धरती बेशक कम हो मेरी, पर आकाश बड़ा कर देना…
हिन्दी नहीं बची तो भारतीय संस्कृति और संस्कार भी नहीं बचेंगे
आगरा। जमीं के रहने वाले झुक के चलना सीख ले वरना, सितारों का भरोसा क्या सितारे टूट जाते हैं…। कवि रामेन्द्र मोहन त्रिपाटी की यह पंक्तियां आज छविरत्न स्व. सत्यनारायण गोयल को समर्पित थीं। जिनकी पुण्य स्मृति में आज आलोक सभा द्वारा बाबूलाल गोयल सरस्वती शिशि मंदिर में काव्योत्सव व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि आरबीएस कालेज के प्राचार्य डॉ. विजय श्रीवास्तव व आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मुकेश गोयल ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
विजय गोयल ने मुफीद ए आम इंटर कालेज के उपप्रधानाचार्य का पिरचय देते हुए कहा कि अपने हर विद्यार्थी को जीवन की छोटी छोटी व्यवहारिकता और जीवन जीने की कला को सिखाया है पन्नालाल अग्रवाल ने। पन्नालाल अग्रवाल व वरिष्ठ पत्रकार महेश धाकड़ को विजय गोयल, संजय गोयल ने स्मृति चिन्ह व शॉल पहनाकर सम्मानित किया। सरस्वती वंदना के साथ रुचि चतुर्वेदी ने काव्योत्सव का शुभारम्भ करते हुए जीवन के सब मेले देखे, उलझन और झमेले देखे, देखे सुख के सावन भादों, दुख के तिकने रेले देखे…
कविता प्रस्तुत की। हास्य कवि लटूरी लट्ठ ने हिन्दी नहीं बची तो देश की संस्कृति र संस्कार भी नहीं बचेंगे की बात कहते हुए अपनी रचना जो भी मुझको देना चाहो, ऊपर सदा चढ़ा कर देना। भीड़ बाड़ में न खो जाऊं, सबसे अलग खड़ा कर देना। एक गुजारिश मेरे मौला, हरदम तुमसे बनी रहेगी, धरती बेशक कम हो मेरी, पर आकाश बड़ा कर देना… प्रस्तुत की। राकेश निर्मल ने अब हमारी दस्तरत से दूर हो गए गांव, शहर में लोग चलते नित नवेले दांव… और पदम गौतम ने सहारे बेरहम होते हैं क्सर टूट जाते हैं, जो दिल के पास रहते हैं अक्सर रूठ जाते हैं।
जमीं के रहने वाले झुक के चलना सीख ले वरना, सितारों का भरोसा क्या, सितारे टूट जाते हैं… व डॉ. ज्योत्सना शर्मा ने राम से बड़ा राम का नाम, राम नाम लेने से बनते सारे बिगड़े काम… कविता का काव्यपाठ किया। संचालन लटूरी लट्ठ व राकेश निर्मल ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से विजय गोयल, संजय गोयल, धीरज, विवेक, प्रमोद चौहान सीए, अशोक चौबे, उदय अग्रवाल, आदर्शन नन्दन गुप्ता, एड. सुभाष अग्रवाल, एनके भारद्वाज, एड.रवि अरोरा आदि उपस्थित थे।