संवाद।। विनोद मिश्रा
बांदा। सरकार कीनई शिक्षा नीतिके दावे अत्यंत सुंदर दिखते हैं लेकिन क्या वह सफलता के पायदान छू पाऐगे ऐसा तो फिलहाल लगता नहीं।
नई नीति के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों को प्राइमरी विद्यालयों में समाहित कर प्री-प्राइमरी क्लास शुरू करने की कवायद हो रही है। इसके लिए शिक्षकों को संकुल स्तर पर प्रशिक्षित करने के लिए कार्यक्रम हैं। लेकिन खास बात यह है कि सरकार के इस मंसूबे पर आंगनबाड़ी केंद्रों की मौजूदा हालत पानी फेर सकती है। निजी भवनों में संचालित ज्यादातर केंद्रों में ताले लटके हैं, जो खुल रहे हैं उनमें न बच्चे हैं और नहीं धात्री महिलाएं।
जिले में इस समय 1705 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। इनमें 1518 केंद्र ग्रामीण क्षेत्र और 187 शहर में हैं। इनमें पुष्टाहार, टीकाकरण सहित छह साल से कम उम्र के बच्चों को प्री-प्राइमरी का ज्ञान दिए जाने की जिम्मेदारी है। प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में मुख्य कार्यकर्ता के अतिरिक्त एक सहायिका भी कार्यरत है। मौजूदा समय में केंद्रों की हालत बेहद दयनीय है। जिले के 277 आंगनबाड़ी केंद्र खुद के भवन में संचालित हैं। 1428 आंगनबाड़ी केंद्र कार्यकर्ताओं के घरों या फिर निजी भवनों में चल रहे हैं। न तो इनमें बच्चे हैं और न ही सरकारी योजनाओं को ठीक प्रकार से क्रियान्वयन हो रहा है।
आश्चर्य तो यह हैं की इन केंद्रों का जायजा लिया गया तो शहर के अधिकांश केंद्र बंद पाए गए। जो केंद्र खुले थे तो वह बच्चों से सूने थे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने निजी कार्यों में व्यस्त थी।
निजी भवनों में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में फर्नीचर आदि की व्यवस्था नहीं है। शायद सरकार ने इसी वजह से राष्ट्रीय नई शिक्षा नीति में आंगनबाड़ी केंद्रों को प्राइमरी स्कूलों में समाहित करने की व्यवस्था की है।
जिला कार्यक्रम प्रभारी सुधीर कुमार नें बताया की आंगनबाड़ी केंद्रों को प्राइमरी विद्यालयों में समाहित कर प्री-प्राइमरी क्लास का संचालन करने के प्रयासहैं। आगामी शिक्षा सत्र से इन्हें प्राइमरी विद्यालयों में चलाया जाएगा। इससे आंगनबाड़ी भवनों के न होने की समस्या खत्म हो जाएगी। एक छत के नीचे आंगनबाड़ी केंद्र व विद्यालय दोनों चलेंगे।