आगरा। बांग्लादेश में अल्पसंख्यको, खासकर हिन्दुओं को निशाना बनाकर हो रही सांप्रदायिक हिंसा पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इस हिंसा को तत्काल रोका जाना चाहिए।
इस समस्या का एक मात्र हल सन 1950 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर हुआ वह समझौता है जिसमें दोनों देशों की सरकारों ने अपने अपने देशों के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा किया था (1950 में मौजूदा बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था और पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था) इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 8 अप्रैल 1950 को दिल्ली में हस्ताक्षर किए थे इसे लियाकत नेहरू पैक्ट या दिल्ली समझौता भी कहा जाता हैं।
इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों में शांति और आपसी सौहार्द सुनिश्चित करना था इस समझौते में यह निश्चित किया गया कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे ।
दोनों देशों के बीच यह द्विपक्षीय संधि थी उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह ही बांग्लादेश की सरकार ने यह कबूल किया है कि गत अगस्त माह में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यको खासकर हिन्दुओं को निशाना बना कर सांप्रदायिक प्रकरणों की पुष्टि हुई है ढाका से प्राप्त मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के प्रवक्ता ने मंगलवार को इन आंकड़ों का खुलासा किया और कहा इन हमलों के सिलसिले में सत्तर लोगों को गिरफ्तार किया गया है जो अपर्याप्त हैं लगभग 17 करोड़ आबादी वाले बांग्लादेश में डेढ़ करोड़ हिंदू, दस लाख बौद्ध, और करीब पांच लाख ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित लोग हैं।
समाजवादी पार्टी पूरी दुनिया के देशों में अल्पसंख्यकों के हितों की प्रबल पक्षधर हैं अपने अपने देशों में अल्पसंख्यको की सुरक्षा के लिए भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत दुनिया के डेढ़ सौ से ज्यादा देश 1992 में संयुक्त राष्ट्र के साथ किए गए वायदे के साथ प्रतिबद्ध है इससे पूर्व 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह घोषणा की।
कि अल्पसंख्यकों के हितों के प्रति उदासीन नहीं रहा जा सकता इसके बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (कॉवेंट) 16 दिसंबर 1966 को अपनाया गया तदनुसार 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जातीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियो के अधिकारों पर सर्वसम्मति से इस घोषणा पत्र (1992 घोषणा पत्र) को अपनाया इस घोषणा पत्र का उद्देश्य अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियो के अधिकारों को सुरक्षित रखना है
भारत सरकार को इन प्रावधानों के अंतर्गत बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के सवाल पर अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखना चाहिए जो व्यापक रूप से सभी देशों के लिए स्वीकृत विधि रूप से बाध्यकारी प्रावधान है।इस मौके डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान, धर्मेंद्र यादव,मदन गर्ग ,सलीम शाह,मुईन बाबू जी, गौरव यादव,फैजान उद्दीन आदिल मौजूद थे।