संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। खेती किसानी के दंगल में खाद के दांव पेंच में मूत्र यूरिया खाद को चित्त कर रहा है।जी हाँ, चौंकिए नहीं बल्कि इस विधा को अपनायें। रासायनिक खाद की झंझट से मुक्ती पाये।
यूरिया की जगह गोमूत्र का स्प्रे गेहूं की फसल को संजीवनी दे रहा है।इस विधा का प्रयोग कर रहे किसानों ने बताया कि इससे फसल को भरपूर नाइट्रोजन और अच्छी पैदावार होती है। उन्होंने किसानों को गोमूत्र और जैविक खाद का इस्तेमाल कर जीरो बजट पर खेती करने का सुझाव दिया।
अतर्रा के प्रगतिशील जैविक किसान विज्ञान शुक्ला के यहां कृषि फार्म में करीब 100 बीघे में गेहूं की खेती होती है। वह कठिया गेहूं की भी बेहतर खेती करते हैं। उनकी फसलें पूरी तरह जैविक होती हैं। वह रसायनिक खादों का प्रयोग नहीं करते। अपने कृषि फार्म में खुद वर्मी कंपोस्ट, जैविक कीटनाशक दवाएं तैयार करते हैं। उनके यहां बुंदेलखंड से किसान जैविक खेती की तकनीक सीखने आते हैं। जैविक खेती के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार जगजीवनराम व बुंदेलखंड स्तर के पुरस्कार भी मिल चुके हैं। विज्ञान शुक्ला कहते हैं कि यूरिया खाद की बजाए वह गेहूं की टाप ड्रेसिग में गोमूत्र का स्प्रे करते हैं।
इससे अच्छी पैदावार होती है। करीब 100 बीघे में गेहूं की फसल तैयार की है। अपने जैविक कृषि फार्म खेरवा में लहलहाती फसलों को देखा तो बेहद खुश हुए। कहा कि हल्की बारिश से सभी फसलों को अच्छा फायदा हुआ है। गेहूं के अलावा चना, मटर, सरसों, मसूर सभी फसलों को बारिश ने संजीवनी दे दी है। इस वर्ष अच्छी पैदावार होने के आसार हैं। इस समय किसानों को फसल पर गोमूत्र का स्प्रे करना चाहिए, जिससे नाइट्रोजन की पूर्ति होगी और अच्छी फसल होगी।