आरएसएस जिस प्राचीन व्यवस्था को लागू करना चाहती है उसमें राजा ही जज भी होता था
लखनऊ. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को संविधान की प्रस्तावना में उद्धरित सेकुलर शब्द पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर पद से हटाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश की इस प्रकरण पर चुप्पी निराश करने वाली है.
जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आरएसएस और भाजपा के नेता तो पहले से ही संविधान विरोधी बातें करते रहे हैं लेकिन किसी राज्यपाल ने पहली बार ऐसा करके अपने संवैधानिक पद की गरिमा को कलंकित किया है.
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा संविधान की प्रस्तावना में वर्णित सेकुलर शब्द के खिलाफ़ टिप्पणी को अपवाद के बतौर नहीं लिया जा सकता. बल्कि आरएसएस भाजपा से जुड़े लोगों के लिए संविधान के खिलाफ़ बोलना नियम है. जिसमे एक रणनीतिक तारतम्यता देखी जा सकती है.
मसलन, आरएसएस प्रमुख केसी सुदर्शन ने पहले संविधान को भारत की सबसे बड़ी समस्या बताया था और उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश वेंकट चलैया के नेतृत्व में संविधान समीक्षा आयोग गठित कर दिया था. इसी तरफ 2015 में मोदी सरकार ने गणतंत्र दिवस के दिन अखबरों में संविधान की प्रस्तावना की जो फोटो प्रकाशित करवाई उसमे से समाजवाद और सेकुलर शब्द गायब थे. जिसपर सवाल उठने के बाद सरकार ने इसे मानवीय भूल बता दिया था. इसीतरह 2020 में भाजपा के राज्य सभा सदस्य राकेश सिन्हा और 2021 में केजे अल्फोंस ने राज्य सभा में संविधान में से सेकुलर और समाजवाद शब्द हटाने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाया था. इसके बाद 2023 में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने 15 अगस्त के दिन एक अंग्रेज़ी अखबार में लेख लिखकर संविधान में से सेकुलर, समाजवाद और समानता जैसे शब्दों को हटाने की मांग की थी. वहीं नयी संसद में भी पहले दिन सभी सांसदों को जो संविधान की प्रति दी गयी थी उसमें से भी समाजवाद और सेकुलर शब्द गायब था. यानी संविधान को समाप्त करना ही आरएसएस का मुख्य एजेंडा है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह हमारी न्यायिक व्यवस्था के लिए शर्म की बात है कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल ने 2021 में संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द के होने को देश के लिए कलंक बताया था. लेकिन उनके खिलाफ़ कार्यवाई करने के बजाए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की कॉलेजियम ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया. इसीतरह देश की सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता सुभ्रमन्यम स्वामी की उस याचिका को भी स्वीकार कर लिया जिसमें उन्होंने प्रस्तावना से सेकुलर और समाजवाद शब्द हटाने की मांग की है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल की टिप्पणी का एक अहम हिस्सा राज्य और धर्म के अलगाव के सिद्धांत के खिलाफ़ था जिसे उन्होंने यूरोपीय विचार बताया है. इसे हमें पिछले दिनों पीएम मोदी और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की निजी धार्मिक आयोजन में मुलाक़ात से काट कर नहीं देखा जा सकता. ऐसा लगता है कि राज्यपाल सरकार और न्यायपालिका के एकीकरण की वकालत कर रहे हैं. क्योंकि वो जिस प्राचीन व्यवस्था के पक्ष में तर्क दे रहे हैं उसमें राजा ही जज भी हुआ करता था.