संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। जिले से बालू के अवैध खनन के मौसम की बसंती बयार शुरू हो चुकी है। यह स्थिति को डीएम नगेन्द्र प्रताप के लिये अग्नि परीक्षा की घड़ी बन गई है? जिले में केन ,यमुना मुख्य नदियों के अलावा बागै एवं रंज नदियां प्रवाहित हैं। इन नदियों में बालू खनन के ठेकेदार अवैध खनन का तांडव नृत्य करते हैं। केन और यमुना तो अवैध खनन के चरमोत्कर्ष का शिकार रहती हैं। प्रशासन की स्थिति अंकुश लगाने की बजाय “ताता थैया” की रहती है!
क्योंकि बालू के अवैध खनन के हमाम में संबंधित प्रशासनिक अधिकारी स्वयं भी डुबकी लगाने के कथित आरोपों की चर्चा में रहते हैं। जिले में जितने भी बालू खदानों के खंड चलते हैं उनमें “शायद ही कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र हो जो खनन गाईड लाईन की सत्यता पर चलता” हो।यहां तक की नदी की जलधारा में पुल बांध कर अवैध खनन बेखौफ होता है जबकि बिना राज्यपाल के नोटिफिकेशन के नदी की जलधारा बांधी ही नहीं जा सकती।
चिंतनीय एवं दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह रहती है की बालू के अवैध खनन में करोड़ों रुपयों की रोजाना सरकारी खजाने को क्षति पहुंचाई जाती हैं। जिम्मेदार अधिकारियों की खनन ठेकेदारों से दुरभिसंधि सी रहती हैं! इन्हीं स्थितियों से “डीएम नगेन्द्र प्रताप को सजग रहना” होगा। “हम उनकी तीसरी आंख के रूप में अवैध खनन का उन्हें निरन्तर दिग्दर्शन”कराते रहेंगें। दरअसल डीएम नगेन्द्र प्रताप के लिये अवैध बालू खनन पर प्रतिबंध इस लिये भी कठिन डगर हैं क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सफेदपोशों की भी भागेदारी रहती हैं। लेकिन हम जानते हैं की “डीएम नगेन्द्र प्रताप व्यावहारिक रूप से जितने नरम दिखते हैं उतने कठोर” भी हैं। यही “कठोरता उन्हें अग्नि परीक्षा” पास करा सकती हैं।