अग्रसेन भवन, लोहामंडी में चल रही श्रीराम कथा के पांचवे दिवस हुआ वनवास प्रसंग
श्री प्रेमनिधि जी मंदिर न्यास ने आयोजित की है सात दिवसीय श्रीराम कथा
प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से हो रही कथा, जीवन आदर्शाें की सीख दे रहे कथा व्यास अतुल कृष्ण
श्री प्रेमनिधि मंदिर में दर्शन को पहुंचे कथा व्यास अतुल कृष्ण, बोले भक्ति के ध्रुव तारें थे श्री प्रेमनिधि जी
आगरा। आकुल, व्याकुल हो उठे नयन, भर आया हर हृदय और रुंध गए कंठ। अपने राम को वनवास…अरे कैकइ क्या कर दिया तूने, कैसे रहेंगे अब अयोध्यावासी…श्रीराम कथा स्थल पर उपस्थित हर श्रद्धालु स्वयं को अवधवासी ही समझने लगा। कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कुछ इस तरह से वनवास लीला प्रसंग का सचित्र वर्णन किया कि जो श्रोता जहां था वहीं बैठा बैठा सजल नेत्रों से भाव विभोर हो गया।
लोहामंडी स्थित अग्रसेन भवन में श्रीप्रेमनिधि मंदिर न्यास द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा में कोप भवन, वनवास लीला, केवट प्रसंग, हनुमान मिलन आदि प्रसंगों का वर्णन कथा व्यास ने किया।
प्रसंग से पूर्व मुख्य यजमान सुमन सूतैल और बृजेश सूतैल, दैनिक यजमान गौरी शंकर, मनीष अग्रवाल, श्रीप्रेम निधि मंदिर के सेवायत सुनीत गोस्वामी और मंदिर प्रशासक दिनेश पचौरी ने सपत्नीक व्यास पूजन किया।
कथा व्यास अतुल कृष्ण ने कहा कि राम के त्याग, धैर्य और संयम ने ही उन्हें मर्यादा पुरुषाेत्तम राम बनाया। सीता जी से विवाह के बाद कुछ पल ही राजसी आनंद में बिताए थे कि कुल की मर्यादााको ध्यान में अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए वो प्रसन्नता से राजपाठ त्याग वन चले गए। इसके पीछे उद्देश्य जगत का कल्याण था जो राजगद्दी पर बैठकर नहीं हो सकता था।
उन्होंने कहा कि भगवान राम के इस कर्म से हमें सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं की चिंता न करते हुए यदि जरूरत पड़े तो अपने परिवार समाज व देश के लिए सब कुछ त्याग देना चाहिए। कथा व्यास ने विविध चौपाईयों के माध्यम से कहा है कि राजा दशरथ ने दर्पण में अपना मुख देख कर वृद्धावस्था की ओर जाने का जब अनुभव किया तो अपने दायित्व, अपना सिंहासन ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम को सौंपने का निर्णय लिया, क्योंकि एक अवस्था के बाद माया से मोह त्याग प्रभु कीर्तन में ही रमना आवश्यक है।
वर्तमान परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आज के बुजुर्गों को राजा दशरथ से प्रेरणा लेनी चाहिए और शरीर में ताकत रहते ही व आंख की रोशनी रहते ही सारी जिम्मेदारी अपने वारीश को सौंपकर भगवान के सुमिरन में लग जाना चाहिए। राजा दशरथ ने अयोध्या वासियों के समक्ष श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव रखा मगर यह कार्य कल पर छोड़ दिया परिणाम काफी दुखद रहा इसलिए व्यास जी ने कहा कि अच्छे कार्यों को टालने की जगह शीघ्र करना ही श्रेयष्कर होता है। सभी को सदैव प्रसन्न रहने की प्रेरणा भगवान श्रीराम से लेनी चाहिए। भगवान जहां भी रहते हैं प्रसन्न रहते हैं, दुख उनसे कोसों दूर रहता है।
कहा कि कौशल्या माता के मन में पुत्र के वनवास का दुख था किंतु वचन मर्यादा भी थी। कौशल्या ने किसी को दोषी नहीं बताया बल्कि कहा कि यदि मां कैकयी ने वन जाने को कहा है तो हे राम वनगमन तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के समान है। वे कहती हैं कि सुख और दुख तो अपने ही कारणों से होते हैं।
कथा प्रसंग में व्यास जी ने कहा कि भाई हो तो लक्ष्मण जैसा जब भगवान श्रीराम वनवास जा रहे थे तब लक्ष्मण ने अपनी माता से कहा कि मैं भी वनवास जाना चाहता हूं, मां सुमित्रा ने कहा कि मैं तो जननी ही हूं किंतु वास्तविक माता पिता राम सीता हैं।
जब भगवान श्रीराम लखन एवं सीता सहित वन गमन के लिए निकले तो सभी अयोध्यावासी अपने अपने घरों से भगवान के पीछे निकल पड़े। उन्होंने कहा कि
राम चरित मानस में मां कैकेयी बहुत ही महान पात्र हैं यदि मां कैकेयी नहीं होतीं तो रामकथा बाल काण्ड में ही समाप्त हो जाती। कैकेयी मां ने ममता में साहस भर कर पुत्र के प्रति कठोर स्नेह का दर्शन कराया है। माँ कैकेयी अगर राम को वनवास नहीं करातीं तो अखण्ड भारत का स्वरूप मर्यादा से ओत-प्रोत करके रामराज्य की स्थापना नहीं हो पाती।
श्रीराम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने में मां कैकेयी ने अपना अनुराग, भाग और सुहाग सब कुछ समर्पित कर दिया।
कथा प्रसंग में छठवें दिन शुक्रवार को सीता हरण, हनुमान मिलन आदि प्रसंग होंगे। इस अवसर पर अखिलेश अग्रवाल, संजीव जैन, मुरारी लाल अग्रवाल, सुधीर भोजवानी, मनीष धाकड़, मानसिंह धाकड़, पीयूष अग्रवाल, प्रकाश धाकड़, आशीष सिंघल, राहुल पचौरी, विजय गोयल, डॉ मंजू गुप्ता, श्याम नंदन सिंह, प्रेरणा सिंह, अंजली अग्रवाल, वैभव दास, अशोक यादव, गंगा परिवार, दीवान सिंह आदि उपस्थित रहे।
श्रीप्रेमनिधि थे भक्ति के ध्रुव तारेः अतुल कृष्ण
कथा प्रसंग के बाद कथा व्यास अतुल कृष्ण ने नाई की मंडी पहुंच कर श्रीप्रेमनिधि जी मंदिर में दर्शन लाभ लिया। यहां मुख्य सेवायत हरिमोहन गोस्वामी ने उन्हें श्रीप्रेमनिधि जी द्वारा अकबर की जेल में लिखित करुणा पच्चीसी रचना भेंट की। ठाकुर श्याम बिहारी जी के दर्शन कर कथा व्यास ने कहा कि श्रीप्रेमनिधि जी भक्ति मार्ग में ध्रुव तारे की तरह हैं। उनकी अनुपम भक्ति का साकार रूप हैं ठाकुर जी। मंदिर दर्शन के बाद राग सेवा का आनंद भी कथा व्यास ने लिया। ठाकुर जी के पद गान शयन तक होते रहे।