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एससी-एसटी, दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ हो रही ज़्यादती, विपक्षी दलों, कांग्रेस की ख़ामोशी पैदा करती है संदेहः एम. डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस)

भारत में एससी/एसटी, दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और वंचित लोगों की दुर्दशा से कौन परिचित नहीं है। सब जानते हैं कि उन पर कितना जुल्म हो रहा है। उन्हें तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है। उन पर नए-नए कानून थोपे जा रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति बद से बदतर हो गई है। देश में दिन-ब-दिन दिल दहला देने वाली घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। न्यायपालिका, कानून, पुलिस और संविधान तो बस नाम मात्र के हैं, हर निर्णय सत्ताधारी दल खुद कर रहा है या प्रशासन में बैठे अधिकारी और अधिकारी भी सत्ताधारी दल के इशारे पर काम कर रहे हैं। भारत के संविधान को ताक में रख दिया गया है। जिसकी शपथ हर अधिकारी अपनी नियुक्ति के समय लेता है। लेकिन पूर्वाग्रह के आधार पर वह इस शपथ को भूल जाते हैं और संविधान की अवहेलना करते हैं। कभी वह मज़लूम को ही दंड देते हैं तो कभी एक विशेष समुदाय से होने की वजह से ज़ालिम को फूल-मालाएं पहनाते हैं। यानि के इस देश में न्याय शब्द का अंतिम संस्कार ही हो चुका है।
यहां यह भी बताने लायक है कि बीजेपी की रणनीति और योजना तो स्पष्ट है। यह कोई रहस्य नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी एससी-एसटी, अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ किस तरह दोहरा रवैया अपनाती है। चाहे माब लिंचिंग हो, खरगोन दंगे हों, पतंग की डोर से किसी की मौत के बाद की कार्रवाई हो, हरिजनों की बहू-बेटियों से बलात्कार हो या फिर किसी गरीब मजदूर पर पेशाब करने की घटना, या फिर पहलवान लड़की के साथ हुआ अन्याय, या फिर जीवन भर की मेहनत से बनाये गये घर पर बुलडोजर का चलाना हो, ज़बरदस्ती नारे लगवाने की घटना हो, या बिलकीस बानो जैसी मज़लूम को न्याय नहीं मिलना हो या फिर एससी-एसटी, दलित और अल्पसंख्यकों से जुड़े किसी भी मामले में बीजेपी का रवैया हमेशा एकतरफा रहता ही है लेकिन……………….
अपने आप को दबे कुचले, पीड़ित, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों का हमदर्द बताने वाली, हमेशा एससी-एसटी और अल्पसंख्यक वोटों से चुनाव जीतने वाली, उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने का दावा करने वाली देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस आखिर किस राह पर है? सबसे मजबूत विपक्ष होने के बावजूद कांग्रेस नेता के घर को ही बुलडोजर से ज़मींदोज कर दिया गया, यहां तक कि उसमें खड़ी तीन गाड़ियां भी तोड़ दी गईं, लेकिन इस कार्रवाई के तीन दिन बाद कांग्रेस आलाकमान को होश आया और वह भी ज्ञापन देने तक सीमित रहा।
चुनाव से पहले कांग्रेस ने भी किए थे दावे। अगर कांग्रेस वाकई अपने दावे में सच्ची है तो जब भी कहीं दंगा होता है या मुस्लिम समुदाय के लोग मारे जाते हैं, उन पर अत्याचार किया जाता है और निर्दोष लोगों को झूठे आरोपों में जेल में डाल दिया जाता है। मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चलता है तो कांग्रेस चुप क्यों रहती है?
चाहे छतरपुर की घटना हो या बुरहानपुर, दमोह, उज्जैन की हो। कांग्रेस के सभी बड़े नेता एससी, एसटी, दलितों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार पर चुप रहते हैं। इनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ, वर्तमान अध्यक्ष जीतू पटवारी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष सब शामिल हैं। किसी ने आवाज़ नहीं उठाई, क्यों? छतरपुर मामले में सबसे पहले भोपाल विधायक आरिफ मसूद ने ही आवाज़ उठाई और उन्होंने अपनी ही पार्टी की चुप्पी पर सवाल उठाए। इसके बाद कांग्रेस ने कुछ कार्रवाई तो की लेकिन ज्ञापन देने तक ही सीमित रही।
इतना ही नहीं, कांग्रेस के साथ-साथ ज़्ाुल्म की इंतेहा में सरकार का साथ देने वाले सभी नेता और दल मुजरिम हैं। इसी तरह एससी-एसटी, दलित और अल्पसंख्यकों को परेशान करने के लिए तमाम तरह के बिल और कानून लाये जा रहे हैं। जैसे हाल ही में वक्फ बिल या पहले सीएए, एनआरसी, तीन तलाक, हिजाब कोई भी बिल हो जबरदस्ती थोपा जा रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि जो नेता और पार्टियाँ सत्ताधारी दल का समर्थन करते हैं या किसी बिल पर चुप रहते हैं वे भी दोषी हैं। चाहे वो नीतीश कुमार हों, चंद्रबाबू नायडू हों, अखिलेश यादव हों, चिराग पासवान हों या जयंत सिंह या कोई और। ज़ुल्म को किसी विशेष धर्म या समुदाय से नहीं जोड़ा जाना चाहिए बल्कि क्रूरता तो क्रूरता है जिस पर इन सभी नेताओं को आवाज उठानी चाहिए थी। क्योंकि ये सभी मज़बूत पदों पर हैं और प्रमुख पार्टियों के मुखिया हैं। साथ ही एससी-एसटी, दलित और अल्पसंख्यकों ने एकतरफा वोट देकर इंडिया अलायंस को जीत दिलाई है। इस आशा में कि ये सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ हैं और इनके आने से इस देश में शांति और व्यवस्था स्थापित हो जायेगी। अब उनकी बारी है कि ये सभी दल और नेता जनता द्वारा किये गये विश्वास को सच साबित कर अपनी सार्थकता सिद्ध करें।
एक सबसे बड़ा सवाल जो इस वक्त हर किसी की जुबान पर है वो ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को इन सभी गैरकानूनी कार्रवाइयों की जानकारी नहीं है? यदि हां, तो भारत में न्यायपालिका की क्या भूमिका है? क्या कोई राजनीतिक दल अदालत से आगे बढ़ सकता है? बेशक सजा देने का अधिकार न्यायपालिका को है, फिर गैरकानूनी कार्यों पर अदालत चुप क्यों है? अपराधी कोई भी हो, सजा देने का अधिकार न्यायपालिका को है, तभी इस देश में अमन-चौन क़ायम रह सकता है।
इतना ही नहीं, बीजेपी, कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी में मुसलमान क्या कर रहे हैं? इतने जुल्म के बाद भी इनकी जुबान क्यों नहीं खुलती? लोकसभा में 24 मुस्लिम एमपी हैं और राज्य सभा में 16 हैं और एससी एसटी के कुल 131 एमपी है ये तमाम हो रहे जुल्म के खिलाफ खामोश क्यों है?
यह याद रखना चाहिए कि भारत एक सोशल वेलफेयर राज्य है, न कि कोई पुलिस राज्य या तानाशाही, न ही कोई राजशाही है। बल्कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहां हर निवासी को संविधान के मुताबिक समान अधिकार हैं और हर काम कानून के मुताबिक होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में दलितों और गरीबों की हालत बदतर हो गई है और सभी विपक्षी नेता दर्शक बने हुए हैं। एक के बाद एक कई जगहों पर अत्याचार हुए हैं और न्यायपालिका इस पर चुप है, ऐसा क्यों है? जो भारत के बाशिंदे के लिए बाईसे फिक्र है।