उत्तर प्रदेशराजनीति

 एससी-एसटी आरक्षण के बंटवारे का फैसला संविधान विरोधी- शाहनवाज़ 

लखनऊ.एससी और एसटी आरक्षण में वर्गीकरण का सुप्रीम कोर्ट का आदेश आरक्षण के सामाजिक आधार को खत्म कर उसे आर्थिक आधार प्रदान करने की साज़िश का हिस्सा है. इसीलिए इसे न्यायिक फैसले के बजाए राजनीतिक फैसला कहा जाना चाहिए. यह बाबा साहब के सामाजिक न्याय के सपने पर आरएसएस का अब तक का सबसे बड़ा हमला है जो उसने न्यायपालिका के एक हिस्से को आगे करके किया है.

ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 156 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके थे कि भाजपा एससी और एसटी के आरक्षण में बंटवारा करना चाहती है. यह फैसला मोदी सरकार की मंशा के अनुरूप है. सबसे अहम कि बाबा साहब अंबेडकर ने बहुत प्रयासों से दलितों के आरक्षण को केंद्र का विषय बनाया था इसलिए इस फैसले द्वारा दलितों के आरक्षण को राज्यों के हवाले कर देना बाबा साहब के सपने की हत्या करने के बराबर है. जिसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती.

उन्होंने कहा कि एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट सामाजिक तौर पर मजबूत श्रेणि में गिने जाने वाले सवर्णों के लिए ईडब्ल्यूएस की श्रेणि में आरक्षण देने का फैसला देता है लेकिन दूसरी तरफ दलित और आदीवासी वर्गो के लिए सामाजिक आधार पर तय किये गए आरक्षण को आर्थिक आधार पर बांटना चाहता है. इस अंतरविरोध से सुप्रीम कोर्ट की मंशा संदिग्ध हो जाती है. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी तर्क सुप्रीम कोर्ट नहीं दे पाया है जिससे इस फैसले को संविधान सम्मत कहा जा सके. लोगों में ऐसी चर्चा है कि आरएसएस का गीत गाने वाले दलित समाज से आने वाले जस्टिस गवई का मुख्य न्यायाधीश बनना तय हो गया है. ऐसी धारणा का बनना न्यायपालिका की छवि को खराब करता है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि एससी-एसटी के आरक्षण को बाँटने का फैसला सुनाने वाले जजों का रिकॉर्ड भी सार्वजनिक होना चाहिए. इसमें से एक पंकज मित्तल जम्मू कश्मीर के मुख्य नयायाधीश रहते संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द के होने को देश के लिए कलंक बता चुके हैं. जिन्हें हटाने की मांग को अनसुना कर उन्हें उल्टे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ संयोग नहीं हो सकता कि यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ यानी मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के पिता जब 1978 से 1985 के बीच मुख्य न्यायाधीश थे तभी 1979 में बीएन कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था और जब बीएन कृपाल कॉलेजियम के सदस्य थे तब
डीवाई चंद्रचूड़ को मुंबई हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. उन्होंने कहा कि देश के लिए सबसे घातक आरक्षण तो कॉलेजियम व्यवस्था में चल रहा है जिसके चलते जजों के बच्चे पीढ़ी दर पीढी जज बनते जा रहे हैं और सरकारों के अनुकूल फैसले देकर गवर्नर और सांसद बन जा रहे हैं.