आगरा। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा, गुरुकुल यू.के., लंदन अखिल विश्व हिंदी समिति,कनाडा,हेरम्ब आर्ट एंड कल्चर सेंटर,न्यूयॉर्क एवं ओं अहर्म सोशल वेलफेयर फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में हाइब्रिड मोड में आयोजित स्कृत शतक काव्य परंपरा में मुनि श्री दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी ‘संप्रणम्य सागर विरचित गोवैभवशतकम् का स्थान’ विषय पर आयोजित द्विदिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ विश्वविद्यालय के जुबली हॉल, पालीवाल परिसर में प्रातः 10:30 से किया किया गया।
विषय प्रवर्तन करते हुए एवं अतिथियों का परिचय देते हुए विद्यापीठ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने कहा, कि -” संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है। विदेशों में रहने वाले भारतीय , वहाँ रहकर भारतीय ज्ञान एवं ज्ञान परम्परा को संस्कृत के गुरुकुल चलाकर, संस्कृत भाषा पर परिचर्चा श्लोकों का अनुवाद करके एवं पाठ के माध्यम से संस्कृत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलपति प्रो. आशुरानी जी ने कहा, कि -” संस्कृत देवताओं की भाषा है। हम देवताओं से बात केवल संस्कृत में ही कर सकते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत जरूरी है, कि संस्कृत तथा अन्य विषयों का ज्ञान विश्व में प्रसारित हो। हमारा संस्कृत का साहित्यिक और जो वैदिक ज्ञान है, इसका प्रसार भी भारत से बाहर होना चाहिए और उसकी जिम्मेदारी संस्कृत के छात्रों पर बहुत ज्यादा है। “
गुरुकुल यू.के. की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. इंदु बारौठ ने मुख्य अतिथि के पद को सुशोभित करते हुए अपने वक्तव्य में कहा ‘कि -” लंदन के निवासी संस्कृत भाषा प्रति बहुत अधिक रुचि दिखाते हैं। वहाँ संस्कृत भाषा का प्रचार प्रसार इतना ज्यादा है,कि वहां के बच्चे भी रुद्राष्टक और शिव स्त्रोत याद कर लेते हैं। “
वरिष्ठ कवि,लेखक एवं कार्यक्रम निदेशक आई.टी.वी. गोाल्ड, न्यू जर्सी,अमेरिका से विशिष्ट अतिथि श्री अशोक व्यास जी ने अपने अपने वक्तव्य में कहा, कि -” अमेरिका में भगवदगीता और भारत एक दूसरे के पर्याय लगते हैं। एक ऐसा देश है जो न केवल हमें सुरक्षित रखता है बल्कि हमारे अंदर की मानवता को भी जीवित रखना है। हमें हृदय से कुंठा मिटाकर बैकुंठ में जाने के लिए भागवत गीता के पाठ का आश्रय लेना पड़ता है। अमेरिका में संस्कृत भाषा सीखने के प्रति बड़ों और बच्चों में समान उत्साह होता है। साधना की बातें भारतीय मनीषा में विद्यमान है और यह हमें याद रखना चाहिए। “
मुख्य वक्ता के रूप में शयादवाद महाविद्यालय वाराणसी से पधारे जैन दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष, विषय विशेषज्ञ डॉ. अमित कुमार जैन ने विषय पर बोलते हुए कहा,कि-” भारतीय संस्कृति का मूल आधार हमें संस्कृत प्राकृत से मिलता है। भारतीय जनमानस के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए बेहद जरूरी है। “साथ ही उन्होंने गोवैभवशतकम् के लेखक मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के व्यक्तित्व एवं संपूर्ण कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए गोवैभवशतकम् की संक्षिप्त समीक्षा भी प्रस्तुत की।
गोवैभवशतकम् के लेखक मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने वीडियो क्लिप के माध्यम से आशीष वचन कहे। कार्यक्रम में आपकी नीतिवाक्यामृत पुस्तक का विमोचन भी हुआ। साथ ही ‘आचार्य श्री अनुश्रुति एवं अनुभव’ नामक पुस्तक, जिसकी संपादक डॉ निशीथ गौड़ हैं। उसका भी विमोचन संपन्न हुआ।कार्यक्रम की समन्वयक डॉ. वर्षा रानी ने संचालक के दायित्व का भी निर्वहन किया।
संस्कृत की विदुषी, कवयित्री तथा आगरा कॉलेज की पूर्व संस्कृत विभाग अध्यक्ष डॉ शशि तिवारी ने वक्तव्य में कहा , कि -” गौ माता का दूध ही नहीं, मल मूत्र भी औषधीय गुणों से युक्त होता है। यह अनेक असाध्य रोगों को नष्ट करने में सहायक है। हमें गौ माता के प्रति श्रद्धावन होना चाहिए। गौ रक्षा मानवता के ही स्वास्थ्य की रक्षा है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए भी गौ रक्षा आवश्यक है। अथर्ववेद में गौ हत्या को महापाप माना गया है। गौ,गंगा,गायत्री यह तीनों ‘गकार’ भारतीय संस्कृति में पूजनीय हैं।”
स्वागत अध्यक्ष के रूप में बैनाड़ा ग्रुप से श्री एच. एल. बैनाड़ा उपस्थित रहे।संगोष्ठी के प्रथम अकादमिक सत्र का आयोजन अपराह्न 3:00 से कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ के और सूर कक्ष में किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. संगीता मेहता ने की।
विशिष्ट अतिथि डॉ. राजश्री, सारस्वत अतिथि डॉ. सरिता जैन तथा वक्ता डॉ.रेखा सिंह रहीं। प्रथम सत्र में विषय आधारित शोध पत्र वाचन भी हुए तथा प्रथम सत्र के स्वागत अध्यक्ष विकास जैन ज्वेलर्स के श्री विनोद जैन रहे।कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं एवं अतिथियों के अलावा विद्यापीठ के सभी प्राध्यापकगढ़ भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। सत्र का संचालन डॉ. संदीप शर्मा ने किया।