ग्यारहवीं शरीफ का त्यौहार ग्यारहवीं शरीफ सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। जिसे इस्लाम के उपदेशक और एक महान संत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वह पैगंबर मोहम्मद के वंशज थे क्योंकि उनकी माँ इमाम हुसैन की वंशज थी, जोकि पैगंबर मोहम्मद के नवासे थे। उन्हें इस्लाम को पुनर्जीवित करने वाले व्यक्ति के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि अपने उदार व्यक्तित्व और सूफी विचारधारा द्वारा उन्होंने कई लोगो को प्रभावित किया।इसके साथ ही अब्दुल कादिर सूफ़ी इस्लाम के भी संस्थापक थे। उनका जन्म 17 मार्च 1078 ईस्वी को गीलान राज्य में हुआ था, जोकि आज के समय ईरान में स्थित है और उनके नाम में मौजूद जीलानी उनके जन्मस्थल को दर्शाता है। प्रतिवर्ष रमादान के पहले दिन को उनके जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है और हर साल के रबी अल थानी के 11वें दिन को उनके पुण्य तिथि को ग्यारहवीं शरीफ के त्योहार के रुप में मनाया जाता है।
ग्यारवी शरीफ का इतिहास
शेख अब्दुल कादिर जिलानी अपने जीवनकाल में प्रत्येक चांद्र मास की 11 तारीख को अपने शिष्यों में भोजन वितरित करते थे और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ईसाले सवाब पेश करते थे। इसलिए उनके निधन के बाद उनके शिष्यों ने शेख की इस परंपरा को जारी रखा और वे भी इस दिन पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ शेख जिलानी को ईसाले सवाब पेश करने लगे। जब यह परंपरा भारतीय उपमहाद्वीप में आई तो उपमहाद्वीप के लोगों ने भी इराक से आई परंपराओं के साथ-साथ गौस पाक को याद करने की परंपराएं शुरू कीं, उनके जीवन पर चर्चा की, उनकी शान में मनकबत पढ़ी। ये सभी परंपराएं मिलकर सूफियों के बीच एक अलग त्योहार का रूप ले लिया जिसे ग्यारवी शरीफ के नाम से जाना जाता है।
जुलूस ए गौसिया
जुलूस ए गौसिया शब्द उर्दू भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है हुज़ूर गौस ए आज़म दस्तगीर (गौसिया) को समर्पित जुलूस (जुलूस)। त्रिपुरा, असम, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि सहित कई राज्यों में हुज़ूर गौस पाक की याद में एक दिन तक चलने वाला जुलूस ए गौसिया देखा जाता है। नागपुर में मुफ़्ती नज़ीर मुंशीजी मस्जिद, नागपुर के इमाम जुलूस ए गौसिया का नेतृत्व करते हैं, जुलूस के मार्ग पर नियाज़ की व्यवस्था नागपुर में देखी जाती है।