उत्तर प्रदेशजीवन शैली

बेटी वस्तु नहीं जो दान में दी जाए -नरेश पारस

   राखी को बनाया साध्वी गौरी, छह दिन बाद हुई घर वापसी

दीक्षा दिलाने वाला संत सात साल के लिए निष्कासित
चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट बोले, बेटी वस्तु नहीं जो दान में दी जाए

आगरा। 13 वर्षीय छात्रा को साध्वी बनाए जाने को लेकर देशभर में एक नई चर्चा शुरू हो गई। क्या बच्ची कोई वस्तु है जिसे दान में दिया जा सकता है ? क्या बालहठ के चलते किसी बच्ची को साधुओं को सौंपा जा सकता है ? क्या कानून इसे मान्यता देता है ? फिलहाल आगरा के बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस की पहल पर छह दिन बाद बच्ची की घर बापसी हो गई है। दीक्षा दिलाने वाले संत को जूना अखाड़े ने सात साल के लिए निष्कासित कर दिया है। बच्ची की घर बापसी पर दादा-दादी खुशी मना रहे हैं।

छात्रा को बनाया साध्वी
आगरा के कुंडौल के नया मील निवासी संदीप धाकरे की 13 वर्षीय पुत्री राखी स्प्रिंग फील्ड इण्टर कॉलेज में कक्षा नौ की छात्रा थी। वह पढ़ने होशियार थी। वह पढ़ लिखकर आईएएस बनना चाहती थी। परिजनों के मुताबिक छात्रा के अंदर बैराग्य जाग गया। उसने साध्वी बनने की इच्छा जाहिर की।

छात्रा के माता-पिता ने उसकी पढ़ाई छुड़वाकर महाकुम्भ प्रयागराज में उसे जूना अखाड़े के साधुओं को दान में दे दिया। वह गेरूआ वस्त्र पहनकर साधु भेष में रहने लगी। उसने साधना शुरू दी। उसका नाम बदलकर साध्वी गौरी गिरि कर दिया। ऐलान कर दिया कि 19 जनवरी को छात्रा के परिजन उसका पिण्डदान करेंगे जबकि पिण्डदान मरणोपरांत किया जाता है। तैयारियां शुरू हो गईं। जश्न मनाया जाने लगा। मिशाल दी जाने लगीं।

आगे आए नरेश पारस
बाल अधिकारों के संरक्षण पर लंबे समय से कार्य कर रहे आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस पिछले प्रयागराज एवं हरिद्वारा के कुम्भ मेलों में बाल हितैषी कुम्भ पर कार्य कर चुके हैं। कुम्भ मेलों में बच्चों को लापता होने से बचाने के साथ साथ कुम्भ मेले में स्वयंसेवक और पुलिस अधिकारियों को बाल अधिकार कानूनों पर प्रशिक्षण भी दिया। हरिद्वार की डीएम ने विशेष रूप से उन्हें हरिद्वार आमंत्रित किया था। जहां उन्होंने कुम्भ मेला मॉनीटर किया था। कुम्भ मेले से मिले अनुरभव के आधार पर नरेश पारस ने कहा कि छात्रा को साधुओं को सौंपना उचित नहीं है। यह बाल अधिकारों का उल्लंघन है। बच्ची की पढ़ने और खेलने कूदने की उम्र है।

जूना अखाड़े ने संत किया निष्कासित
मामला तूल पकड़ते देख अखाड़े की आमसभा की बैठक हुई। बैठक में संरक्षण महंत हरि गिरि, अध्यक्ष महंत प्रेम गिरि, प्रवक्ता नारायण गिरि आदि मौजूद रहे। बैठक में निर्णय लिया गया कि नाबालिग लड़की को अखाड़े के नियम तोड़कर नाबालिग बालिका को साध्वी बनाया गया है। राखी को उसके माता पिता को सौंपकर महाकुम्भ मेलो बाहर जाने के लिए कहा गया। साथ ही बैठक में यह प्रस्ताव भी पास किया गया कि अब 22 वर्ष से कम आयु होने पर ही महिला को संन्यास दीक्षा दी जाएगी। जूना अखाड़े के संत कौशल गिरी को सात साल के लिए अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया।

तार्किक तथ्यों के साथ की शिकायत
नरेश पारस ने जिलाधिकारी और बाल कल्याण समिति के साथ साथ बाल आयोग, महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग सहित तमाम जगह तार्किक तथ्यों के साथ शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि बच्ची कोई वस्तु नहीं है जिसे दान में दिया जा सके। यह कृत्य मानव तस्करी के दायरे में आता है। भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 143 (आईपीसी की धारा 370) के तहत अपराध है। किशोर न्याय (देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 का उल्लंघन है।

किसी भी बच्चे का परित्याग किया जाता है तो उसे बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत होकर समर्पित किया जाता है। बाल कल्याण समिति बाल हित को सर्वोपरि मानते हुए बच्चे को सुरक्षित स्थान पर आश्रय दिलाती है। बच्चों को गोद देने के लिए भी भारत में अलग से प्रावधान हैं। गोद लेने के लिए कारा के नियमों का पालन करना होता है। फॉस्टर केयर में बच्चे की परवरिश करने के लिए कारा और किशोर न्याय अधिनियम की गाइडलाइन का पालन करना होता है।

मौलिक अधिकारों से किया वंचित
नरेश पारस ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 21क के तहत छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है। शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है। बालिका की पढ़ाई छुड़वाकर उसे मौलिक अधिकारों से वंचित किया है। जिस अखाड़े में बालिका को दान में दिया गया है वह संस्थान किशोर न्याय (देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 के अंतर्गत पंजीकृत भी नहीं है। वहां बालिका का भविष्य सुरक्षित नहीं हैं। यह पूरी तरह से असंवैधानिक है।

आशाराम का दिया उदाहरण
नरेश पारस ने कहा कि पूर्व में धार्मिक संस्थानों में बाल शोषण के मामले प्रकाश में आ चुके हैं। संत आशाराम इसका प्रमुख उदाहरण है। जो बाल यौन शोषण के मामले में पॉक्सो के तहत सजा काट रहे हैं। मीडिया में आई खबरों से प्रेरित होकर देश के अन्य लोग भी अपनी बेटियों को साधुओं को दान में दे सकते हैं। एक नई परंपरा शुरू होने की संभावना है। जिससे बड़ी संख्या में बच्चों के बाल अधिकारों उल्लंघन होगा। बच्चों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण होगा।

कहीं साजिश तो नहीं
नरेश पारस ने इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि कहीं किसी साजिश के तहत तो छात्रा को साध्वी नहीं बनाया गया है। जिस दिन दीक्षा ग्रहण कराई उसी दिन विरोध क्यों नहीं किया गया। छह दिन बाद जूना अखाड़ा द्वारा किशोरी की घर बापसी क्यों कराई गई ? दीक्षा दिलाने वाले संत को छह दिन बाद सात साल के लिए क्यों निष्कासित किया गया। यह कार्यवाही पहले भी तो हो सकती थी। पूर्व में संत ने किसकी अनुमति पर छात्रा को अखाड़े में शामिल किया गया।

इन सब बिन्दुओं पर जांच होना जरूरी है। उन्होंने अपने पत्रों में मांग की है कि माता पिता द्वारा साधुओं को दान में दी गई किशोरी राखी को चाइल्ड लाइन तथा पुलिस के माध्यम से मुक्त कराकर उसकी काउंसलिंग कराई। उसे सुरक्षित स्थान पर आश्रय दिलाया जाए। उसकी पढ़ाई पुनः सुचारू कराई जाए। आरोपियों के विरूद्ध कार्यवाही की जाए।