आगरा। पीरान-ए-पीर हजरत मुहीउद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी बड़े पीर साहब रह० हुजूर सल्ललाहो अलैहे वसल्लम की 11वीं शरीफ को बड़े ही जश्न और उल्लास के साथ मनाया गया। मेवा कटरा सेव का बाजार इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया जोकि मंगलवार तक चलेगा। तीन दिवसीय इस 11वीं शरीफ को पूरी दुनिया में विशेष कर भारत में बड़ी अकीदत व एहतराम से मनाते हैं। आस्ताना आलिया कादरिया के मौजूदा सज्जादा नशीन हजरत सैय्यद सिनवान अहमद शाह कादरी इस परम्परा को बड़ी लगन के साथ निभा रहे हैं। इस मौके पर महफिल-ए-समां का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें देश के मशहूर कब्बाल आकर अपना कलाम पेश करते हैं।
14 अक्टूबर को बाद नमाज़ असर अलम शरीफ की जियारत, बाद नमाज मगरिब, लंगर व बाद नमाज ईशां महफिल-ए-समां व 15 अक्टूबर को बाद नमाज अन्न, महफिल-ए-समां, बाद नमाज मगरिब, लंगर व बाद नमाज ईंशां रात्रि 10 बजे से महफिल-ए-समां के कार्यक्रम सम्पन्न होंगे। इसमें अजमेर शरीफ से अली हमज़ा चिश्ती, फतेहपुर सीकरी के सज्जादा नशीं रईस मिंया चिश्ती,
ग्वालियर के राशिद खनूनी, फिरोजाबाद से गुलाम समदानी साहब, बीकानेर से हाफिज फरमान अली, दरगाह अबुल उला के सज्जादा नशीं स० मौहतिम अली अबुल भुलाई, आगरा के सै० अजमल अली शाह, सै० असद अली, सै० मैराजउद्दीन, सै० महमूद उज़ ज़मा, सैयद शिराज अहमद शाह, सै० इरफान अहमद सलीम, समी आगाई, अशफाक अहमद इरफानी, मुवीन मियां, सै० आजम अहमद, सै० मसूद उज़ ज़मा, महमूद उज़ ज़मा, अदीव अहमद शाह, सै० नदीम अहमद हाशमी, मुजाहिद हाशमी, तौशीफ उज़ ज़मा आदि मौजूद रहे।
सन् 1779 ई0- 1203 हिजरी में हजरत गौस पाक के परपोते हजरत अब्दुल्ला शाह बगदादी रह० अपने पूर्वज के आदेश पर आगरा पधारे। आपने अपने दादा हुजूर के आदेश पर हजरत गौस पाक का अलम शरीफ बगदाद से लाकर उस समय के जाने माने सूफी संत हजरत मौलवी अमजद अली शाह रहमतुल्ला अलैहे को भेंट किया और आपको सिल सिलाहे कादरिया में मुरीद कर खिलाफत से नवाजा और आदेश दिया कि हर महीने की 11 तारीख को फातिहा करायी जाय व गरीबों में लंगर बॉटा जाय। यह परम्परा आज तक जारी है।
सालाना फातिहा पर चॉद की 10 व 11 रबी उस्मानी को अलम शरीफ आम लोगों के दर्शनार्थ रखा जाय। इस परम्परा को निभाने के लिए रेशम कटरा ताजगंज में आस्ताना आलिया कादरिया का निर्माण कराया गया। बाद में यही आस्ताना 1225 हिजरी में मेवा कटरा सेवका बाजार, आगरा बनाया गया जो आज भी मौजूद है। इसी आस्ताने पर तकरीबन 200 सालों से बराबर चाँद की दस व ग्यारह तारीख को अलम शरीफ सूफी संतों व आम जनता के लिए रखा जाता है। इसके दर्शनार्थ देश-विदेश से सैंकड़ों अकीदतमंद आते हैं।