दिल्लीराजनीति

पूजा स्थल अधिनियम पर सरकार ने नहीं दिया जवाब, सुप्रीम कोर्ट उसकी मौन को स्वीकृति मान ले- शाहनवाज़ आलम

नई दिल्ली. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा पूजा स्थल अधिनियम पर जवाब दाख़िल नहीं करने की निंदा की है.
शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पिछले महीने 12 दिसंबर को सुप्रीम ने इस क़ानून से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ़्ते में अपना पक्ष दाख़िल करने का समय दिया था. तब सोलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वो सरकार की तरफ से जवाब दाख़िल करेंगे. यह समय सीमा 12 जनवरी को ही खत्म हो गयी लेकिन केंद्र सरकार ने कोई जवाब दाख़िल नहीं किया.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया नोटिस पूजा स्थल अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार को दिया गया 7 वां नोटिस था जिसपर हर बार की तरह इस बार भी मोदी सरकार ने जवाब दाख़िल नहीं किया. सरकार के इस रवैय्ये से अब सुप्रीम कोर्ट को यह मान लेना चाहिए कि सरकार का जवाब न देना इस क़ानून के प्रति उसकी स्वीकृति है. इसलिए मन्दिर – मस्जिद के विवादों पर स्थाई रोक लगा देना चाहिए जैसा कि इस क़ानून में कहा गया है.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के साथ विडंबना यह है कि वो तकनीकी तौर पर संसद द्वारा पारित इस क़ानून का विरोधियों सुप्रीम कोर्ट में कर ही नहीं सकती. क्योंकि संसद द्वारा पारित किसी भी क़ानून के पक्ष में खड़ा होना सरकार की ज़िम्मेदारी है. इसीलिए वो अपने विभाजनकारी एजेंडे के तहत अपने ही लोगों से याचिकाएं भी डलवाती है और जजों के एक सांप्रदायिक हिस्से द्वारा उन याचिकाओं को स्वीकार भी करवाती है. सब कुछ एक सोची समझी तय स्क्रिप्ट के अनुसार होता है. जिसमें एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय भी सक्रिय दिखने लगती है और वो सरकार को जवाब न देने पर कोई ठोस कार्यवाई भी नहीं करती. ऐसा सुप्रीम कोर्ट के पिछले 3 मुख्य न्यायाधीश करते आ रहे हैं जिसकी अति पिछले मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कर दी थी.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के सामने अवसर है कि वो सरकार और जजों के एक हिस्से के बीच बनी इस पटकथा पर विराम लगाएं ताकि लोगों का न्यायपालिका पर भरोसा बना रहे.