मुहम्मदी बेगम (22 मई 1878 – 2 नवम्बर 1908) ने साप्ताहिक पत्रिका तहजीब-ए-निस्वान की सह-स्थापना की और उसकी संस्थापक संपादक बनीं,
मुहम्मदी बेगम महज़ 30 साल ज़िंदा रहीं, उन्होंने अपने इस छोटे से जीवन काल में तीस किताबें लिखीं, जिनमें “शरीफ़ बेटी” भी शामिल है , जो बच्चों की तयशुदा शादियों (Arranged marriage) के खतरों पर है,
मुहम्मदी बेगम ने अपने पति मुमताज अली के साथ अपना काम शुरू किया, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों पर जोर देने वाली एक किताब ‘हुकूक-ए-निस्वान’ लिखी थी, मुमताज़ दारुल उलूम, देवबंद से शिक्षित और लाहौर आधारित प्रकाशक थे,
तहजीब-ए-निस्वान का पहला अंक 1 जुलाई 1898 को प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन का लक्ष्य महिलाओं का उत्थान था और उसमें महिलाओं की विभिन्न समस्याओं और मुद्दों पर लेख प्रकाशित होते थे,
तहजीब-ए-निस्वान महिलाओं के लिए विशेष रूप से प्रकाशित होने वाली पहली उर्दू पत्रिका नहीं थी, इससे पहले कई पत्रिकाएं निकल चुकी थीं, इस क्रम में रफीक-ए-निस्वान ऐसी पहली उर्दू पत्रिका थी, 5 मार्च, 1884 को एक ईसाई मिशनरी द्वारा लखनऊ से शुरू किया गया, यह एक पाक्षिक था,
अख़बार-उन-निसा महिलाओं के लिए दूसरी उर्दू पत्रिका थी, प्रसिद्ध कोशकार और फरहंग-ए-आसिफिया के संकलनकर्ता सैयद अहमद देहलवी ने इसे 1 अगस्त, 1884 को दिल्ली से लॉन्च किया था, यह महीने में तीन बार प्रकाशित होता था, यह महिलाओं के अधिकारों की वकालत करता था लेकिन 350 प्रतियों के अल्प प्रसार के साथ, यह अधिक समय तक टिक नहीं सका,
उर्दू के जाने-माने पत्रकार और लेखक मुंशी मेहबूब आलम लाहौर से पैसा अख़बार प्रकाशित करते थे उन्होंने 1 सितम्बर 1893 को महिलाओं के लिए एक उर्दू मासिक पत्रिका शरीफ़ बीवियां शुरू की, लेकिन जल्द ही इसे बंद करना पड़ा, इन महिला पत्रिकाओं के बंद होने का एक कारण महिलाओं के लिए पत्रिकाएँ जारी करने पर समाज की सामान्य नाराजगी थी,
मुहम्मदी बेगम की अन्य कृत्यों में शामिल हैं:
आज कल
सफिया बेगम
चंदन हार
आदाब ए मुलाक़ात
रफ़ीक़ अरोस
खानादारी
सुघढ बेटी
उनके बेटे इम्तियाज़ अली ताज एक मशहूर नाटककार थे, उनकी कृति “अनारकली” पर फिल्म “मुग़ल ए आज़म” बनी,