आगरा। शारदा विश्वविद्यालय आगरा में आज महाकुंभ का महत्व एवं युवाओं की भूमिका विषय पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों और शारदा विश्वविद्यालय आगरा की कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) जयंती रंजन ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया। स्वागत भाषण रिसर्च एंड डेवलपमेंट डीन प्रोफेसर (डॉ.) अमितांशु पटनायक के द्वारा दिया गया।
कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) जयंती रंजन ने सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कुंभ संबोधी में कहा महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक पर्व है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का प्रतीक है। 2025 महाकुंभ नई पीढ़ी के लिए धर्म और संस्कृति के महत्व को समझने के लिए महत्वपूर्ण अवसर है। कुंभ मेला तीर्थयात्रियों के लिए शुद्धिकरण और मुक्ति की तलाश के लिए नदियों में पवित्र डुबकी लगाने और शाही स्नान जैसे अनुष्ठानों का भी समय है, जब संत नदियों में पवित्र डुबकी लगाते हैं। कुंभ मेला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, जो लाखों लोगों को आस्था, भक्ति और सद्भाव के उत्सव में एकजुट करता है। कुंभ मेला आंतरिक चिंतन और परमात्मा के साथ गहरे संबंध का समय है। यह आध्यात्मिक विकास, विरासत को पुनर्जीवित करना, युवा पीढ़ी को सशक्त बनाना और समान विचारधारा वाली आत्माओं के साथ जुड़ने का भी एक अवसर है।
युवा कुंभ मेले में कई तरीके से भाग ले सकते है। डिजिटल मीडिया के माध्यम से कार्यक्रम का प्रचार कर जागरुक कर सकते हैं। प्री एंड पोस्ट अनुसंधान कर सकते हैं। आईआईटी, आईआईएम देश और विदेश के जाने-माने विश्वविद्यालय से छात्र यहां रिसर्च करने और सीखने के लिए आ रहे हैं। आप सभी को जाकर वहां भाग लेना चाहिए। मुख्य अतिथि ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा महाकुंभ मेले की लोकप्रियता को देखते हुए यूनेस्को ने कुंभ को मानव की अमृत सांस्कृतिक विरासत की विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है। अब बात आती है कि महाकुंभ का पावन मेला हर बार 12 साल के अंतराल में ही क्यों लगता है, इसके पीछे कई धार्मिक मान्यता हैं। कहा जाता है कि कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब जो अमृत निकला इस अमृत को पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ, जो 12 दिनों तक चला. कहते हैं कि यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर थे, इसलिए कुंभ का मेला 12 सालों में लगता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, अमृत के छींटे 12 स्थान पर गिरे थे, जिनमें से चार पृथ्वी पर थे, इन चार स्थानों पर ही कुंभ का मेला लगता है. कई ज्योतिषियों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाता है, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होता है। महाकुंभ के मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इन नदियों के जल में इस दौरान अमृत के समान गुण होते हैं और सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद कुंभ मेले में स्नान करने से मिलता हैं। खासकर प्रयागराज में आयोजित होने वाले शाही स्नान का धार्मिक महत्व होता है, दरअसल यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती है, इसलिए प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान शाही स्नान करने का विशेष महत्व होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार गंगाजल में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं कहते हैं कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से सभी रोगों एवं पापों का नाश होता है। शारदा विश्वविद्यालय आगरा के विद्यार्थियों ने भक्ति गीत, शिव तांडव, नृत्य, नुक्कड़ नाटक और क्विज कंपटीशन प्रस्तुत किए जो सराहनीय और प्रशासनीय थे। इस अवसर डिप्टी रजिस्टार डॉ. प्रवीण तिवारी, इवेंट हेड डॉ.पी.के सिंह, डॉ. विशेष राजपूत,डॉ.रितेश कुमार, श्री वेद प्रकाश पांडे शारदा विश्वविद्यालय आगरा के समस्त डीन, डायरेक्टर्स, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, विद्यार्थीगण एवं स्टाफ उपस्थित रहे। महाकुंभ 2025 के लिए शारदा विश्वविद्यालय आगरा के माननीय कुलाधिपति श्री पी.के.गुप्ता और माननीय उप कुलाधिपति श्री वाई. के.गुप्ता ने बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की।