युवाओं को हमारी संस्कृति से जोड़ना जरूरी: अनिल सक्सेना
संवाद।। मोहम्मद नज़ीर क़ादरी
जयपुर। हमारे जीवन जीने का तरीका ही संस्कृति है और जीवन जीने के तरीके में शिष्टाचार, पोषाक, भाषा, धर्म, अनुष्ठान, कला, व्यवहार के मानदंड शामिल हैं।
यह बात राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के जनक वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार अनिल सक्सेना ने शुक्रवार को निम्स यूनिवर्सिटी के सभागार में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कही । उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को संस्कृति से जुड़ना जरूरी है।
राजस्थान साहित्यिक आंदोलन की श्रृंखला में निम्स यूनिवर्सिटी में प्रथम सत्र में आयोजित भारतीय संस्कृति और ज्ञान की परम्परा विषय पर अनिल सक्सेना के व्याख्यान के दौरान छात्र अभिषेक यादव और प्रथ्यम कुमार के सवालों का जवाब देते हुए सक्सेना ने कहा कि सर्वप्रथम गुरू माता-पिता और दूसरे गुरू शिक्षक होते हैं। बच्चों को माता-पिता और अपने शिक्षक के बताए मार्ग पर चलना चाहिए, जिससे उन्हेें सफलता मिल सके।
छात्र सुमित गहलोत के सवाल पर उन्होंने कहा कि माता-पिता और शिक्षक हमेशा चाहते हैं कि उनका बच्चा या शिष्य हर क्षेत्र में सफलता हासिल करे। छात्रा कविता के संस्कृति को लेकर किये सवाल पर सक्सेना ने कहा कि संस्कृति अर्जित ज्ञान है जिसका उपयोग अनुभव की व्याख्या करने और व्यवहार उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी कई छात्र-छात्राओं ने सवाल पूछे जिसके जवाब सक्सेना ने दिये।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्राचार्य प्रोफेसर डाॅ. मनोज श्रीवास्तव ने राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के संस्थापक अनिल सक्सेना और प्रदेश सचिव मोरध्वज सिंह का स्वागत कर स्मृति चिन्ह भेंट किया। मोरध्वज सिंह ने राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के बारे में जानकारी दी।
दूसरे सत्र में भारतीय संस्कृति, साहित्य और मीडिया विषय में हुई परिचर्चा के दौरान सक्सेना ने कहा कि साहित्य किसी संस्कृति का ज्ञान कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । उन्होंने कहा कि साहित्य और संस्कृति के बिना पत्रकारिता की कल्पना नही की जा सकती है।
प्राचार्य डा. मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्य लिखित कार्य को कहा जाता है। विभागाध्यक्ष राजीव माथुर ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है । एसोसिएट प्रोफसेर उमंग भरतवाल ने कहा साहित्य से समाज को ज्ञान की प्राप्ति होती है। सहायक प्रोफेसर मंतोष ने कहा हर युग में साहित्य लिखा गया है। सहायक प्रोफसेर साहिल दीप ने कहा स्वतंत्रता से पहले और अब की पत्रकारिता में बहुत परिवर्तन आया है। फोरम के प्रदेश सचिव मोरध्वज सिंह ने बच्चों को साहित्य और संस्कृति से जोड़ना जरूरी बताया। अंत में उमंग भरतवाल ने आभार प्रकट किया। परिचर्चा में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अतिरिक्त साहित्यकार, कलाकार और पत्रकार भी मौजूद रहे।