आगरा। फ़ातिमा शेख भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका थीं वह सावित्रीबाई फुले की सखी थीं. ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने 19वीं सदी में शिक्षा की जो अलख जलाई थी उसकी आग को प्रसारित करने में फ़ातिमा शेख ने बराबरी से हिस्सेदारी की. फ़ातिमा शेख (9 जनवरी 1831 – अक्टूबर 1900) ज्योतिबा फुले (1827-1890) और सावित्रीबाई फुले (1831-1897) के समकालीन थीं. उनके भाई उस्मान शेख ज्योतिबा के मित्र थे. ज्योतिबा फुले ने जब सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने का फैसला किया तो रूढ़िवादी समाज की भृकुटियाँ तनने लगीं।
फिर जब सावित्रीबाई फुले ज्योतिबा के साथ मिल कर शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए स्कूल में पढ़ाने लगीं तो समाज के दबाव में उन्हें घर छोड़ना पड़ा. ऐसे मुश्किल समय में उस्मान शेख ने न केवल अपने घर में रहने की जगह दी बल्कि ज्योतिबा को स्कूल खोलने के लिए अपना घर भी दे दिया।
1 जनवरी 1848 में ज्योतिबा ने लड़कियों का स्कूल खोला तब फ़ातिमा शेख उसमें पहली छात्रा बनीं. वे स्कूल में मराठी भाषा की पढ़ाई करने लगीं. सावित्रीबाई उसी स्कूल में पढ़ाती थीं. आगे चल कर उसी स्कूल में वह शिक्षिका बन गईं. इस तरह वह आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका बनीं।
यही नहीं, फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग ली. फ़ातिमा शेख और सावित्री बाई को स्कूल में सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं होता था, बल्कि वह घूम-घूम कर लोगों को इस बात के लिए जागरूक करती थीं कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें इस काम के दौरान उन्हें समाज के लोगों ख़ास तौर पर ऊंची जाति के लोगों के गुस्से का सामना भी करना पड़ा।
कहते हैं सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने जब बाल विधवाओं के प्रसव के लिए एक आश्रम ‘बालहत्या प्रतिबंधक गृह’ खोला तो फ़ातिमा शेख ने सावित्री के साथ प्रसव कराना सीखा 1856 में सावित्रीबाई के बीमार पड़ने पर फ़ातिमा शेख ने स्कूल के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्या भी बन गई. इस बात का उल्लेख सावित्रीबाई ने ज्योतिबा को लिखे एक पत्र में किया है।इस तरह फ़ातिमा शेख आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम महिला एक्टिविस्ट शिक्षिका, प्रधानाचार्या थीं फ़ातिमा शेख को सलाम।
घर में ही शुरू किया देश का पहला स्कूल
फातिमा शेख ने लड़कियों और दलितों की शिक्षा पर काफी काम किया था। एक बार जब सावित्रीबाई फुले काफी बिमार पड़ गई थीं, तो अकेले फातिमा शेख ने पूरा स्कूल संभाला था। समाजसेविका सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर फातिमा शेख ने अपने घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया और देश का महिलाओ के लिए पहला स्कूल घर से शुरुआत की थी।
फातिमा शेख ने विरोध के बावजूद लिया शिक्षिका बनने का प्रशिक्षण
फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी। फ़ातिमा शेख और सावित्री बाई ने लोगों के बीच जाकर उन्हें अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने उनका विरोध किया। 1856 में सावित्रीबाई जब बीमार पड़ गई तो वह कुछ दिन के लिए अपने पिता के घर चली गईं। वहां से वह ज्योतिबा फुले को पत्र लिखा करती थीं। उन पत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार फ़ातिमा शेख ने उस समय स्कूल के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्या भी बनीं।
फातिमा शेख के परिवार ने किया शिक्षा का समर्थन
फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ती को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में, उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था। फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले ने मिलकर समाज ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम किया। फातिमा शेख और इनके पति शेख अब्दुल लतीफ़ ने हर संभव तरीके से सावित्रीबाई का दृढ़ता से समर्थन किया। फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई