बरेली,आज दरगाह आला हज़रत पर आला हज़रत के छोटे साहिबजादे मुफ्ती आज़म हिंद हज़रत अल्लामा मुस्तफा रज़ा खा क़ादरी नूरी रहमतुल्लाह का 44 वा एक रोज़ा उर्स- ए-नूरी बड़े ही अदब-ओ-एहतिराम के साथ दरगाह परिसर में मनाया गया। बाद नमाज़-ए-फज्र कुरानख्वानी दिन में नात-ओ-मनकबत का दौर चला। देर रात एक बजकर चालीस मिनट पर मुफ्ती-ए-आज़म के कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। सभी प्रोग्राम दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान(सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती,सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी(अहसन मियां) की सदारत और सय्यद आसिफ मियां की देखरेख में सम्पन्न हुए। उर्स में शिरकत के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में अकीदतमंद दरगाह पर हाज़िरी देने पहुंचे। गुलपोशी और फातिहाख्वानी के बाद मुल्क में अमन खुशहाली के लिए दुआ की।
मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि बाद नमाज़ मगरिब हाजी गुलाम सुब्हानी ने मिलाद का नज़राना पेश किया। संचालन(निजामत) कारी यूसुफ रज़ा संभली ने किया। महफ़िल का आग़ाज़ रात 10 बजे मौलाना जहीम मंजरी ने तिलावत-ए-कुरान से किया। इसके बाद मुल्क भर से आए उलेमा व शोहरा ने कलाम पेश किए। मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी ने सबसे पहले कर्बला के शहीदों को खिराज पेश किया। इसके बाद मुफ्ती आज़म हिंद की रूहानी जिदंगी पर रोशनी डालते हुए कहा कि आप बड़े ही फकीह और मुत्तकी(परहेजगार) थे। आपने अपने वालिद सरकार आला हज़रत के मिशन पर काम करते हुए मज़हब और सुन्नियत के साथ समाज सुधार के कामों को भी अंजाम दिया। मुल्क-ए-हिंदुस्तान में बटवारे के बाद धार्मिक,राजनीतिक और सामाजिक उथल पुथल मची थी। समाज में बुराइयां पैदा हो गई। लोगो में नफ़रत की दीवार चौड़ी हो गई थी। ऐसे वक्त में मुफ्ती आज़म हिंद ने दीन में आई खराबियों के साथ-साथ समाज को जोड़ने का भी काम किया। मुहब्बत से नफरतों को खत्म किया। समाज के हर तबके के लोगों के लिए आपने काम किया। आपके दर से हिंदू-मुसलमान कोई खाली नही लौटा।
मौलाना मुख्तार बहेडवी ने अपने खिताब में कहा कि आपका तकवा और फतवा बेमिसाल था। आपका सबसे बड़ा कारनाम ये थे कि अपने देश भर के सभी सुन्नी खानकाहों को एक करने का काम किया फिर वो चाहे किसी भी सिलसिले से ताल्लुक रखती हो। सभी आपके फतवे को मानते थे। किसी भी इक्तेलाफ में आपका जो भी फैसला होता सभी उस पर अमल करते। शुद्धि आन्दोलन के दौर में मुफ्ती आज़म का अहम रोल रहा है। आपने अपनी जिंदगी में लाखों फतवे लिखे उनमें से किसी एक भी फतवे में रूजू (रद्दो-बदल) की ज़रूरत पेश नही आई। नसबंदी के खिलाफ दिया गया आपका फतवा पूरे देश में बड़ा मशहूर हुआ। मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के सदर मुफ्ती आकिल रज़वी,मुफ्ती अय्यूब नूरी,मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी,कारी अब्दुर्रहमान क़ादरी, कारी सखाबत मुरादाबादी,मौलाना डॉक्टर एजाज़ अंजुम आदि ने की भी तकरीर हुई। नबीरे खालिद ए मिल्लत सैफ रज़ा खान(सैफी मियां),शायर ए इस्लाम फारूक मदनापुरी,महशर बरेलवी,आसिम नूरी ने नात ओ मनकबत का नजराना पेश किया। देर रात 1 बजकर 40 मिनट पर कुल शरीफ की रस्म अदा की गई।
सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने देश दुनिया में अमन ओ शांति और खुशहाली के लिए खुसूसी दुआ की।
इस मौके पर सय्यद आसिफ मियां,मुस्तअहसन रज़ा खान,अहसान रज़ा खान,काज़ी ए शहर भीलवाडा मुफ्ती अशरफ जिलानी,पूर्व मंत्री अनीस अहमद फूलबाबू,मोअज्जम रज़ा खान,सय्यद मुस्तफा मियां,राशिद अली खान,मौलाना अबरार उल हक,सय्यद अनवारूल सादात मौजूद रहे। उर्स की व्यवस्था टीटीएस के शाहिद खान नूरी,नासिर कुरैशी, औररंगज़ेब नूरी,अजमल नूरी,ताहिर अल्वी,परवेज़ नूरी,हाजी जावेद खान,शान रज़ा,मंजूर रज़ा,मुजाहिद रज़ा,अब्दुल माजिद,आलेनबी,इशरत नूरी,सबलू अल्वी,आरिफ अल्वी,साकिब रज़ा,रोमान खान,सुहैल रज़ा,अरबाज रज़ा,हाजी शकील,गौहर खान,मोहसिन रज़ा,अजमल रज़ा, समी खान,हाजी अब्बास नूरी,नफीस खान,हाजी शारिक नूरी,तारिक सईद,साजिद नूरी,मुस्तकीम नूरी,काशिफ सुब्हानी,सय्यद माजिद,सय्यद एजाज़,शाद रज़ा,जुनैद मिर्जा,गजाली रज़ा,हाजी फय्याज नूरी,आसिम रज़ा आदि ने संभाली।