बरेली। दरगाह आला हजरत के सबसे पुराने संगठन जमात रजा ए मुस्तफा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व उर्स प्रभारी सलमान हसन खान (सलमान मियां)* ने बताया कि आला हजरत इमाम अहमद रज़ा अलेहिर्रहमा ने जमात रज़ा-ए-मुस्तफा को 1920 में क़ायम किया था | यह वह वक्त था कि जब मुल्क-ए-हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों की हुकूमत थी और उस वक्त बरेली के ताजदार ने हिन्दुस्तान के कोने- कोने से उलेमाए अहले सुन्नत को एक प्लेटफार्म पर इकट्ठा किया | जिसके बाद दीनो सुन्नियत और मसलक व मजहब के साथ ही मुसलमानों के दीनी व दुनियावी मसाइल को हल करने के लिए एक तहरीक की बुनियाद रखी | जिसका नाम जमात रजा ए मुस्तफा रखा | जिसके बाद से उनके बताए रास्ते पर आज भी दुनिया भर के मुस्लिम आगे बढ़ रहे हैं | उनका शिक्षा, धर्म, मानवता प्रति योगदान हमेशा से रहा साथ ही उन्होंने जो किताबें लिखीं, वह आज भी देश और दुनिया में उनके मुरीद व दूसरे मज़हब के लोगो के द्वारा पढ़ी जा रही हैं | उन्होंने बताय कि दुनियाभर से लोग उर्स में शिरकत के लिए तैयारियां कर चुके हैं खासकर पाकिस्तान, यमन व बांग्लादेश जैसे अन्य देशो के अकीदतमंदों को वीसा नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से वह लोग अपने देशों में बड़े पैमाने पर उर्से आला हज़रत मनाएंगे और हुज़ूर काईदे मिल्लत से ईमेल व सोशल मीडिया के माध्यम से दुआ की गुज़ारिश कर रहे हैं |
जमात रजा ए मुस्तफा के राष्ट्रीय महासचिव फरमान हसन खान (फरमान मिया ) ने कहा कि आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी एक भारतीय इस्लामी विद्वान, धर्मशास्त्री, न्यायविद्, उपदेशक, बरेली, ब्रिटिश भारत के कवि थे, जिन्हें बरेलवी आंदोलन और कादरी सूफ़ी आदेश की रज़वी शाखा का संस्थापक माना जाता है। बरेलवी आंदोलन को अहल अल-सुन्नत वल-जमात रूप में भी जाना जाता है | आला हज़रत के उर्स को ही दुनियाभर में उर्से रज़वी के नाम से जाना जाता है | 106 वा उर्स ए रजवी करीब है जिसको लेकर देश-विदेश से लाखो उर्स में शिरकत के लिए अकिदतमन्द बरेली पहुचेगे | उन्होंने कहा कि उर्से रज़वी में आने वाले ज़ायरीन का इंतेज़ाम बड़े लेवल पर मथुरापुर स्थित इस्लामिक स्टडी सेण्टर में किया गया है |