग़बर मोहम्मद रसूल अल्लाह के सिधान्तो के स्थान पर ज़ुल्म तानाशाही मनमाने तरीक़े पर शासन चलाना चाहता था. इस राह मे सबसे बड़ी रूकावट हज़रत इमाम हुसैन थे जो ज़ुल्म और तानाशाही के ख़िलाफ थे कु़रान के उसूल पर शासन करने की वकालत करते थे जैसा के इस्लाम के पहले 5ख़लीफा करते आये थे उसकी आमानविय और क्रूर शासन व्यवस्ता को देखते हुये यजीद को समर्थन नहीं दिया और उससे दूर रहे यज़ीद जानता था उन के समर्थन के बिना समाज मे उसे इज़्जत हासिल नहीं होगी पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन उस समय इस्लाम की सबसे बड़ी शख़्सियत थे नबी मौहम्मद साहब के सही उत्तराधिकारी थे .यजीद ने फरमान जारी किया कि इमाम हुसैन और उनके सभी साथी यजीद को ही अपना खलीफा मानें. यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन ने अगर किसी तरह उसे अपना खलीफा मान लिया तो वह आराम से राज कर सकता है.


                       हालांकि, पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को यह फरमान मंजूर नहीं था. इमाम हुसैन ने साफ तौर पर ऐसा करने से इनकार कर दिया. यजीद को इस बात पर काफी गुस्सा आया और उसने इमाम हुसैन व उनके साथियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए.
मुहर्रम की 10 तारीख को कर्बला में यजीद की फौज ने हुसैन और उनके साथियों पर हमला कर दिया. यजीद की सेना काफी ताकतवर थी, जबकि हुसैन के काफिले में सिर्फ 72 लोग ही थे.
इमाम हुसैन धर्म की रक्षा करते हुए आखिरी सांस तक यजीद की सेना से लड़ते रहे. इस जंग में हुसैन के 18 साल के बेटे अली अकबर, 6 महीने के बेटे अली असगर और 7 साल के भतीजे कासिम को भी बेरहमी से शहीद कर दिया गया.

                  जुलूस ए मुहम्मदी में  मुख्य रूप से सय्यद शमीम अहमद शाह ,सय्यद शब्बर अली शाह,सय्यद शफख़त अहमद ,सय्यद मोहत्शिम अली अबूल उलाई, सय्यद महमूद उज़्ज़मा,सय्यद अशफाख़ सय्यद इरफान सलीम सय्यद ग़ालिब अली शाह, निसार अहमद अमिर क़ादरी,हाजी इम्तियाज़,निसार अहमद,ज़ाहिद हुसैन,,बरकत अली, हाज़ी अल्ताफ हुसैन यामीन शाहरूख़ उस्मानी ,दानिश नियाज़ी ताबिश नियाज़ी शारिक़ नियाज़ी,अख़्तर उवैसी,लईख़ उवैसी,नायाब उवैसी,ऐजाज़ उद्दीन,चाँद अब्बासी,जमाल अहमद, सनी(जावेद), जमील उद्दीन ,अमिर,शादाब,अयान,शमीम,ख़ावर हाशमी, अज़हर उमरी, शमीम,शहीन हाशमी,हाज़ी तौफीक़ मुबारक अली,,असलम सलीमी अरशद मोहसिन अदिल नियाज़ी, एडवोकेट यामीन क़ादरी आदि अशिक़े इमाम हुसैन  मौजूद रहे।