प्रयागराज .उत्तरप्रदेश एनसीसी के 15 सदस्यीय साइक्लोथोन दल का शहर आगमन पर भव्य स्वागत किया गया। 01 जनवरी को मेरठ से 1900 किमी की साइकिल यात्रा पर निकले 15 सदस्यीय दल का एयर कमोडोर मनीष सिन्हा ने एयर फोर्स स्टेशन बमरौली के प्रांगण में झंडी दिखाकर स्वागत किया। 5 छात्राओं सहित यह दल प्रदेश में 1857 की क्रांति के प्रमुख स्थान पर श्रद्धांजलि अर्पित कर नगर वासियों को इस ऐतिहासिक घटना की पूरी जानकारी देगा और युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों के बलिदानों की याद दिलाते हुये खुद को सशक्त भारत बनाने के प्रति प्रतिबद्ध करेगा।
रोजाना औसतन 112 किमी की 17 दिवसीय यात्रा के अंत में इस दल को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गणतंत्र दिवस समारोह की शृंखला में आयोजित एनसीसी की पीएम रैली के दौरान फ्लैग इन किया जाएगा।
ज्ञात हो की अंग्रेजों से पहले, 2000 वर्षों में, भारत अनेक साम्राज्यों या छोटे राजघरानों द्वारा शासित किया जाता था। 1608 में अंग्रेज़ आए और अगले 100 वर्षों में उन्होंने लगभग पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा कर लिया। सन 1825-50 के दौर में भारतीय मूल के सैनिकों से बनी, ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना न सिर्फ पूरे हिंदुस्तान में उनके आर्थिक हितों के रक्षा कर रही थी, बल्कि अंग्रेजों की ओर से अफगानिस्तान, चीन, बर्मा, पर्सिया (ईरान) और क्रीमीया में भी लड़ रही थी। परंतु, सैनिकों के कल्याण के बारे में कोई सोच नहीं थी। 1855 के आस-पास, अंग्रेजी शासन के खिलाफ रोष और बढ़ने लगा। प्रमुखतः, कठोर शासन प्रणाली, खेतीबाड़ी पर बढ़ता लगान, स्थानीय उद्योगों को खत्म करना और भारतीय मूल के राजघरानों पर कब्जा, इसके मुख्य कारण थे।
इसी समय, सैनिकों के लिए एक नई राइफल आई जिसमें गोली को मुंह से काटकर भरा जाता था। ऐसा माना जाता था कि गोली पर गाय और सूअर कि चर्बी से लेप होता था, जो भारतीय सैनिकों के धर्म के खिलाफ था। ऐसी स्थिति में, फरवरी 1857 में एक पलटन ने इन कारतूसों को इस्तेमाल करने से मना कर दिया। सैनिकों को निरस्त्र कर दिया गया। इसी मसले पर क्षोभित होकर मंगल पांडे ने अंग्रेज़ अधिकारी पर हमला किया जिसके लिए उनको फांसी दी गई। इस खबर ने रोष और बढ़ा दिया और जगह-जगह पर विद्रोह होने लगे, जो किसानों और व्यापारियों द्वारा समान रूप से समर्थित थे।
मुख्य केंद्र मेरठ, मोरदाबाद, बरेली, उरई, बनारस, इलाहाबाद, कानपुर और झांसी थे। विद्रोह को दबाने और पूरे क्षेत्र को वापस जीतने के लिए आतंक के शासनकाल को डेढ़ साल का समय लगा। इसके बावजूद, यह पहला उदाहरण था जब जनता एक साथ बढ़ी, भारत की स्वतंत्रता के लिए मार्ग प्रशस्त किया।