संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। गरीब और मजदूर पेशा परिवारों की महिलाएं अब पुनः “धुआं योजना” अपनाने को विवश हो गई। “आर्थिक तंगहाली की तपिश उन्हें फिर तपने” के लिए मजबूर कर दी हैं। सरकारी गलत नीतियां इसके लिए जिम्मेदार मानी जा रही हैं !जिसके चलते “मिट्टी के चूल्हे नें रसोई सिलेंडरो को पटखनी” दे दी। केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना से गरीब वर्ग लाभान्वित तो हुआ लेकिन वर्तमान समय में गैस सिलिंडर के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी से सिलिंडर भरवाने में अ यह तबका असहाय हैं।
घरेलू गैस सिलिंडरों की बढ़ी कीमतों से इस समय योजना से गैस कनेक्शन हासिल करने वाली गरीब/मजदूर महिलाएं फिर से चूल्हे की आंच सहन करने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार की सबसे सफल उज्ज्वला योजना से लाभान्वित होने वाले पात्रों का बड़ा तबका मजदूर और बेहद गरीब महिलाएं हैं। शुरुआत में किसी तरह से गैस सिलिंडर तो भरा लिया, लेकिन अब करीब 950 रुपये प्रति सिलिंडर कीमत हो जाने पर गरीब परिवार दोबारा रिफिलिंग नहीं करा पा रहे हैं। उज्ज्वला गैस सिलिंडर को घर के कोने में रख दिए गए। चित्रकूटधाम मंडल में उज्ज्वला योजना के लगभग 5,19,285 गैस कनेक्शनधारक हैं। मंडल में कुल आठ लाख 78 हजार 288 गैस कनेक्शनधारक हैं।
चित्रकूटधाम मंडल के चारों जनपदों बांदा, महोबा, चित्रकूट और हमीरपुर में चूल्हे में खाना पकाने वाली 5.19 लाख गरीब महिलाओं को केंद्र सरकार ने मुफ्त गैस कनेक्शन दिए हैं।
हालांकि फेज दो में अभी भी पात्रों को गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं। मुफ्त गैस सिलिंडर, रेगुलेटर और चूल्हा पाकर गरीब महिलाएं बेहद खुश हुईं।खर्च में कटौती कर किसी तरह गैस चूल्हे में खाना भी पकाने लगीं, लेकिन सिलिंडरों की बढ़ती कीमतों ने इस खुशी को काफूर कर दिया। अधिकांश गरीब/मजदूर परिवारों ने गैस रिफिल कराना लगभग बंद कर फिर लकड़ी के चूल्हे की तरफ रुख कर लिया।