संवाद।। तौफीक फारूकी
फर्रुखाबाद -पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत तहसीन सिद्दीकी लेख
प्यार, यह एक ऐसा एहसास है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। जब दिल में किसी के लिए प्यार की किरणें फूटने लगती हैं, तो यह एक ऐसी भावना बन जाती है जो जीवन को पूरी तरह से बदल देती है। प्यार में एक अद्भुत मिठास होती है, एक अनकही जुड़ाव और एक अदृश्य डोर जो दो दिलों को आपस में बांध देती है।
लेकिन, क्या प्यार को किसी नाम की जरूरत होती है? क्या उसे रिश्तों के बंधनों में बांधना जरूरी है? शायद नहीं। प्यार तो एक पवित्र एहसास है जो दिलों के बीच में खुद-ब-खुद पनपता है। यह उस गाने की तरह है जिसे सुनकर दिल खिल उठता है, उस कविता की तरह है जो आत्मा को छू जाती है।
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो। इस सच्चाई में एक अनूठी सुंदरता है। बिना किसी नाम के प्यार का जादू और भी गहरा हो जाता है। यह उस खुशबू की तरह है जो हवा में बिखर जाती है, उस रोशनी की तरह है जो अंधेरे को चीर देती है। प्यार को किसी बंधन में बांधना, उसकी खूबसूरती को सीमित कर देना है।
प्यार तो बस प्यार है, उसे किसी परिभाषा की जरूरत नहीं होती। जब हम प्यार को नाम देते हैं, तो हम उसे किसी रिश्ते की सीमा में बांध देते हैं। यह सीमाएं अक्सर प्यार की आजादी को कम कर देती हैं। जब दिल किसी को सच्चे मन से चाहता है, तो वह चाहत ही काफी होती है। यह चाहत किसी नाम, किसी बंधन या किसी रिश्ते की मोहताज नहीं होती।
याद रखिए, प्यार को परिभाषित करना, उसे सीमित कर देना है। प्यार एक नदी की तरह है जो अपने रास्ते खुद बनाती है, एक हवा की तरह है जो बेधड़क बहती है। इसे किसी नाम की जरूरत नहीं। यह दिल की गहराइयों से निकलता है और बिना किसी बंधन के बहता रहता है।
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो। यही उसकी असली खूबसूरती है। यही उसकी सच्चाई है। यही उसकी ताकत है। प्यार को बिना नाम के, बिना बंधन के जीओ और उसकी मधुरता को महसूस करो। यही जीवन का असली सार है।