संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। वन विभाग की “अपरम्पार लीला” है। “पौध रोपण में करोड़ों डकार पेट पर हाथ फेरने की सी स्थिति है। ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा” की’। बुंदेलखंड का पर्यावरण बचाने और इसे हराभरा बनाने में केंद्र व प्रदेश सरकारों ने पैसा पानी की तरह बहाया। पिछले दो दशकों में बुंदेलखंड को हरा-भरा बनाने के लिए करीब डेढ़ हजार करोड़ से भी ज्यादा का भारी-भरकम बजट पौधरोपण में ठिकाने लगा दिया गया। फिर भी हरियाली नदारद है। हालांकि सरकारी फाइलों में इस अवधि में करीब पचासों करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे गए। हैरत की बात यह है कि वन विभाग के आंकड़े ही असलियत की पोल खोल रहे हैं।
बुंदेलखंड में पौधरोपण के आंकडे़ काफी चौंकाने वाले हैं। राष्ट्रीय वन नीति के तहत 33 फीसदी वन क्षेत्र अनिवार्य है। लेकिन वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक चित्रकूट को छोड़कर किसी भी जनपद में 5 या 6 फीसदी से ज्यादा वन भूमि नहीं है। बुंदेलखंड में सिर्फ 10 फीसदी ही वन भूमि है।
हमने जो आंकड़े और सूचनाएं इकट्ठा की हैं उनके मुताबिक वर्ष 2005 से वर्ष 2023 तक वन विभाग बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन और झांसी जनपदों में लगभग एक अरब रुपये खर्च किया जा चुका है। इस रकम से वन विभाग ने अब तक 75 करोड़ के लगभग पौध लगाने का दावा किया है। फाइलों में लगे यह पौधे धरती पर नजर आते तो शायद बुंदेलखंड की तस्वीर कुछ और होती।