लखनऊ।हर बार की तरह इस बार का भी बजट सिर्फ जुमलों और हवाई दावों के अलावा कुछ भी नहीं। देश की सभी बड़ी समस्याओं फिर चाहे युवाओं के रोजगार की बात हो, किसानों की बात हो, य फिर महंगाई की बात हो किसी भी समस्या के निवारण का स्पष्ट रोड़ मैप नहीं है। पिछले बजट में जो वादे किय गये थे, जो योजनाएं घोषित हुई थी, उनकी कोई चर्चा न करते हुए फिर से नये वादे नई घोषणाएं। उक्त बातें बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व मंत्री अजय राय ने कहीं।
राय ने कहा कि 2023 और 2024 का बजट भाषण ध्यान से देखते हुए कई झूठ यूहीं पकड़ में आ जाते हैं जैसे पिछले बजट में भी यह वादा किया गया था कि प्राकृतिक खेती की जद में एक करोड़ किसान लाये जायेंगे अगले तीन वर्षों में और इस बार उसी वादे को फिर से दोहराया गया है, यह कहते हुए कि 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती की जद में लाया जायेगा तो इसका मतलब यह स्पष्ट है कि पिछले 1 वर्ष में इस योजना पर कोई काम नहीं हुआ। इसी तरीके से पिछले बजट में 10 हजार बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर खोलने की बात कही गई थी जो इस बार के बजट में भी दोहराई गई है। स्पष्ट है कि 1 साल में कोई भी रिसोर्स सेंटर नहीं खोला गया है। पिछले 10 सालों में मोदी जी की बहुचर्चित स्मार्ट सिटी परियोजना की चर्चा बंद हो चुकी है क्योंकि इनकी लगभग सभी स्मार्ट सिटी की हालत यह है कि पहली ही बारिश के बाद वहां नाव चलने की नौबत आ जा रही है। इसीलिए इस बजट में स्मार्ट सिटी की बात न करके शहरों को विकास केन्द्र के रूप में विकसित करने के नए वादे की बात की जा रही है।
राय ने कहा कि जनता की राय से बनाये गये कांग्रेस पार्टी का न्याय पत्र से कुछ न्याय वादों को लेने की कोशिश तो की गई परन्तु वह कोशिश अधूरी ही रही जैसे अगले पांच सालों में 1 करोड़ युवाओं को अप्रेंटिसशिप 66 हजार रूपया प्रतिवर्ष की स्टाईपेंड के साथ देने की बात कही जा रही है। सच तो यह है कि हमने अपने न्याय पत्र में एक लाख रूपये वार्षिक स्टाईपेंड के साथ सभी डिग्री/डिप्लोमा धारकों को यह अप्रेंटिसशिप देने की बात कही थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ एमएसएमई के लिए सिवाय लोन देने के कोई भी स्पष्ट योजना नहीं दिख रही। पहले से ही ऋण जाल में डूबे एमएसएमई को सहारे की जरूरत है न कि ऋण की। अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों कैपिटल गेन टैक्स को बढ़ाये जाने से न सिर्फ बाजारों को नुकसान होगा बल्कि मध्य वर्ग की बचत करने की प्रवृत्ति को भी ठेस पहुंचेगी। ग्रामीण बेरोजगारी पर सबसे कड़ा प्रहार करने वाली यूपीए की परियोजना मनरेगा की कोई चर्चा बजट भाषण में नहीं है।
अजय राय ने कहा कि कोरोना की विभीषिका के बाद यह समझ आया था कि देश में एक उन्नत स्वास्थ्य इन्फ्रास्टैक्चर सख्त जरूरत है। मगर साल दर साल जिस तरीके का उदासीन रूख सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर अपनाया हुआ है वह बहुत ही निराशाजनक है। भारत में सरकारी अस्पतालों के बुरे हाल के कारण आम आदमी को भी निजी अस्पतालों पर ही निर्भर होना पड़ता है। जिसके कारण एक बड़ी आबादी सिर्फ इलाज कराने के कारण कर्ज में डूब जाती है। इस बजट में शिक्षा को लेकर भी कोई बहुत उत्साहजनक योजनाएं नहीं दिख रही और तो और उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का बजट पिछले वर्ष की तुलना में 60 प्रतिशत तक घटा दिया गया।
राय ने कहा कि मोदी सरकार के पास इस देश के विकास को लेकर कोई स्पष्ट दृष्टि नहीं है, न ही उनकी कोई नियत है। भारत जैसा युवा देश युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रहा है, आम आदमी को महंगाई से राहत नहीं दे पा रहा, किसानों को उनकी उपज का मूल्य नहीं दे पा रहा, आदिवासी को जल, जंगल जमीन नहीं दे पा रहा है। हर बार की तरह इस बार का भी बजट सिर्फ और सिर्फ निराश करता है।