जीवन शैली

आज 5251 वर्ष के हुए भगवान श्रीकृष्ण

आगरा। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आज 5251 साल के हो गए उनका जन्मोत्सव ब्रज ही नहीं देश- विदेश में धूमधाम से मनाया गया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महामहोत्सव रोहिणी नक्षत्र एवं सर्वार्थ सिद्धि योग में होने के कारण इसकी महिमा और बढ़ गई है।

उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज के पंडितों से गणना कराने के बाद शासन को भेजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव और उसकी गणना को मान्यता प्रदान की है। इस जन्माष्टमी पर मथुरा के जन्मभूमि मंदिर के साथ वृंदावन चंद्रोदय मंदिर सहित देश विदेश के सभी मंदिरों में अति उत्साह के साथ भव्य तरीके से भगवान कृष्ण का 5251 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।


हमारे भगवान श्रीकृष्ण आज से 5251वर्ष पूर्व मानवता को हिंसा, भय, शोषण एवं दुःखों की चारदीवारी से मुक्त करने हेतु मंथुरा में कारागार में प्रकट हुए थे। 125 वर्ष तक उन्होंने भूलोक में लीला की.शास्त्रानुसार श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन पर ही कलियुग प्रभावी हुआ। श्रीकृष्ण परमपुरुष हैं। उनकी करुणा का पूर्णप्रकाश ही उनकी भगवत्ता का पूर्ण प्रकाश है, जो उनकी अद्भुत लोकरक्षक एवं अनुपम लोकरंजक लीलाओं में प्रकट होती है। लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण इस धराधाम पर मानवीय कालगणनानुसार 125 वर्ष विराजमान रहे। (श्रीमद्भागवत महापुराण ११.६.२५) उन्होंने विभिन्न लीलाओं के माध्यम से धर्म का पोषण किया।

जीवन को जड़ता से बचाकर चैतन्य करने हेतु श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कालजयी शास्त्र का गायन किया। श्रीकृष्ण की पूर्ण भगवत्ता का रहस्य इस बात में निहित है कि पूर्ण भगवदीय ऐश्वर्य विद्यमान होते हुए भी उन्होंने एक सामान्य मनुष्य बालक की भाँति लीलाएँ रची।
भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, कला, शिल्प, स्थापत्य आदि की उदात्त परम्पराओं की गौरवपूर्ण स्थिति में श्रीकृष्ण का अतुलनीय योगदान है। श्रीकृष्ण के विचारों ने, उनके चरित्र ने भारत को युग-युगों तक समृद्ध किया है।

आज यदि भारतीय सांस्कृतिक चेतना विश्व में व्याप्त है तो वह श्रीकृष्ण – चेतना से है। युद्ध भूमि पर दिया गया गीता का उपदेश संसार का श्रेष्ठतम ज्ञान माना जाता है. जीवन जीने के तरीके को अगर किसी ने परिभाषित किया है तो वो कृष्ण हैं. कर्म से होकर परमात्मा तक जाने वाले मार्ग को उन्हीं ने बताया है। कर्म का कोई विकल्प नहीं, ये सिद्ध किया। श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन ही एक प्रबंधन की किताब है। कुरुक्षेत्र में दो सेनाओं के बीच खड़े होकर भारी तनाव के समय कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वो दुनिया का श्रेष्ठतम ज्ञान है।


श्रीकृष्ण ने हर परिस्थिति को जिया और जीता। वह कहते हैं परिस्थितियों से भागो मत, उसके सामने डटकर खड़े हो जाओ। क्योंकि, कर्म करना ही मानव जीवन का पहला कर्तव्य है। हम कर्मों से ही परेशानियों को जीत सकते हैं। श्री कृष्णा शुद्ध आहार पर बल देते हैं. उनको माखन मिश्री बहुत पसंद है. बचपन में शरीर को अच्छा आहार मिलेगा तो वह वीर बनेगा। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है. वह मानते हैं की पढ़ाई की रचनात्मक हो. उन्होंने अपनी शिक्षा मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रह कर पूरी की थी। उन्होंने 64 दिन में 64 प्रकार के ज्ञान हासिल कर लिया था।

वैदिक ज्ञान के अलावा उन्होंने अनेक कलाएं सीखीं। संगीत, नृत्य, युद्ध सहित 64 कलाओं कृष्ण के व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। उन्होंने जिनको मन से अपनाया, कभी साथ नहीं छोड़ा. अर्जुन से उनका रिश्ता हमेशा मन का रहा। सुदामा हो या उद्धव, जिसे अपना मान लिया, उसका साथ जीवन भर दिया। उनका सीधा संदेश है कि सांसारिक इंसान की सबसे बड़ी धरोहर रिश्ते ही हैं। श्रीकृष्ण ने हमेशा नारी को शक्ति बताया व उसके सम्मान के लिए तत्पर रहे. नरकासुर ने 16,100 महिलाओं को अपने महल में कैद किया था। श्रीकृष्ण ने उसे मार कर सभी महिलाओं को मुक्त कराया।

उन महिलाओं को अपनाने वाला कोई नहीं था। खुद उनके घरवालों ने उन्हें दुषित मानकर त्याग दिया था। ऐसे में योगेश्वर कृष्ण आगे आकर सभी 16,100 महिलाओं को समाज में सम्मान दिलाया।पूरी महाभारत भी नारी के सम्मान के लिए ही लड़ी गई।
दुर्योधन श्रीकृष्ण का समधी भी था। कृष्ण के पुत्र सांब ने दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से विवाह किया था। क्योंकि लक्ष्मणा, सांब से विवाह करना चाहती थी लेकिन दुर्योधन खिलाफ था। सांब को कौरवों ने बंदी भी बनाया था। तब कृष्ण ने दुर्योधन को समझाया था कि हमारे मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन हमारे विचार हमारे बच्चों के भविष्य में बाधा नहीं बनने चाहिए।

दो परिवारों के आपसी झगड़े में बच्चों के प्रेम की बलि न चढ़ाई जाए। श्रीकृष्ण ने लक्ष्मणा को पूरे सम्मान के साथ अपने यहां रखा। दुर्योधन से मतभेद का प्रभाव कभी लक्ष्मणा और सांब की गृहस्थी पर नहीं पड़ने दिया।विपरित परिस्थितियों में भी श्रीकृष्ण कभी विचलित नहीं थे। उन्होंने कभी किसी राजा का सिंहासन नहीं छीना। कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने किसी राजा को मारकर उसका शासन खुद लिया हो। जरासंघ को मारकर उसके बेटे को राजा बनाया, जो धार्मिक व चरित्रवान था।