भारत, जो अपनी अनूठी विविधता के लिए जाना जाता है, सदियों से विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं के साथ सह-अस्तित्व का प्रतीक रहा है। इस विविधता में एकता और सद्भाव हमेशा हमें जोड़े रखने वाले धागे रहे हैं। हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान, जो समावेशिता की वकालत करता है और मंदिर-मस्जिद विवादों को बढ़ावा न देने की चेतावनी देता है, हमारी सामूहिक जिम्मेदारी को याद दिलाने वाला है। यह बयान न केवल समयानुसार है, बल्कि दूरदर्शी भी है, जो भारत को विभाजनकारी विचारधाराओं से ऊपर उठने और शांति व सह-अस्तित्व के वैश्विक नेता के रूप में उभरने के लिए प्रेरित करता है।
मोहन भागवत का संदेश गहरा और महत्वपूर्ण है। उन्होंने राम मंदिर को हिंदुओं के लिए एकता के प्रतीक के रूप में महत्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि अन्य मंदिर-मस्जिद विवादों का राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना कि “भारत को दुनिया को दिखाना होगा कि साथ कैसे रहा जा सकता है,” वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को पुनः स्थापित करता है—जो भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का आधार रहा है।
उनका यह कहना कि “हिंदुओं के नेता बनाने के लिए विवाद पैदा करना” अनुचित है, परिपक्व और जिम्मेदार नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करता है। ऐसे समय में जब धार्मिक संघर्ष वैश्विक सुर्खियों में छाए रहते हैं, भागवत का सद्भाव पर जोर एक शक्तिशाली संकेत देता है कि भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, उदाहरण पेश करे।
इस संदर्भ में अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ा हालिया झूठा विवाद भारत के सामने आने वाली चुनौतियों का एक चिंताजनक रूप है। हिंदू सेना जैसे कट्टरवादी समूहों और विष्णु गुप्ता जैसे आपराधिक व्यक्तियों द्वारा इस सदियों पुराने आध्यात्मिक स्थल की पवित्रता को बाधित करने का प्रयास चिंताजनक है।
अजमेर शरीफ, जो गरीब नवाज़ हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) का पवित्र स्थान है, समावेशिता और करुणा का प्रतीक रहा है। यह हर धर्म और जाति के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। ऐसे स्थानों की पवित्रता को बाधित करने का कोई भी प्रयास न केवल उनके आध्यात्मिक महत्व को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि भारत की एकता और विविधता की छवि को भी चोट पहुँचाता है।
अजमेर शरीफ दरगाह के गद्दीनशीन के रूप में, मैं यह कहना चाहूंगा कि ऐसे झूठे विवाद शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और बुनियादी ढांचे के विकास जैसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से ध्यान भटकाते हैं और भारत की सुनहरी छवि को दुनिया के सामने धूमिल करते है।
भागवत का “विश्वगुरु भारत” का सपना केवल एक आकांक्षा नहीं है; यह एक वास्तविकता बन सकता है। लेकिन इसके लिए हमें वे मूल्य अपनाने होंगे जिनका हम प्रचार करते हैं। विविधता में एकता केवल एक नारा नहीं है—यह भारत के मूल भाव में गहराई से निहित एक आध्यात्मिक सिद्धांत है।
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ की शिक्षाएँ, विशेष रूप से वहदत-उल-वजूद की अवधारणा, हमें यह समझाती हैं कि सभी सृष्टि एक ही दिव्य स्रोत से उत्पन्न होती है। जब हम इस एकता को पहचानते हैं, तो विभाजनकारी ताकतें कमजोर हो जाती हैं।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से, एकता सामाजिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देती है। एक विभाजित समाज कभी भी अपनी पूरी क्षमता हासिल नहीं कर सकता।
भारत को आज आवश्यकता है कि अपने पवित्र स्थलों और आध्यात्मिक परंपराओं की पवित्रता को बनाए रखे। समाज में समझ और विश्वास को बढ़ावा देने वाली बातचीत को प्रोत्साहित करे। शिक्षा प्रणाली में एकता और सह-अस्तित्व के संदेश को शामिल करे। संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को दृढ़ता से लागू करे।
भारत का वैश्विक नेता बनने का सपना तभी साकार होगा जब हम इन चुनौतियों का सामना बुद्धिमत्ता और करुणा से करें।
आइए, हम अपने आध्यात्मिक संतों, गुरुओं, ऋषि, मुनियो और सूफी संत समाज की शिक्षाओं से प्रेरणा लें और एक ऐसा भारत बनाएं—और एक ऐसा विश्व—जहाँ शांति, प्रेम और न्याय का आह्वान हो ।
हाजी सैयद सलमान चिश्ती
गद्दीनशीन, दरगाह अजमेर शरीफ
चेयरमैन, चिश्ती फाउंडेशन