आगरा। मशहूर ताबई हुजूर जिन्दा शाह कुतबुल मदार की मुक्तसर मालूमात एक नजर में उर्से शरीफ़ 17 जमादिल अव्वल आपका पूरा नाम सैयद बदीउद्दीन अहमद लक़ब कुल्बुल मदार, ज़िंदा शाह मदार, कुल्बुल इरशाद, मदारे आलम, शम्सुल अफ़लाक़, मदारूल आलमीन, ज़िन्दाने सूफ, जुब्दतुल आरेफ़ीन, सुल्तानुल फुक़रा, वग़ैरह कुत्रियत : अबू तुराब वालिदे गिरामी : सैयद काजी किदवतुद्दीन अली हलबी रज़ियल्लाहु अन्हु वालदाह माज़ेदा : सैयदा फ़ातेमा सानिया उर्फ फातेमा तबरेज़ी रज़ियल्लाह अन्हा
हसब ओ नसब आप नजीब्त्तरफैन हसनी हसैनी सैयद है। वालिद-ए-गिरामी की तरफ से शजरा-ए-नसब सिर्फ 10 वास्तों से
सैयदुश्शोहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा से,
जबकि वालेदा माजेदाह की तरफ से सिर्फ 9 वास्तों से
हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाह अन्हुमा से मिलता है।
जानिए विलादत के बारे में
1 शव्वाल 242 हिजरी, बरोज़ पीर (ईदुलफ़ित्र), मुल्क शाम सीरीया, के शहर हलब के मुहल्ला चुनार मे हुई।
यहां हासिल की तालीमो तरबियत
शैख कबीर हज़रत शैख हजैफा मरअशी शामी रजिअल्लाहु अन्हु जो मुरीदो खलीफ़ा है हज़रत सैयदना इब्राहिम बिन अदहम बल्खी रज़ियल्लाहु अन्हु के है।
ये हैं आपके उस्ताद शैख कबीर हज़रत सैयदना हुजैफा मरअशी शामी कुदूससिर्रंह के खिदमत में चौदह (14) साल की उम्र गुजार कर जुमला उलूमा फ़नून की तहसील फ़रमाई, नीज़ कुरान मुकद्दस क सा्थ-साथ कुतुब समाविया खुसूसन तौरात, इंजील, जबूर के आलिम व हाफ़िज़ हुए।
ख़िलाफ़तो इज़ाज़त: 259 हिजरी में सेहने बैतुल मुकद्दस में सुल्तानुल औलिया हजरत बायज़ीद बुस्तामी रजिअल्लाहु अन्हु से बैअत ओ इजाजत से मुशर्रफ हुए। और हज़रत सुल्तानुल आरेफीन बायज़ीद बुस्तामी ने आपको खिर्का-ए-खिलाफ़त व इज़ाज़त अता फ़रमाया। (जाफ़रिया तैफूरीया, बसरीया तैफूरीया, सिद्दीकीया तैफूरिया, में दाखिल फ़रमाया।
और आप फ़रीज़ाए हज के लिये रवाना हो गये। अरकाने हज से फ़ारीग होने के बाद, दुनिया व कोनेन के फरमा रवां हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम आलमे मिसाल में जलवा गर हुए। निगाहें नबूवत ने आप के सीना पाक को जलवाऐ हक का गहवारा बना दिया। इसी आलम में मौला-ए-कायनात हज़रत अली मुर्तजा रजियल्लाहु अन्हो तशरीफ़ फ़रमा हुए। हुक्मे रिसालत माब हुआ अली इस फ़रज़न्द सईद को उलूमो बातीन से मजीद सरफ़राज़ करो ।
ताज़दारे विलायत नें आगोशे रहमत में लेकर आप के कल्ब को विलायत आज़मी का मोहतमील बना दिया और बारगाहे रिसालत में पेश कर दिया। हुजूर अलैहि सलातो वस्सलाम
ने इस्लाम की हकीकी तालीम फ़रमा कर शरफ़ो उवैसियत से मुशरफ फ़रमाया और ओहदा-ए-मदारियत से सरफ़राज़ फ़रमाकर खलाईक में जब्रो कसर और अज़्लो नसब का मुख्तार बना दिया। कुत्बुल मदार, मदीना मुनव्वरा में हाज़िर हुए तो बरूहानियत हज़रत मुहम्मद मुस्तिफ़ा सल्लल्लाहों अलैहि व सल्लम ने अपने हुजरा-ए-खास में आप पर बाकमाल मेंहीबानियाँ अता फ़रमाई।
आपको हिंदुस्तान जाने का हुक्म हुआ
आप सन् 282 हिजरी में हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। हुजूर सैयदना बदीउद्दीन अहमद जिंदा शाह कुल्बुल मदार कुदसुसिरह उस वक्त हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए जब यहां मुसलमानों का नामों निशान नहीं था। मोहम्मद बिन कासिम अलवी की कायम कर्दा हुकुमत ज़वाल पज़ीर हो चुकी थी।
(किताब तारिखे सलातीने शरकी शरकीया व सूफ़ीया-ए-जौनपुर)
ये हैं मुरीदीन
आपने तकरीबन 600 साल का तवील अरसा पाया, जिस में ला तादात मुरीदीन व मुतवस्सलिन हुए । जिन में – बादशाह इब्राहिम शर्की, मीर सदर जहाँ, अब्दुल क़ादीर अल मारूफ, शेख ज़मीरी बगदादी, बू अली रोदबारी, सैयद जानेमन जन्नती, सैयद सालार साहू गाजी, सैयद सालार मसूद गाज़ी, शेख
अहमद बिन मसरूक़ वरैरह शामिल है।
खुल्फा-ए-क़िराम
सैयद अबु मोहम्मद अरगून, सैयद अबू तूराब
फ़न्सूर, सैयद अबुल हसन तैफूर, सैयद जानेमन जन्नती, सैयद अहमद बादपा (भाँजा-ए-मोहतरम गौसुल आज़म दस्तगीर),
सैयद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी, काजी शहाबुद्दीन दौलताबादी, बादशाह इब्रहिम शर्की, अब्दुल कादीर अल शेख ज़मीरी बगदादी, बू अली रोदबारी, काज़ी मुतहर, काज़ी महमूदुद्दीन किन्तूरी,
शाह अजमल बहराईची, हिस्सामुद्दीन सलामती जौनपुरी, मीर शम्सुद्दीन हसन अरब, मीर रूक्नुद्दीन हसन अरब (भतिजे मोहतरम गौसुल आज़म दस्तगीर) सैयदना सिकन्दर दिवाना रिजवानुल्लाहे तआला अज़मईन वगौैरह शामिल है।
चंद मुआस्सरीन : सहाबी-ए-रसूल हज़रत बाबा रतन हिन्दी
रज़ियल्लाहु अन्हु (बठिण्डा) शरीफ़, हज़रत जुनैद बगदादी, शेख अहमद बिन मसरूक खुरासानी, हकीम तिर्मिजी, अबू बक्र वर्राक, हज़रत शेख गौसुल आज़म अब्दुल क़ादीर ज़िलानी, हज़रत ख्वाजा मुईनु्दीन हसन चिश्ती ग़रीब नवाज़, सैयद सालार
साहू गाज़ी, सालार मसूद ग़ाज़ी, अशरफ़ जहाॉगीर सिमनानी, कुतुब शाह मीना लखनवी, शेख अबू नस्र अब्दुल वहाब, शेख गीलान वास्ती रिज़वानुल्लाहे तआला अज़मईन।
दाअ्वतो तब्लीग : आपकी खिदमत बे शुमार हैं आपने पूरी दुनिया में दिने इस्लाम को फैलाया है। ईरान, बाग्लादेश, इराक, अफ़गानिस्तान, तुर्की, नेपाल, श्रीलंका, चीन, हिन्दुस्तान, मिस्र, यमन, लिबीया, स्पेन समेत ऐशिया, अफ्रीका और यरोप के तकरीबन 52 मुल्कों में सवा लाख से ज़ायद चिल्लागाहें और इबादतगाहें आपकी तब्लीगो इशाअते इस्लाम की शवाहिद बयान करती है।
रिसाला हज़रत सैयद ज़हीरूद्दीन इलियास रहमतुल्लाह अलैह ने सन् 840 हिजरी में तहरीर फ़रमाया है कि, ‘हज़रत कुत्बुल मदार के जुमला खलीफ़ा एक लाख चौबीस हज़ार तीन सौ साठ है और आपने साढ़े नौ करोड़ काफ़िरों को दायरा-ए-इस्लाम में शामिल फ़रमाया।
आपने समरकन्द, बुखारा, तूस, खुरासान, बदख्शा, बगदाद, काबुल समेत कई मुमालिक होते हुए हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। सात मर्तबा मक्का मौअज्जमा में फ़रीज़ाए हज अदा फ़रमाकर, बारगाहे हबीबे खुदा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम में हाजिर होकर अश्कों के मोती पेश कर अलग-अलग रास्तों से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए और तर्बियतो तज़किया के लिए फ़रमाने मुहम्मद सल्लल्लाहोअलैहि व सल्लम के मुताबिक दारून्नुर मकनपुर (कानपुर) को अपना मर्कज़ एक आलम को फैज़याब किया।
आपका विसाल
17 जमादिल अव्वल 838 हिजरी, बरोज़ जुमा के दिन।
आपकी कुल उम्र शरीफ़ 596 साल 6 महीने 16 दिन की हुई।
नमाज़े जनाज़ा : हज़रत हिसामुद्दीन सलामती जौनपुरी ने पढाई।
मज़ार मुबारक : मकनपुर शरीफ़, तहसील बिल्हौर, ज़िला कानपुर
(यु पी.) हिन्दुस्तान में वाकेअ् है। ?
आपका उर्से शरीफ़ हर साल 17 जमादिल अव्वल को तीन रोज तक मनाया जाता है
कमालात : आप मक़ामे मदारियत और समदियत पर फ़ाईज़ थे।
कुतुबे अरबिया, समाविया के आलिम और हाफ़िज़ थे। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहो अलेहिव सल्लम से शरफे उवैसियत हासिल था। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहि कमालात सल्लम के दस्ते अकदस की बरकत से आपका रूखे अनवर ताबिन्दा हो गया था
और सात नकाब रूखे आनवर पर पड़े रहते थे। आका सल्लल्लाहों अलैहि व सल्लम की इनायतों करम से 556 बरस तक रोज़ा रखा और ताउम्र जन्नती पेराहन जेबेतन फ़रमाया।
हज़रत मौलाए कायनात अली युल मुर्तज़ा करमल्लाहु वज्हुल करीम से उलूमे बातिनी की तहसील फ़रमाई। नामवर अक्ताबो औलिया फैज़ाने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम से ईस्लाम को अता फ़रमाए, मुल्क की अकसर ख़ानकाहों को सिलसिला-ए-मदारिया से नवाज़ा, माअ्रूफ़ उलमाओं सूफ़िया ने आपके फ़ज़ाइलो मनाकिब बयान किए हैं।
हज़रत कुतबे रब्बानी गौसे समदानी सैयदना शेख अब्दुल कादिर ज़िलानी महबूबे सुब्हानी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने (‘मक्तूब किताब कुबरतुलवहदत’) और हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी शहंशाहे हिन्दलवली रहमतुल्लाही अलैह ने अपने मक्तूब ‘(किताब अहदियतुल मुआरिफ़)’ में लिखा है कि – बिल्लाह सुम्मा बिल्लाह हमने देखा कि हज़रत सैयद शाह बदीउद्दीन के नकाब अहयानन एक या दो उठ जाते थे तो खल्कुल्लाह सज्दे में गिस्ने लगती थी, क्युकि जिस तरह आदम अलेहिस्सलाम मसजूदे मलाईक थे, उसी तरह हज़रत बदीउद्दीन मसजूदे खलाईक थे और ये शरफ़ उनको सिर्फ दस्ते अकदस हज़रत सरवरे कौनेन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने चेहरे पर मस करने से हुआ था। मगर आप हिज़ाबात में अपना चेहरा मस्तुर रखते थे, ताकि शरीअत के बाहर कदम न निकले।”
तवारिखे आईनाए तसव्वुफ,मुसन्निफ हजरत मौलाना मुहम्मद हसन चिश्ती रामपुरी अलेहिरहामा, सफ़हा ( 54) (जुल्फ़िकारे बदीओ, सफ़हा 106) (मिलाद जिन्दा शाह मदार, सफहा 43) (सायक्रा, सफ़हा 20-21, अंजुमन तहफ्फुजे सिलसिला आलिया मदारिया शाख मुम्बई) सुल्तानुत्तारेकीन हज़रत मख्दुम सैयद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी कुदसुसिरह इरशाद फ़रमाते हैं, – शेख फ़रीदुद्दीन अत्तार कुदसुसिरह बयान फ़रमाते हैं के,अल्लाह अज़्वज़ल के वलियों में से कुछ हज़रात वह हैं जिन्हें बुजुर्गाने दीन ओ मशाईख तरीकते “उवैसी’ ” कहते हैं ।
इन हज़रात को जाहिर में किसी पीर की ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि हज़रत रिसालत पनाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम अपने हुजरा-ए-इनायत मे बज़ाते खुद उनकी तर्बियत और परवरिश फ़रमाते हैं । इस में किसी गैर का वास्ता नहीं होता, जैसा कि आप सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने हज़रत उवेस करनी रजियल्लाह अन्ह को तर्बियत दी थी। ये मुकामें उवैसियत निहायत ही ऊँचा, रोशन और अज़ीम मुकाम है। किसकी यहाँ तक रसाईहोती है। ये दौलत किसे मयस्सर आती है, बमोज़्जबे आयते करीमा, जालेका फ़ज़लुल्लाह युतिह मय्यशाओ वल्लाहे फ़ज्तुलफज़्लुल अज़ीम।
” (ये अल्लाहका मख्सुस फ़ज़्ल है, वह जिसे चाहता है अता फ़रमाता है और अल्लाह अज़ीम फ़ज़्ल वाला है।) (लताइफ़े अशरफी) में हज़रत मख्दुम सैयद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी कुदसुसिर मज़ीद इरशाद फ़रमाते हैं “हज़रत शेख बदीउद्दीन जिन्दा शाह मदार कुदसुसिर भी उवैसी हुए हैं। निहायत ही बुलन्द मर्तबा और शरफ वाले है। बाज़ नादिर उलूम जैसे-इल्म हीमिया, कीमिया, रीमिया, लीमीया उन से मुशाहिदे में आए हैं। जो इस गिरोहे औलिया में नादिर ही किसी को हासिल होते हैं। (लताइफे अशरफ़ी, फ़ारसी, सफ़हा 354) मुकामे मदारियित अभी- अभी आप पढ़ चुके हैं कि हज़रत बदीउद्दीन अहमद कुत्बुल मदार को मकामे मदारियत, खलाइक में अज़ल ओ नसब और ज़बरो कस्र का इख्तयार और शरफ़े निस्बते उवैसियत बारगाहे नबवी सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम से हासिल हुआ। अब बुजुर्गो के इरशादात की रोशनी में देखा जाए कि
“मकामे मदारियत क्या है ?
ओर कुत्बुल मदार के तसर्रूफात व इख्तियारात क्या होते हैं ? ताकि जमाअते औलिया-ए-किराम में हजरत कुत्बुल मदार की ज़ाते बाबरकत मुतय्यन कर सके।
औलिया अल्लाह की मशहूर किस्में * हजरत गौस अली शाह कलंदर पानीपती रहमतुल्लाह अलैह “तज़किरा-
ए-गौसिया ‘ में फरमाते हैं कि, “”औलिया अल्लाह की बहोत सी किस्में है। अगरचे ठीक-ठीक सिवाए जाते पाक के कोई नहीं जानता, लेकिन मशहूर ये हैं – “कुल्बुल मदार”, “”सूफ़ी उल वक्त”, सूफी इब्नुल वक्त'” । (तज़किरा-ए-गौसिया जमीमिया जदीदाह)
मौलाना गुलाम अली नक्शबन्दी मुज्जदीद्दी इरशाद फरमाते हैं, “हक तआला कारखाना-ए-हस्ती ओ तवाबअ हस्ती के अजरा का काम कुत्बुल मदार के सुपुर्द फरमा देता है और गुमराहों की हिदायत व रहनुमाई कुत्बुल मदार अंजाम देता है। इस के बाद इरशाद फ़रमाते हैं कि, ‘ “हज़रत बदीउद्दीन शेख मदार (कुदस ) कुत्बुल मदार थे और अजीम शान वाले थे। (दुरुल मुआरिफ, मताबेअ इस्ताबुल तुर्की, सफ़हा 243),
इमाम सुयुती अपनी किताब (किताबुताज) में फरमातें है के इमामे आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाहि अलैह के मसलक के सबसे बड़े मुबल्लिग हज़रत सैय्यद बद्दीउद्दीन अहमद कुतबुल मदार ही की वजह से पूरी दुनिया में हनफियत परवान चढ़ी
हज़रत शेख अब्दुल हक मोहद्दीस देहलवी ‘अख्वारूल अख्यार ‘में तहरीर फ़रमाते हैं -“लोग शाह बदीउद्दीन मदार के अजीबो-गुरीब हालात बयान करते हैं, फरमाते हैं कि आप मकामे ‘समदियत’ पर फार्ईज थे जो सालिकों के मकामात में से है। (अख्बारूल अख्यार, उर्दु तर्जुमा सफहा 292)
आप की दुआ से सैय्यद सालार मसऊद गाजी रजिअल्लाहु अन्हु पैदा हुए। और शहादत का जिक्र भी पहले ही कर दिया था ( करामाते मसऊदिया)
हज़रत सैय्यद बद्दीउद्दीन अहमद कुतबुल मदार ने “लखनऊ की विलायत और कुतबियत हज़रत शाह मीना रहमतुल्लाह अलैह के सुपुर्द कर दी थी ।
अज क़लम : झहीरुद्दीन आशिकान-ए-मदार
9552438376/9284497729