संवाद।। सादिक जलाल(8800785167)
प्रकाशन जगत की श्रेष्ठता को दिया गया यह सम्मान
तकनीकी और प्रकाशन उद्योग में इनोवेशन को लेकर की गई चर्चा
फिक्की ने उत्कृष्ट योगदान को सम्मानित करने के लिए किया यह आयोजन
नई दिल्ली। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने गुरुवार को “पब्लिकॉन 2024” का आयोजन किया, जो प्रकाशन उद्योग को समर्पित एक कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम फेडरेशन हाउस, तानसेन मार्ग, नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का विषय ‘प्रकाशन के भविष्य को आकार दे रही तकनीक(प्रौद्योगिकी)’ था। फिक्की पब्लिशिंग अवार्ड्स’ भी प्रस्तुत किए गए, जो विभिन्न श्रेणियों में प्रकाशकों के उत्कृष्ट योगदान को पहचानने और सम्मानित करने के लिए आयोजित किए गए थे।
पूर्व सचिव – SERB एवं वरिष्ठ सलाहकार, डीएसटी, भारत सरकार, डॉ. अखिलेश गुप्ता ने कहा, “भारत ओपन साइंस पॉलिसी को पूरी तरह से अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है, जिसमें सीखने, अनुसंधान संसाधनों और डेटा का साझा करना शामिल है। सरकार ने पहले ही कई पहलें की हैं, जैसे वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS), I-STEM, NPTEL, SWAYAM, जो ओपन एक्सेस को सुगम बनाने के लिए हैं।”
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार की अतिरिक्त महानिदेशक, श्रीमती शुभा गुप्ता ने कहा, “इस साल का पब्लिकॉन थीम, ‘प्रकाशन के भविष्य को आकार देने वाली तकनीक’, अत्यधिक प्रासंगिक है और प्रकाशन उद्योग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। आज की चर्चाएं सभी प्रतिभागियों के लिए ज्ञानवर्धक अनुभव होंगी। पुराने लोगों के लिए छपी हुई किताबें अब भी सर्वोत्तम अनुभव हैं, लेकिन नई पीढ़ी प्रौद्योगिकी से जुड़ी है, इसलिए पढ़ने की सामग्री उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप होनी चाहिए। यह सम्मेलन हमारे लिए अवसर है कि हम अपनी सीमाएं बढ़ाएं और नई पीढ़ी के पाठकों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें।”
एफआईसीसीआई पब्लिशिंग कमेटी की सह-अध्यक्ष एवं एमबीडी ग्रुप की प्रबंध निदेशक, श्रीमती मोनिका मल्होत्रा कंधारी ने कहा, “मुझे इस कार्यक्रम का आयोजन करने और इसकी थीम निर्धारित करने का सम्मान मिला है। हर साल फिक्की ने ऐसे प्रासंगिक विषय चुने हैं जो उद्योगों की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि कैसे तकनीक ने हमारी पहुंच को वैश्विक बना दिया है। हमें अपने अनुभवों और कौशल को साझा करने का एक अनूठा अवसर मिला है। मुझे आशा है कि हम आज के सत्रों से बहुत कुछ सीखेंगे।”
एफआईसीसीआई पब्लिशिंग कमेटी के सह-अध्यक्ष एवं हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया लिमिटेड के सीईओ, श्री अनंथ पद्मनाभन ने कहा, ” ” सबसे पहले, मैं सभी भाग लेने वाले प्रकाशकों का आभार व्यक्त करना चाहता हूं। अधिकांश लेखक और प्रकाशक अपने कार्यालयों की चार दीवारी में काम करते हैं, इसलिए सार्वजनिक मंचों पर पहचान मिलना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे लेखक व्यापक दर्शकों तक पहुंच पाते हैं और प्रकाशकों को भी लाभ होता है। मैं सभी प्रकाशकों से नियमित रूप से सहभागिता की अपील करता हूं। किताबें और शिक्षा जीवन बदलने का एक मूल स्रोत हैं। हमारे पास 200 मिलियन वरिष्ठ नागरिक और लगभग 250 मिलियन स्कूली बच्चे हैं। फिर भी, हम जितनी किताबें बेच सकते हैं, उतनी नहीं बेच रहे हैं। इसका एक कारण पुस्तक की लागत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पुस्तकें सस्ती हों और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचें।”
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक, डॉ. अनिर्बान दास ने कहा, “”भारत भर में, हस्तलिखित पांडुलिपियों के साथ हम चार प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। पहली चुनौती पांडुलिपियों की विशाल मात्रा है, जो प्रबंधन और संरक्षण को कठिन बनाती है। दूसरी चुनौती यह है कि पात्रों के लिए एक स्पष्ट दिशा की कमी है, जिससे कथा की धारा बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। तीसरी चुनौती यह है कि केवल कुछ लोगों के पास इन ग्रंथों को सही तरीके से संपादित करने के लिए आवश्यक कौशल है। और अंततः यह कार्य अत्यंत समय-साध्य है, जिसके कारण कई मूल्यवान पांडुलिपियाँ समय के साथ खो चुकी हैं। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें इन पांडुलिपियों को प्रभावी ढंग से संभालने और संरक्षित करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों की आवश्यकता है। पब्लिकॉन इस पर चर्चा करने के लिए एक आदर्श मंच है।”
डीन और निदेशक, प्रो. (डॉ.) रमेश सी. गौर ने कहा, “कंप्यूटरों की शुरुआत के बाद, पहली लाइब्रेरी 1965 में अस्तित्व में आई। इंटरनेट क्रांति ने परिदृश्य को नाटकीय रूप से बदल दिया, लेकिन 21वीं सदी में डिजिटलीकरण के साथ प्रौद्योगिकी का वास्तविक प्रभाव महसूस हुआ है। आज, पुस्तकालय 80% तकनीक और 20% पारंपरिक तरीकों से बने हैं।”
विशेष संबोधन निम्नलिखित विषयों पर भी आयोजित किए गए:
- ओपन एक्सेस को आगे बढ़ाने में प्रकाशन प्रौद्योगिकी की भूमिका
- रचनात्मकता बनाम प्रौद्योगिकी: क्या जनरेटिव AI लेखकों की जगह ले सकता है?
- भारतीय पांडुलिपियों को पुनर्जीवित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका
- प्रिंटिंग उद्योग में उभरती प्रौद्योगिकियां
- क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन के लिए प्रौद्योगिकी एक सक्षम साधन के रूप में
- डिजिटल युग में स्व-प्रकाशन प्लेटफार्मों का विकास और प्रभाव
- पुस्तकालयों के भविष्य को आकार देने वाले तकनीकी रुझान
इस कार्यक्रम ने उद्योग लीडर्स, सरकारी अधिकारियों और साहित्य प्रेमियों को प्रकाशन के बदलते परिदृश्य और इसके शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार पर प्रभाव के बारे में गहन बातचीत में शामिल होने के लिए एक मंच प्रदान किया।