उत्तर प्रदेशराजनीति

शाही ईदगाह-श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन- शाहनवाज़ आलम

1968 में ही श्रीकृष्ण सेवा संस्थान और मस्जिद पक्ष के बीच समझौता हो चुका है

कांग्रेस पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध

लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और श्रीकृष्ण जन्मभूमि वाद में हिंदू पक्ष द्वारा मस्जिद की भूमि पर दावे की माँगों को पोषणीय बताते हुए स्वीकार कर लिए जाने को अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन बताया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को भी इसकी रक्षा के लिए आगे आना चाहिए.

कांग्रेस मुख्यालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 स्पष्ट तौर पर कहता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन तक जो भी पूजा स्थल जिसके भी कस्टडी में है वो यथावत बरकरार रहेगा, उसके चरित्र में कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता। इसे चुनौती देने वाली कोई भी याचिका किसी न्यायालय, किसी प्राधिकरण या किसी ट्रीब्यूनल में स्वीकार भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि बावजूद इस निर्देश के देश देख रहा है कि निचली अदालतें लगातार उसका उल्लंघन कर रही हैं और सुप्रीम कोर्ट चुप्पी साधे हुए है। उन्होंने कहा कि यह पैटर्न तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद बोबड़े के समय से ही चल रहा है और मौजूदा मुख्य न्यायाधीध के कार्यकाल में और तेज़ हुआ है. उन्होंने कहा कि आरक्षण से लेकर पूजा स्थल अधिनियम तक ऐसे कई उदाहरण सामने हैं जिससे यह संदेश जा रहा है कि जो काम सरकार खुद नहीं कर पा रही है उसे अदालत से करवाने की कोशिश कर रही है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि इस मामले में श्रीकृष्‍ण सेवा संस्‍थान ने 1968 में ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता करके तय कर लिया था कि उक्त जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। दोनों पक्षों के इस निर्णय से वहाँ अब तक शांति बनी हुई है। अब अगर कोर्ट के सहयोग से इस शांति में विघ्न डाला जाता है तो इससे ज़्यादा दुखद कुछ नहीं हो सकता।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भी कहा है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 हमारे संविधान के मौलिक ढांचे को मजबूत करता है। गौरतलब है कि खुद सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी संविधान बेंच का फैसला है कि संविधान के मौलिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। ऐसे में अगर पहले बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद, बदायूं की जामा मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिदऔर अब मथुरा के शाही ईदगाह के चरित्र को बदलने की कोशिश निचली अदालतों के जरिये की जा रही है और उस पर सुप्रीम कोर्ट चुप है तो यह इस बात का संकेत है कि असंवैधानिक तरीके से संविधान के मौलिक ढांचे में बदलाव का रास्ता तैयार किया जा रहा है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस संदर्भ को इस तथ्य से काटकर नहीं देखा जा सकता कि भाजपा के दो सांसद संविधान की प्रस्तावना को बदलने की मांग वाले प्राइवेट मेंबर बिल राज्य सभा में ला चुके हैं और उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड भी संविधान के मौलिक ढांचे को बदलने की बात कह चुके हैं।

उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा के लिए ज़रूरी है कि इंडिया गठबंधन के सभी दल पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा के लिए एकजुट हों क्योंकि बुनियादी ढांचे के ध्वस्त होते ही सरकार आरक्षण भी हमेशा के लिए खत्म कर देगी.