उत्तर प्रदेश

पितृ दोष के स्थाई समाधान के लिए “नारायण बलि” के विधान से ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा को प्रेतत्व से मिलती है पूर्ण मुक्ति – पं प्रमोद गौतम

संवाद – विवेक कुमार जैन       
बृहस्पति एवम राहु की एक साथ युति से बनने वाला गुरु-चांडाल योग जिसे महा-पितृ-दोष माना जाता है के पूर्ण निवारण के लिए शास्त्रोंनुसार है नारायण बलि देने का विधान  
आगरा ।वैदिक सूत्रम चेयरमैन विश्वविख्यात ख्याति प्राप्त एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम के अनुसार पितृ दोष के स्थाई समाधान के लिए “नारायण बलि” के विधान से ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा को प्रेतत्व से पूर्ण मुक्ति मिलती है।जब किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में देवगुरु बृहस्पति एवम छाया ग्रह राहु की एक साथ युति से गुरु-चांडाल नामक योग बनता है तो
वैदिक हिन्दू ज्योतिष के अनुसार इसे महा-पितृ-दोष माना जाता है, जिसके पूर्ण निवारण के लिए किसी सिद्ध धार्मिक स्थल पर नारायण बलि देने का विधान शास्त्रोंनुसार माना जाता है ?
                पंडित गौतम ने नारायण बलि की पूजा पद्धति के संदर्भ में बताते हुए कहा कि नारायण बलि  विधान अप्रत्याशित रूप से घटित आकस्मिक दुर्घटनाओं एवम आत्म-हत्या के द्वारा प्रेतत्व को प्राप्त अतृप्त आत्माओं को सद्गगति एवं मुक्ति प्रदान करने का एक अचूक उपाय है नारायण बलि जिसकी शास्त्रोक्त विधि से पूजा अवधि  लगभग 6 से 7 घंटे की होती है।बिहार में गया तीर्थ इसके लिए सबसे उत्तम स्थान है।
पंडित गौतम ने बताया “नारायण बलि” का विधान तब किया जाता है, जब कोई ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा को प्रेतत्व से मुक्ति दिलानी हो।ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा का अर्थ है, जिसका नाम और गोत्र पता हो तथा उसकी मृत्यु का कारण पता हो। इसके अतिरिक्त जो अतृप्त मृतक आत्मा स्वप्न के माध्यम से बार-बार दर्शन देकर अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना करती हो,अथवा जो स्वप्न में कष्ट में होने का संकेत देती हो, उसके निमित्त भी नारायण बलि का विधान बताया गया है। कुल मिलाकर नारायण बलि का अर्थ यह है कि, किसी प्रेतत्व को प्राप्त ज्ञात अतृप्त आत्मा के निमित्त भगवान नारायण एवं उनके गण,पार्षद आदि का आवाहन, पूजन और तर्पण करना तथा उस आत्मा की मुक्ति अथवा सद्गगति की प्रार्थना करना। एक प्रकार से ”नारायण बलि” के कर्मकांड के विधि विधान से उस अतृप्त प्रेतात्मा को भगवान नारायण के चरणों में समर्पित कर देना, भगवान नारायण को बलि के रूप में प्रदान करने को ”नारायण बलि” कहते हैं।इसको और सरल भाषा में समझने का प्रयास करें तो कुल मिलाकर जिस आत्मा का नाम,गोत्र पता हो, उसे ”ज्ञात अतृप्त मृतक आत्मा” कहते हैं। उनके निम्मित नारायण बलि, पार्वण श्राद्ध आदि किये जाते हैं।
                पंडित गौतम ने आगे बताया कि “यदि किसी आत्मा का अथवा हमारे अपने पूर्वजों का नाम और गोत्र पता न हो तो उनके निमित्त, उनके उद्धार अथवा तृप्ति के लिए “त्रिपिंडी श्राध्द” आदि किये जाते हैं”।भगवान विष्णु,भगवान ब्रह्मा, भगवान शंकर के निमित्त तीन पिंड बनाकर उनका पूजन कर, उनके निमित्त तर्पण आदि कर सभी प्रकार की दुर्गति को प्राप्त पूर्वजों की आत्माओं की सद्गगति, एवम उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की जाती है। इसलिए इस कर्म को ”त्रिपिंडी श्राध्द” अर्थान तीन पिंड बनाकर किया गया श्राध्द कर्म कहा जाता है।
कुल मिलाकर जैसे “त्रिपिंडी श्राद्ध” का महत्त्व है, उसी प्रकार से ”नारायण बलि” का भी अपना महत्त्व है। जिसे भी अपने ज्ञात अथवा अज्ञात पूर्वजों की सद्गगति करनी हो, उनको प्रेतत्व से पूर्ण रूप से मुक्त करना हो, उनके निम्मित नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राध्द आदि कर्म कृष्ण पक्ष में किसी विशेष तिथि एवम वार के संयोग में करना चाहिए। पितृ पक्ष में अतृप्त पितृ तृप्ति के अनुष्ठान 16 दिनों के दौरान किसी भी दिन किए जा सकते हैं।
                 अपने निर्देशन में नारायण बलि विधान को संपन्न करवाने के संबध में जानकारी देते हुए पंडित गौतम ने बताया कि बिहार स्थित गया धाम में 02 सितम्बर 2024 सोमवती अमावस्या पर श्री हरि विष्णु के निम्मित नारायण बलि की विशेष पूजा से पूर्व वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार जैन के बड़े भ्राता पूर्व वन विभाग अधिकारी दिवंगत ए.के जैन एवम दिनेश कुमार जैन की आत्म तृप्ति के लिए सर्वप्रथम हरिद्वार में हरि की पौड़ी गंगा घाट पर 31अगस्त 2024 को पुष्य नक्षत्र में त्रयोदशी तिथि में गंगा स्न्नान को विधि विधान से सम्पूर्ण करवाया। क्योंकि पूर्व वन विभाग अधिकारी ए.के जैन की 11 जुलाई 2018 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जिले के पास एक कार दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो गई थी, इसलिए उनकी आत्म तृप्ति के लिए नारायण बलि की पूजा से पूर्व हरिद्वार में गंगा स्नान करना आवश्यक था।
                   पंडित गौतम ने बताया कि भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या पर्व पर उनके निर्देशन में दो और भक्तों  संजीव गुप्ता और अनिल कुमार ने भी गया में अपने सात पीढ़ियों तक के अतृप्त पूर्वजों का  मध्यान्ह काल में पितरों के सर्वोच्च तीर्थ स्थल बिहार स्थित गया की पौराणिक फल्गु नदी के तट के समीप धार्मिक नगरी गया के योग्य पुरोहित से विधि विधान से नारायण बलि एवम सर्व पितरों का पिंडदान सम्पूर्ण किया।