उत्तर प्रदेश

एएमयू में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित


संवाद। शोज़ब मुनीर


अलीगढ़ एएमयू में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के निदेशक डॉ. अजय राघव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के वर्तमान संकट के लिए विकसित देश जिम्मेदार हैं, जो सबसे अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहे हैं और दुनिया के अधिकतम प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं। दूसरी ओर वे जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं और विकासशील देशों पर इसका बोझ डालने का दबाव बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि विकसित देश वित्तीय सहायता और उन्नत तकनीक देने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसका वादा उन्होंने पेरिस समझौते, 2015 में किया था।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन किसी देश का मुद्दा नहीं है, बल्कि सभी को इस सबसे संभावित दुश्मन से मौजूदा लड़ाई में हिस्सा लेना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए एएमयू बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

कार्यक्रम के मुख्य आयोजक, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पूर्व निदेशक डॉ. एम. सलाहुद्दीन ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु संकट के महत्वपूर्ण पहलुओं पर किए जा रहे महत्वपूर्ण शोध पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसका सामना धरती कर रही है। उन्होंने कहा कि एएमयू ने ऐसे अग्रदूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने दशकों तक पर्यावरण के लिए योगदान दिया है।

उन्होंने सैयद जहूर कासिम का उदाहरण दिया, जिनके नेतृत्व में पहला भारतीय प्रतिनिधिमंडल महत्वपूर्ण शोध के लिए अंटार्कटिका पहुंचा था। बाद में वे भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय में पहले सचिव बने। पक्षी अनुसंधान पर डॉ. सलीम अली का योगदान आज भी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए एक रोडमैप है। डॉ. एम. सलाहुद्दीन ने जलवायु परिवर्तन पर भी नेतृत्व करने पर जोर दिया, जो मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय ने हमेशा संकट में देश को रास्ता दिखाया है, इसलिए हमारे वैज्ञानिक भी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय को अपने वैज्ञानिक इनपुट के माध्यम से ग्रह को बचाने के लिए आगे आएंगे। एएमयू में पहले से ही 100 से अधिक वैज्ञानिक पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर विश्व स्तरीय शोध में लगे हुए हैं।

प्रोफेसर रजाउल्लाह खान, प्रोफेसर इजहार फारूकी और प्रोफेसर अफिफुल्ला खान ने एएमयू में उच्च गुणवत्ता वाले शोध के विचार का समर्थन किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस विश्वविद्यालय में पहले से ही वैज्ञानिकों की एक टीम उपलब्ध है जो जलवायु संकट की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है, बशर्ते उपकरण, रसद और विशेषज्ञों के लिए आवश्यक धन सरकार द्वारा दिया जाए।

प्रोफेसर अफिफुल्ला खान ने बताया कि पर्यावरण विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन पर शोध के लिए एक समर्पित केंद्र खोलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जिसकी मंजूरी भारत सरकार के सक्षम प्राधिकारी के पास लंबित है।

जेएनयू के प्रोफेसर अतुल कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक दुनिया में संधारणीय ऊर्जा उत्पादन को नहीं अपनाया जाता, तब तक कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता और कोयला आधारित ऊर्जा वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जित करती रहेगी, इसलिए विश्व समुदाय को बिना किसी देरी के अक्षय ऊर्जा उत्पादन के अन्य स्रोतों की खोज करनी चाहिए।
भाजपा नेता और अमूवी के पूर्व कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के सामने आने वाले गंभीर प्रभावों पर प्रकाश डाला।

समाजशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. अहरार अहमद लोन ने जलवायु परिवर्तन के मानव पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव कृषि, स्वास्थ्य पर पड़ेगा और जीवन का हर क्षेत्र जलवायु संबंधी आपदाओं से पीड़ित होगा।